Saturday, March 15, 2008

5.20 जेकर काम वो ही करे !

[ कहताहर - देवनन्दन सिंह, मो॰ - चिलोरी, पो॰ - मखदुमपुर, जिला - जहानाबाद]

एगो धोबी हल । ओकरा एगो कुत्ता हले । एक दिन धोबी कुतवा के खाय ला नऽ देलक । रात में भूखे कुतवा ओकर दूरा पर बइठल हल । धोबिया केगदहा भी ओहिजे ओरी तर ओघड़ायल हल । धोबिया हीं चोर घुसल तो गदहवा कुतवा से कहलक कि "तू तो एकदम नीमकहराम हो गेले । मालिक हीं चोर घुसल हइ आउ तोरा भुकिए नऽ होअउ ?" भूखे कुतवा खिसिआयल हल । से कहलक कि "हम नऽ भूकवइ । चोरावे ला हइ तो चोरावइ, हमरा गरज न हे ।" गदहवा कहलक कि हम तो हल्ला करके मालिक के जगा दे ही । तऽ कुतवा कहलक कि "देख सार, भूके के काम हम्मर हे, तू करवें तो ओकर फल मिल जतउ ।' तइयो गदहवा के न रहल गेल । ऊ जोर-जोर से हेच्चों-हेच्चों करे लगल । धोबिया दिन भर ढायँ-ढायँ लूगा फिचलक हल आउ थक के खूब जोड़ से नीन में सूतल हल । गदहवा जे हल्ला कयलक से ओकर नीन टूट गेल आउ खिसिआयल मुँगड़ी उठा के लगल ओकरा पीटे । मार मुँगड़ी, मार मुँगड़ी ऊ गदहवा के अधमरू कर देलक । धोबिया के उठे से चोरवन तो भाग गेल बाकि जब धोबिया सूत गेल तो कुतवा कहऽ हे गदहवा से कि "अबकहीं न कहलिउ हल रे सार कि जेकर काम ओकरे साजे - दोसर करे तो डंटा बाजे ! से अब तो सांत हो गेले नऽ ?" खिस्सा गेलो वन में, समझऽ अप्पन मन में ।

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