Monday, March 24, 2008

7.04 बेंग रानी

[ कहताहर - परशुराम, तवकला, मो॰-पो॰ - अरवल, जिला - गया]

एगो सुग्गा हल । ऊ गेहूँ चुनलक आउ सुखा-बना के पिसलक आउ सव सेर के एगो लिट्टी लगौलक । लिट्टी जब खाय लगल तो एगो उछिलइत बेंग आयल । बेंग के देख के सुग्गा बोलल -"बेंग रानी, बेंग रानी, लिट्टी लेबऽ ?" बेंगवा बोलल कि "देबऽ तो खयबे करम नऽ तो टुकुर-टुकुर देखइत रहम ।" सुग्गा एगो लिट्टी ओकरा दे देलक आउ पूछलक कि "आउ लेबऽ ?" ई तरह सुग्गा देइत गेल आउ बेंग लिट्टी खाइत गेल । अंत में सुगवो के खा खेल । आगे बढ़ल तो बकरी के चरवाहा मिलल । बेंगवा बोलल कि "बकरिया के चरवहवा भइया, बकरी के दूध पीये देबें ?" चरवहवा जवाब देलक कि "मारम लात कि भरते निकल जतऊ ! बेंग आउ बकरी के दूध पीबे ?" बेंगवा कहकई - "सवा सेर के लीट खइली, सुग्गा अइसन मीठ खइली, तोरा खाइत का बड़ी देरी लागत ?" एतना कह के ऊ चरवहवा समेत बकरी के खा गेल । आगे बढ़ल तो गाय के चरवाहा भेंटल तो बोलल कि "गइया के चरवाहा भइया ! गाय के दूध पीये देबें ?" चरवहवा बोलल कि "मारम लात कि भरते निकल जतऊ ! अदमी के ठेकाने नऽ हे आउ बेंग हो के गाय के दूध पीबें ?" तब बेंगवा कहकई कि "सवा सेर के लीट खइली, सुग्गा अइसन मीठ खइली, बकरी के चरवाहा खइली, तोरा खाइत का बड़ी देरी लागत ?" कह के ऊ गाय समेत चरवाहा के खा गेल ।

************ Entry Incomplete ************

No comments: