Wednesday, March 26, 2008

8.07 आगे सोचल काम न करतो

[कहताहर - धर्मेन्द्रनाथ, मो॰पो॰ - बेला, जिला - गया]

एक ठो हलै ढेला आउ एक ठो हलै पत्ता । पतवा उड़ते-पड़ते एक तुरी ढेलवा के पास पहुँच गेलै । साथे रहते-रहते दूनो में इयारी हो गेलै । ओहनी मिल के आगे के बात सोचे लगलै । ढेलवा कहलकै - "ए यार जी, पानी पड़तो तो तू हमरा पर चढ़ जइहँऽ तऽ हम बच जायम । आन्ही अवतो तो हम तोरा पर चढ़ जयबो ! ई तरह दूनो सलाह करके रहे लगलन । एक समय के बात हे कि आन्ही-पानी दूनों एके तुरी आ गेलै । अब तो ओहनी के कोय काम नऽ देलकै । आन्ही में पत्ता उड़िया गेल आउ ढेला बिला गेल । खिस्सा गेलो बन में, समझऽ अप्पन मन में !

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