Monday, March 24, 2008

7.15 अलबत्ता चिरईं

[ कहताहर - धर्मेन्द्रनाथ, मो॰-पो॰ - बेला, जिला - गया]

एगो राजा हलन । उनकर घर में एगो खुदबुदी चिरईं खोता लगवले हल । ऊ चिरईं एक दिन बहरना में से एगो चित्ती कउड़ी पवलक । तब अप्पन घर में आके बके लगल कि जेतना राजा के न धन ओतना हमरा हे धन ! अइसहीं ऊ बकइत हल तब राजा ओकरा पकड़वा के ओकर चित्ती कउड़ी छीन लेलन । तब फिन ऊ जा के बके लगल कि राजा कंगाल भेल मोर धन ले गेल । राजा के दया आ गेल तो ऊ कउड़ी के दे देलन । फिन ऊ चिरईं उड़-उड़ के बके लगल कि "राजा डेरा गेल, मोर धन दे गेल !" राजा के तब मन खिसिया गेल । तब ऊ चिरईं के पकड़ के ओकर पाँख-ऊँख नोच के बनावे ला होयलन तो बोले लगल - "नोचन-नाचन में अइली गे मइयो !" फिन ओकर कड़ाही में छउँकल गेल तो बोलल -"छनर-मनर में अइली गे मइयो !" चिरईं कराही में सीझे लगल तो बोलल -"खदर-खुदर में अइली गे मइयो !" राजा ओकरा खाय लगलन तो ऊ बोलल कि "कर्रर-कुर्रर में अइली गे मइयो !" सुबह भेल तो राजा दीसा फीरे गेलन । ओती घड़ी भी चिरईं बोलल कि "बारंग देखन में अइली गे मइयो !" एकरा बाद चिरईं उड़ के भाग गेल ।

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