Monday, March 24, 2008

7.10 अँधेर नगरी चौपट राजा

[ कहताहर - राधे सिंह, मो॰-पो॰ - बेलखरा, जिला - जहानाबाद]

एगो हुरहुंगपुर नगरी में भाजी आउ खाजा एके भाव बिकऽ हल । उहाँ के राजा ई बात के छुट देले हल कि सब चीज एके भाव से बिके के चाहीं । एक रोज ऊ राज में एगो महातमा अपन चलाँक चेला के साथ अयलन । चेला उहाँ के रीत-बेवहार देख के कहलक कि ई जगह रहे लायक नऽ हे । महतमा पूछलन कि काहे ? तऽ चेला कहलक कि "एगो गिरहथ छव गो कोहड़ा बेचे ला बजार में ले गेल तो न बिकलई । राज के बराहिल पहुँचलन आउ ओकरा से उगाही माँगलन । उहाँ सात गो से कम उगाही न लेल जा हल । से बराहिल पूछलक कि तू छवे गो कोहड़ा काहे लवले हें ! ई से ओकर कोहड़ा लावेओला दोहा भी छीन लेल गेल । राजा भिर ऊ न्याय ला गेल तो राजा भी ललकारलन कि तू छवे गो बेचे ला काहे लवले हलें ? सार के धर पकड़ !" ई बात कह के चेला कहलक कि "बाबा, इहाँ मत रहूँ ।" महातमा कहलन कि "इहाँ सब चीज सस्ता तो मिलऽ हे । हिआँ से नऽ चले के चाहीं !" बाकि चेलवा न रहल । ऊ उहाँ से चल के दोसर जगह रह गेल आउ क देलक कि जरूरत पड़तो तऽ बोला लिहँऽ ।"

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