Thursday, March 27, 2008

8.18 पैंक के करमात

[कहताहर - भूपेन्द्र नाथ, मो॰पो॰ - बेलखरा, जिला - जहानाबाद]

एक ठो पैंक हल । ऊ एगो बस्ती में गेल । उहाँ कहलक कि हमरा तेरह हर के बैल हे, बाछी-पोछी के लेखा नऽ हे । इहाँ आ के देखलक कि बाड़ी बाछी हे जे अइसन चोता हगे हे कि अँगनो लीपे भर नऽ हे । बड़ा दगा देलक पैंक ।

कह गेल पैंक कि तेरह कोठी चाउर हे, कोठा-खुद्दी के लेखा-जोखा नऽ हे । आँख से देखली - पइला पर धान, माँड़ो चुये न हे । बड़ा दगा देलन पैंक !

कह गेलन पैंक कि सोना-रूपा ढेर हे, काँसा-पीतर के लेखा-जोखा नऽ हे । आँखि देखवलन कि फुटली छिपनिया कि पनियो रहे योग नऽ हे । बड़ा दगा देलन हो पैंक !

कह गेलन पैंक कि तेरह थान लूगा हे, फाटल-पुरान के लेखा-जोखा नऽ हे । आँखि देखवलन फटली लुगरिया जे पेंवनो साटे जोग नऽ हे । बड़ा दगा देलऽ हो पैंक ।।

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