Monday, March 24, 2008

7.13 नेकी आउ बदी

[ कहताहर - जगदीश प्रजापत, मो॰ - कचनावाँ, पो॰ - मखदुमपुर, जिला - जहानाबाद]

एगो गाँव में दूगो भाई हलन । उनकर नाम हल नेकी आउ बदी । एक दिन नेकिया नोकरी ला घरे से निकलल । एगो राजा हीं जा के नोकरी करे ला पूछलक । राजा कहलन कि "हमरा तीन सौ साठ गो बकरी हे । ओकरे चरावे परतउ । घामा में चरयबें तऽ एक कौर भात देबउ आउ छहिरा में चरयबें तो एक कोना रोटी देबउ । अगर तू नोकरी न करल चहवें तो तोर नाक-कान काट लेबउ आउ अगर हम नोकरी से हटैबउ तो हम्मर नाक-कान तू काट लीहें !" नेकिया ओही करार पर नोकरी करे लगल । कुछ दिना के बाद ऊ नोकरी से उबिया गेल आउ अपन नाक-कान कटवा के नोकरी छोड़ देलक । घरे आयल तो बदिया देख के पूछलक कि "ई का होलवऽ भाई ?" नेकिया सब हाल कह सुनौलक । बदिया कहलक कि "अब हम नोकरी करे जाइत हिवऽ !" ऊ ओही राजा के इहाँ जा के ओही सरत पर नोकरी करे लगल । जंगल में जब बकरी चरावे जाय तो रोज एगो बकरी मारे आउ खा जाय । ई तरी तीन सौ साठो बकरी के ऊ खा गेल ।


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