Saturday, March 15, 2008

5.21 सियार आउ ऊँट के इयारी

[ कहताहर - देवनन्दन सिंह, मो॰ - चिलोरी, पो॰ - मखदुमपुर, जिला - जहानाबाद]

एगो सिआर आउ ऊँट में बड़ी इयारी हल । एक रोज बतिअइलन कि इयार कहीं फूँट खाय चले के चाहीं । ऊँटवा कहलक कि "हम तो कहीं देखवे नऽ कैलियो हे । तू देखले हें तो चल ।" दूनो चललन तो रस्ता में एगो नदी मिलल । ओकरा में भरल पानी हल । से सिअरवा के पार होवे में मोसकिल होवे लगल । तऽ ऊँटवा कहलक कि हमर पीठिया पर तू बइठ जो । सियार ऊँटवा के पीठ पर बइठ गेल आउ नदी पार हो गेल । ऊ पार गेल तो देखलक कि नदी के दलकी में खूब ककड़ी फरल हे । फूटो फूट के छितरायल हे । दूनो इयार रात में परेम से खूब फूट खयलन । सिअरवा के जल्दी पेट भर गेल तो ऊ कहलक कि "हमरा तो इयार 'भूकवास' लगलो हे ।" ऊँटवा कहलक कि "तनी दम धर । भाग के खेतवा से दूर चल जयबो तो भूकिहें ।"
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