Monday, March 24, 2008

7.17 कोंकड़ा आउ बाघ

[ कहताहर - अमेरिका ठाकुर, ग्राम - चिलोरी, पो॰ - मखदुमपुर, जिला - जहानाबाद]

एगो कोंकड़ा पानी किनारे घर उठौलक । एगो बाघ रोज पानी पीये जाय । ओकर घरवा ढाह देवे । एक दिन कोकड़वा बघवा के घरे चेतावे गेल कि "ए बघिनिया मामा, तोर बेटवा रोज हमर घरवा जा के ढाह दे हउ । से ई अच्छा बात नऽ हउ, एक दिन जरूरे लड़ाई होतउ !" ऊ घरे आयल तऽ ओकर मइया मारे दउड़ल कि "तूँ कोंकड़वा के घर ढाह देवऽ ही । से आज बड़ी खिसिया के गेलउ हे !" ई सुन के फिनो बघवा कोंकड़वा के घरवा ढाहे गेल । कोंकड़वा अप्पन घरवे में नुकल खाऽ हले । से जइसहीं बाघ ढाहे ला थोथुना लगौलक ओइसहीं कोंकड़ा बाघ के नाक में टँगुरा समा देलक आउ नाक में काटना सुरू कइलक । अब बघवा सार छटपटायल, रोवे, गिरे, पछड़े आउ कहे कि "ए कोंकड़ा भइया, अब छोड़ दे, अब नऽ ढाहबउ !" कोंकड़वा कहलक कि "चल पनियाँ में, तूँ थोथुना डूबइहें तब छोड़ देबउ ! से गते-गते बाघ पानी में गेल आउ अप्पन थोथुना डीबउलक । कोंकड़ा पानी में भाग गेल आउ बघवा जंगल में भागल जाइत हल ।

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