Sunday, March 16, 2008

6.06 तीज-पूजा

[ कहताहर - राजकली देवी, ग्राम-पो॰ - खुटहन, जिला - गया]

एगो अदमी हल । ओकर मेहरारू एक दफे तीज कयले हल । ऊ अदमी मेहरारू ला अन्हरिये तीज-पूजा के सब समान आन के रख देलक । मरदनवाँ मेहररुआ के नाद में पानी देवे कहलक तऽ ऊ कहकई कि "हमरा भूखे मिजाज जरइत हे आउ पिआसे कंठ सूखइत हे, चल न होआइत हे, से तू ही दे देहूँ ।" तब मरदनवाँ कोठी पर लुका गेल । मेहररुआ के सब करमात देखे लगल । ऊ देखइत हे कि मार ढेले-के-ढेले भात खयले जाइत हे । सींक में घोंप-घोंप के पिट्ठा खाइत हे । जब पिट्ठा आउ भात खा गेल तब ऊ खीरा के फार के दू फारा खा गेल । एकरा बाद तीन घानी चूरा रखल हल से ओकरो फाँक गेल । मरदनवाँ जब निकलल तो ओकरा से कहलक कि "पंडी जी के जरा सबेरे बोला लइहँऽ । बड़ी भूख लगल हे । पिआसे कंठ सूखल जाइत हे !" मरदनवाँ कहलक कि "पंडी जी के का जरूरत हवऽ ? हम ही पूजा करा देबवऽ ।"

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