Saturday, March 15, 2008

5.16 चोरी के फल

[ कहताहर - रवीन्द्र चौधरी, मो॰-पो॰ - अकलबिगहा, जिला - गया]

एगो अदमी एगो मैना पोसले हल । ऊ रोज घरे हर जोत के आवे तो पहिले मैनवे के खिआवे तब अपने खाय । एक दिन घरे आन के पहिले अपने खाय लगल तब खेयाल पड़ल कि मैनवाँ के नऽ खिअइली हे । से जा के देखे लगल । तऽ मैनवा उहाँ हइये नऽ हल । मइया से पूछलक कि मैनवा का हो गेल ? मइया कहकई कि आज रजवा के बेटवा तो आयल हलवऽ, ओही तो नऽ ले गेलवऽ हे । से ऊ तुरते गाड़ी पर चढ़ के मैनवा के खोजे निकलल । जाइते-जाइते एगो बीच्छी मिलल । बीछिया कहलक कि "ए मन्नू भाई, ए मन्नू भाई, हमरो गड़िया पर ले ले चलवऽ ?" से मन्नु भाई ओकरा गाड़ी पर चढ़ा लेलक आउ बड़ी खुसी में गाना गावइत चलल -
"सींक के मोरा गाड़ी रे गाड़ी,
मध लादले जातु हैं ।
राजा मोरा मैना के ले भागल,
ओकरे खोज में जातु हैं ।।"

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