Tuesday, March 25, 2008

8.04 लेना एक न देना दू

[ कहताहर - लालमणि कुमारी, मो॰-पो॰ - बेलागंज, जिला - गया]

एगो मलाह रोज समुन्दर किनारे मछली मारे जा हल आउ मछरी बेच के अप्पन हाल-रोजगार चलावऽ हल । ऊ मजे में खा-पीअऽ हल । एक रोज ओकरा एक्को मछरी नऽ मिलल । अंत में हार-दाव देख के एक तुरी कस के फिनो जाल फेंकलक तो मछरी नऽ बझके एगो कछुआ छना गेल । मलाह कछुआ के पकड़ के ले चलल तो ऊ गिड़गिड़ायल कि हमरा छोड़ दऽ तो हम तोरा समुन्दर से एगो बढ़िया मोती लान के देबो । मलाह कछुआ के बात मान लेलक आउ ओकरा मोती लावे ला समुन्दर में छोड़ देलक । कछुआ सरत के मोताबिक एगो मोती लान के मल्लाह के दे देलक । मोती देख के मलाह के लोभ समा गेल । से ऊ कछुआ के पकड़ लेलक आउ तंग कैलक कि एगो आउ ओइसने मोती ला के दे नऽ तो मार के खा जबउ । कछुआ मलाह के इरादा समझ गेल ।

फिनो कछुआ मलाह से कहलक कि अइसने मोती तो तबे आ सकऽ हे जब एकरा साथे ले जा के मिला के खोजब । से, मलाह कछुआ के ऊ चमकइत मोती दे देलक । कछुआ मुँह में मोती दबौलक आउ समुन्दर में घुस गेल । जब ऊ मलाह से ढेर दूर चल गेल तो पानी से ऊपर बुलदे छहलायल । ओकरा देख के मलाह सरत के मोताबिक दोसरो मोती माँगलक । एकरा पर कछुआ उहईं से जोर से कहलक - "लेना एक न देना दू ! तोरा एगो लेवे से हमरा दूगो देवे ला नऽ हे ।" ऊ दिन से ई एगो कहाउत बन गेल जे आज तक चलल आवइत हे ।

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