Sunday, March 16, 2008

6.04 जइसन करनी ओइसन फल

[ कहताहर - रामप्यारे सिंह, मो॰-पो॰ - बेलखरा, जिला - गया]

एगो बाबा जी हलन - दूगो परानी । दूनो के पेट कहिनो न भरे । बाबा जी केतनो माँगथ बाकि सुख से न रहथ । एही बीच उनका एगो लड़की भी जलम लेलक । कुछ दिन में लड़की बड़की गो हो गेल तो खेवा-खराच के आउ मोसकिल हो गेल । से एक दिन बाबा जी पड़ीआइन से कहलन कि एकरा जंगल में जाइत हीवऽ छोड़ आवे, काहे से कि हमनी दूनो के तो पेटे न भरे हे, एकरा बीच में कहाँ से जुटाईं ? पड़िआइन कहलन कि "जाके छोड़ आवऽ !" बाबा जी बेटी के लेके जंगल में छोड़ के आवे लगलन तो बेटिया बोलल कि बाबू जी, हमरा इहाँ काहे ला छोड़इत हऽ । बाबा जी कहलन कि हमनी दूनो परानी के तो खरचे न चले, तोरा काहाँ से जुटाईं ? तब बेटिया बोलल कि हमरा लेले चलऽ । हम उपाय बतबवऽ त दूनो बाप-बेटी लौट के घरे आ गेलन । पड़िआइन पूछलन कि एकरा फिनो लेले काहे अयलऽ ?

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