Wednesday, March 26, 2008

8.06 विपत के मारल राजकुमार

[कहताहर - नारायण दास, मो॰ - खुटहन, पो॰ - औरंगाबाद, जिला - औरंगाबाद]

एगो राजा आउ एगो रानी हलन । कुछ दिना के बाद उनका एगो बेटा जनमल । फिनो राजा मर गेलन । राजकुमार माय के साथे रहे लगलन । होस-हवास होयला पर दरबार देखे लगलन । एक तुरी राजकुमार भोरे पखाना गेलन आउ कुली-कलाली करे एगो कुआँ पर गेलन । कुआँ में लोटा-डोरी डाललन तो ओकरा में बिपत रहऽ हल, ऊ लोटा-डोरी धर लेलक । तब राजकुमार पूछलन कि अपने के ही आउ का चाहऽ ही ? ऊ बोलल कि हम विपत ही आउ तोरा पर हम एक दिन सवार होववऽ ? तू अखनी चाहइत हऽ कि जवानी में इया बुढ़ारी में ! राजकुमार कहलन कि हम माय से पूछ के जवाब देबवऽ । राजकुमार घरे आन के माय से पूछलन तो माय कहकथिन कि लइकाई आउ बुढ़ारी में तो बड़ा तकलीफ होतवऽ । ई से जवनिये में कह देहुन । राजकुमार कुआँ पर जा के कह देलन कि हमरा पर जवानी में सवार होऊँ । विपत लोटा-डोरी छोड़ देलक आउ राजकुमार घरे आन के कचहरी करे लगलन ।

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