Monday, March 24, 2008

7.12 एगो गप्पी

[ कहताहर - रामप्यारी सिन्हा, ग्राम - तबकला, पो॰ - जहानाबाद, जिला - जहानाबाद]

एगो गप्पी हल । ऊ गप करे में जग जाहिर हल । एक दिन ऊ बजार में टहले गेल । उहाँ एगो हलुआई के दोकान पर बइठल तऽ ऊ कहकई कि "ए गप्पी भाई, एगो गप-सप करऽ ।" तऽ गपिया कहलक कि "दुत्त सार ! गप का करिअउ ? अभी देखलिअउ कि तोर मेहररुआ के चाल करकउ से ऊ रहरिया में चल गेलउ !" ई सुन के हलुअइया बाड़ी ले के दउड़ल । एने ओकर मेहररुआ घरे से निकललई आउ पूछलक कि हमरा हीं के कने गेलन । गपिया कहलक कि "कउन तो एगो रहिया में से मेहरारू चाल करकइन, से चल गेलथुन हे ।" सुन के ऊ झड़ुआ लेलक आउ हुएँ दउड़ल । उहाँ दूनो माउग-भतार रहर में एक दूसर के खोजइत चलइत हथ । खोजइत-खोजइत दूनो रहर के बीच में मिललन, तो मेहररुआ झड़ुआ तनले हे आउ मरदनवा बाड़ी सम्हारले हे । मरदनवा बोलल कि "हम न हली कि दोसर भीर अयले हे ?" मेहररुआ कहलक कि "हमरा गपिया कह देलक कि ऊ दोसरा भीर चल गेलथुन हे ।" तब मरदनवाँ कहलक कि "चल-चल, हमनी आज ओकरे फेर में पड़ गेली । अब गुहे-मूते धांगली हे, से चल के दूनो नदी में नेहा लीहीं ।" दूनो नदी में नेहाय गेलन ।

एने हलुअइया के 'सरवा' पहुँचल तो घरे केकरो न पवलक । उहाँ बइठल गपिया से पूछलक कि हमर बहिनी-बहनोइया कहाँ गेलन हे ? गपिया कहलक कि "ए जी बाबू, तोर बहिनी के गोदिया में एगो भगिना भी हलवऽ न ?" ऊ कहलक कि हाँ । तब गपिया कहलक कि "ओही मर गेलन हे । से ओकरे दूनो गाड़े गेलथुन हे । इहाँ गाँव हव ? कोई न गेलई बाबू ।" एतना सुन के 'सरवा' दउड़लन नदी किनारे आउ मुरद-घटिया पर पहुँचलन । ओहनी दूनो नेहयले आवइत हलन से सरवा देख के जोर-जोर से रोवे लगलन । दूनो नजीक पहुँचलन तो बहनोइया पूछलक कि "तूँ सार काहे ला रोइत हें ?" सरवा कहकई कि "तोर दलनिया पर एगो अदमी कहलक कि भगिनवा मर गेलउ ।" ई सुन के ओहनी कहलन कि "हमनी भी तो ओकरे फेर में पड़ल ही !" फिनों जा के दूरा पर गपिया से पूछलक कि "हमनी से अइसन गप करे ला हलऊ !" गपिया कहलक कि "तू ही न कहलऽ हल, अभी तो गप करलियो हे, सप बाकी हो !"

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