Monday, March 24, 2008

7.06 भुआली पुत्ता

[ कहताहर - श्रीमती गंगजली, मो॰-पो॰ - बेलखरा, जिला - जहानाबाद]

एगो गाँव में एगो मेहरारू हल । ओकरा एगो बेटा हल । ओकर नाम 'भुआली पुत्ता' हल । ऊ सेआन हो गेल तो हर जोते गेल । मतरिया खिचड़ी बना के बेटवा के हरवाही ले-ले जाइत हलई । राह में ओकरा एगो सिआर मिलल । ऊ कहकई कि "गे बुढ़िया, थरिया में का हउ ?" बुढ़िया कहलक कि "एकरा में खिचड़ी हे । बेटा भुअलिआ के खिलावे ला ले-ले जाइत ही !" सिअरा बुढ़िया से कहलक कि "धर दे बुढ़िया खिचड़ी, सुहरा दे मोरा पोंछ !" बुढ़िया खिचड़ी जब रख देलक तऽ सिअरा कुछ खा गेल आउ हीड़-हाड़ के छोड़ देलक । बुढ़िया ओकर पोंछी सुहरावे लगल तो देखलक कि ऊ बंडा सिआर हे । फिनो बुढ़िया भुआली पुत्ता के पास गेल । जा के बेटा के खिचड़ी देलक तो देख के बेटवा पूछकई कि "गे मइया, ई खिचड़िया हीड़ल काहे हउ ?" मइया सिअरवा के सब हाल कहलक तऽ बेटवा कहकई कि "जा के सिअरवा के कह दे कि हम्मर भुआली पुत्ता मर गेल । उनका फलना दिन के काम हे, ऊ दिन तोहनी भोज खाय अइहें !" मइया सिअरा से ई कहके रोवे लगल । एगो पेड़ तर जा के ऊ रोबे आउ एगो तर जा के हँसे । सिअरवा पूछलक तऽ ऊ बतौलक कि "बाबू के गुन इयाद आवऽ हे तो रोआई छूटऽ हे आउ दुसमन के दुख सुनऽ ही तो हँसी छूटऽ हे ।" ई कह के बुढ़िया घरे चल आयल ।

ठीक कयल दिन पर बुढ़िया चूल्हा पर कढ़ाही चढ़ा के ऊपरे से पानी टपकावे लगल । धीकल कड़ाही पर पानी गिरे से छन्न-छन्न के अवाज होयल । सिअरन भोज खाय अयलन हले से पूछलन कि कखनी बीज्जे होयत ? एयना सुन के बुढ़िया बोलल - "तोहनी सिआर हऽ, अपने से खाय के बेरा लड़बऽ से तोहनी के एगो दवाहीं में बाँध देइत हिवऽ !" सब सिआर बन्धा गेलन । तब बुढ़िया बोलल - "कोठी तर के मुँगड़ा निकाल हो भुआली पुत्ता !" भुआली पुत्ता मुँगड़ा निकाल के सब सिआर के मारे लगल । सब दवाँही तोड़ा के भागे लगल तो बन्डा के मार के दाँत तोड़ देलक । अंत में बन्डो भाग के जमात में पहुँचल तो कहलक कि "तोहनी भाग गेलें तो हम पान-भात खयले आवइत ही ।" तब सब सिअरवन कहलन कि पहिले अप्पन दाँत तो देखऽ !

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