Wednesday, March 26, 2008

8.11 तदबीर से तकदीर बड़ा

[कहताहर - जद्दू मेहता, मो॰पो॰ - बेलखरा, जिला - जहानाबाद]

तकदीर आउ तदबीर दूगो भाई हलन । दूनो भाई अपने में लड़े लगलन कि हमनी में कउन बड़ा ही । तकदीर कहलक कि हम बड़ा ही । तदबीर कहलक कि हम बड़ा ही । दूनो के लड़इत देख के तेसर कहलक कि तोहनी में से परीक्षा में जे पास कर जायत वही बड़ा मानल जायत । फिनो ओहनी के परीक्षा शुरू भेल ।

तदबीर लकड़हारा बन के राजा के पास लकड़ी के बोझा ले के चलल । दरबान लकड़हारा के देख के कहलक कि तू सीधे राजा के पास मत जा ! ढेर देरी तक बतकुच्चन के बाद लकड़हारा राजा के पास चल गेल । राजा ओकर गरीबी देख के एगो लाल दिया देलन । ऊ ले के चल आयल । राह में सोचलक कि ई पत्थल, राजा जी लइका के खेलौना देलन हे । हाथ में उलट-पलट के देखइत हल कि एगो चिल्ह झपट्टा मार के ले भागल । चिल्ह ओही लकड़हारा के घर में ताड़ के पेड़ पर खोता लगौले हल जेकरा में लाल रख देलक ।

दोसर दिन फिन लकड़हारा राजा के पास गेल । राजा समझलन कि ई लाल के कीमत न जानल हे । से ओकरा पाँच सौ रोपेआ दिया देलन । ऊ रोपेआ ले के जाइत हल आउ सोचइत हल कि राजा हमरा सितुहा देलन हे । एकरा से हमरा का होयत ? लकड़हारा घरे ले जा के रुपेया थैली में रख देलक ।

पड़ोसी लोग पूछलन कि आज राजा जी का देलकथुन हे ? ऊ कहलक कि राजा जी सितुहा देलकथिन ह, उका रखल हवऽ । मेहररुआ देखलक तो थैली नऽ हे । कारन एगो पड़ोसी थैली उठाके चल देलक ।

तेसर दिन लकड़हारा फिन राजा ही गेल । राजा देख के बोललन कि ई महामूरख हे । फिनो ओकरा एक रोपेआ के खाली पइसा भंजा के दे देलन । ऊ खुस हो के सब पइसा ले के घरे आयल । ओकरा बाद बाजार गेल - चना, चादर चबेनी आउ मछरियो ले के घरे आयल । अवरतिया कहलक कि ई मछरी काहे ला लवलऽ हे ? पकयबऽ कउची से ? लकड़हारवा कहलक कि उका तार के खउँका हे । लकड़हारा तार के खउँका तुड़े ला पेड़ पर चढ़ल तो ऊ देखलक कि ओकर लाल रखल हे । ऊ हल्ला कयलक कि चोर पकड़ली - चोर पकड़ली ! ई बात रोपइया चोरावेओला पड़ोसी सुनलक तो रोपेआ समेत थैला फेंक देलक कि लइकवा ले गेलवऽ हल । ताड़ पर से लाल उतारलक । अब ऊ रोपेआ, लाल सब कुछ चिन्ह गेल आउ मजे में रहे लगल । तकदीर ठीक होयला पर सब कुछ ठीक हो गेल ।

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