Tuesday, March 25, 2008

8.05 मुरगी मेलान कायथ पहलवान

[ कहताहर - लालमणि कुमारी, मो॰-पो॰ - बेलागंज, जिला - गया]

एक समय के बात हे कि एगो राजा के दरबार में सात गो मुंसी जी रहऽ हलन । ओहनी सब देवान-पटवारी के काम करऽ हलन । बइठल-बइठल राजा के बुरवक बना के धन भी ठग ले हलन । ओहनी के देह से तो कोई काम होयबे नऽ करऽ हल । एक दिन के बात हे कि राजा साहेब एगो लाला जी के कहलन कि जा के कोयरी के खेत में से मुरई कबार के ले आवऽ । मुंसी जी देह से कोई काम न ऽ करलो चाहऽ हलन । ई भी डर हल कि एक तुरी कोई काम कर देव तो राजा साहब तुरी-तुरी काम करे ला कहतन । से ई बात सोच के लाला जी खेत में गेलन आउ मुरई कबारे में जोर लगावे लगलन । मुरई कबरवे न करे । दरअसल ऊ मुरई कबारे ला नऽ चाहऽ हलन । राजा जी लाला जी के ई नाटक देखलन कि ऊ मुरई कबारत-कबारत थक गेलन हे तो ऊ फिनो छवो मुंसी जी के भेजलन । सातो मुंसी जी खेत में पहुँच के अपना में बतिअयलन कि मुरई कबारे में हमनी सब ला घाटा हे - हमनी से कलम के साथे देह से भी काम लेवल जायत । से मुरई कबार के नऽ ले चले के चाहीं बाकि कबारे के ढोंग करने हे, नऽ तो नोकरी से निकाल देल जायत । से ओहनी सातो मुंसी जी एके तुरी मिल के मुरई कबारे लगलन । कोइरी के खेत अँहड़ गेल । ढेर मानी मुरई रउँदा गेल । ई हाल कोयरी झोपड़ी में बइठल देखइत हल । ओकरा खीस तो वर रहल हल बाकि राजा के डरे कुछ बोलइत नऽ हल । ढेर देरी के बाद ओकरा नऽ रहायल तो झोपड़िये में से गते टुभकल - "मुरगी मेलान आउ कायथ पहलवान ?" ई बात सुन के ओहनी सातो लजायल नियन कैले राजा भिरु गेलन । राजा खाली हाथ देख के ओहनी से मुरई के बात पूछलन तो ओहनी कहलन कि "सरकार, कोयरिया हमनी के ठिसुआ के भगा देलक !"

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