Monday, March 24, 2008

7.05 सियार आउ बकरी के साझी (कथा 5.19 के रूपान्तर)

[ कहताहर - श्रीमती गंगा देवी, मो॰-पो॰ - बेलखरा, जिला - जहानाबाद]

एगो बकरी आउ एगो सिआर हल । दूनों में इयारी हल । बकरिया के दोसर एगो सखी कुतिया हल, जेकरा दूगो बेटा हल । कुतिया दूनों बेटवन के जलम दे के मर गेल । बकरिया कुतिया के बेटवा के पोसे लगल । कुतवा ओकरा मौसी कहऽ हल । एन्ने सिअरा कुछ खेत ले-ले हल आउ जोत-कोड़ के ठीक कयलक तो बकरिया से कहलक कि "हम-तूँ साझी हो के खेती करऽ ।" दूनो मिल के राय कर के खेत में बूँट बुनलक । जब बूँट जमल तो बकरी देख के कुछ चर गेल तो सिअरा देख के कहलक कि कल्ह काँटा ला के घोरान घेर दे । बकरी आउ सिआर काँटा ला के घोरान लगौलक आउ हिफाजत करे लगल । जब बूँट पक गेल तो सिअरवा बुँटवा काटे आयल । दूनो मिल के बूँट काटलक आउ देवलक तो बाँटइत खानी सिअरा बोलल - "ए बकरी, तूँ भूँसा के खताहर हें, भूँसा ले ! हम अन्न के खताहर ही, हम अन्न लेबउ ।" एपर दूनों लड़ गेलन । बकरी अन्न आउ भूँसा, दूनों लेवे पर अमादा हल । सिअरवा डेरवलक कि "हमरा अनाज नऽ देबें तो खइये जबउ ।" बकरिया खिसिआयल घरे गेल आउ कुतवन से कहलक कि "देख, सिअरवा हमरा खाय ला कहइत हउ आउ अनजो न देवे ला तइयार हउ । तोहनी चल के खरिहानी में लुकायल रहऽ !"

खरिहानी में जा के फिनो सिअरवा आउ बकरिया बकवास करे लगल । सिअरवा कहलक कि "धर तो बकरिया के खा जाऊँ !" बकरिया कहलक कि "निकलिहें तो रे भाला माना !" एतना सुन के कुतवन निकलल आउ सिआर के रगेदलक । सिआर परान ले के भागल आउ अपन मांद में भाग के घुस गेल । सिअरनिआँ के ऊ सब हाल सुनौलक, जरा मनवा में से बहरी निकल के देख कि हइए हउ कि गेलउ । सिअरनिआँ बोलल कि "तूँ मरद हें, तूँ जा के देखऽ !" इहाँ आन के 'भाला माना' सिआर के मांद पर दूनों दने लुका के बइठल हल । सिअरवा भीतरे से हुलकल तो दूनो कुत्ता ओकर दूनो कान चप्प से पकड़ लेलक । सिअरा चिल्लायल कि "गे सिअरनिआँ, पोंछी धर के तीर !" सिअरनिआँ ओकर पोंछी धर के तीरलक तो ओने पोंछी कुबर गेल आउ कुतवन दूनो कान कुबार लेलक ! सिअरवा ऊ दिन से कनकटा-बन्डा कहलाय लगल । बकरिया तब तक एन्ने सब बूँट आउ भूँसा ढोके घरे धर देलक ।

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