Monday, March 24, 2008

7.08 वजीर आउ बादसाह

[ कहताहर - रामकेशो सिंह, मो॰ - चिलोरी, पो॰ - मखदुमपुर, जिला - गया]

एक दिन राजा वजीर के साथ बइठल हलन कि वजीर के हवा छूट गेल । राजा मुसका देलन । वजीर सोचलन कि राजा के चकावे के चाहीं । संजोग से राजा एक दिन वजीर से कहलन कि मोती पैदा हो सकऽ हे ? वजीर कहलन कि काहे नऽ ? बाकि एकरा में दस हजार रुपया खर्च होतो । राजा तुरते वजीर के दस हजार रुपया दे देलन । घरे आन के ऊ टाँड़ जमीन के कोड़वा देलन आउ जौ बून देलन । जौ जब बढ़ के लहलहायल तो ओकरा पर सीत पड़े लगल । वजीर राजा के पास जा के कहलन कि "हजूर, अब मोती पक के तइयार हे से अब काटे के चाहीं ! राजा खूब अप्पन लाव-लशकर के साथ तड़के मोती काटे चललन । जौ पर गोले-गोले पड़ल मोती के देख के राजा कहलन कि मोती कइसे कटत ? वजीर कहलन कि ओही अदमी काट सकऽ हे जेकरा कहनो हवा न छूटल हे । राजा सबके पूछला सुरू कैलन कि केकरा कभियो हवा न छूटल हे ? बाकि कोई एको अइसन अदमी नऽ मिलल जेकरा हवा नऽ छूटल होय । से राजा रानी के पास अदमी भेजलन कि जा के पूछऽ कि रानी के हवा छुटल हे कि नऽ ? अदमी रानी के पूछे गेल । रानी कहलन कि राजा पूरा बूरबक हथ । ऊ कहिनो वजीर से बहस कयलन हे से वजीर उनका छकावइत हइन । ऊ अदमी राजा के पास आन के सब बात कहलक । राजा सुन के चुपचाप लजायल घरे चल अयलन ।

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