Saturday, March 15, 2008

5.14 कउआ आउ गुहली

[ कहताहर - अवनीन्द्रनाथ, मो॰ - मगही लोक, पो॰ - तूतवाड़ी, जिला - गया]

एगो पेड़ पर गुहली हल । ऊ रोज एगो अंडा दे हल । ओही पेड़ पर एगो कउआ रहऽ हल । ऊ रोज गुहलिया के अंडवा फोर के खा जाय । एक दिन गुहलिया कहलक ि "गंगा जी से ठोर धोके अयवें तो अंडा फोर देवउऽ !" कउआ गंगा जि में ठोर धोवे गेल आउ गंगा जी से बोलल -" "गंगली ! गंगली ! दे पंडुली, ठोर धोवानी खा गुहली के बच्चा रे चेंव, चेंव !" गंगा जी कहलन कि जो कुम्हार हीं से चुक्का माँग के ले आव । ऊ कुम्हार हीं गेल आउ कहलक - "कुम्हरी ! कुम्हरी ! दे चुक्कली, ले गंगुल्ली, दे पंडुली, ठोर धोवानी, खा गुहली के बच्चा रे चेंव, चेंव !" तब कुम्हरा कहलक कि "जो मटखान में से मट्टी ले आव । तब नऽ गढ़ के चुकवा देवउ !" कउआ उड़ल आउ मटखान में जा के बोलल - "मटुल्ली ! मटुल्ली ! ले कुम्हल्ली, दे चुकल्ली, ले गंगुल्ली, दे पनुल्ली, ठोर धोवानी, खा गुहली के बच्चा रे चेंव, चेंव !" तब मटखनवा कहलक कि "हरिन के सींघ ले आवऽ तब न कोड़ के देवउ !" तऽ कउआ हरिन भीर गेल आउ कहलक - "हिरनी ! हरिनी ! दे सींघल्ली, कोड़ मटिल्ली, ले कुम्हरी, दे चुकल्ली, ले गंगुल्ली, दे पनील्ली ठोर धोवानी, तब नऽ खा गुहली के बच्चा रे चेंव, चेंव !" तऽ हरिनिया कहकई - "जो कुत्ती के लड़े ला बोला लाव । तब नऽ लड़ के सींघ तोड़तउ !" कउआ कुत्ती भीर गेल आउ बोलल - "कुतली ! कुतली ! लड़ हरिन्ना, तोड़ सींघल्ली, कोड़ मटिल्ली, दे कुम्हल्ली, गढ़ चुकल्ली, दे गंगुल्ली, ले पनुल्ली, तब न ठोर धोवानी खा गुहली के बच्चा रे चेंव, चेंव !" तऽ कुतिया कहकई कि "जो गाय के दूध ले आव तब नऽ पी के हरिनियाँ से लड़वउ !" तब गाय से जा के कहलक - गयली, गयली ! दे दुधिल्ली, पी कुतिल्ली, तोड़ सींघल्ली, कोड़ मटिल्ली, दे कुम्हल्ली, गढ़ चुकल्ली, दे गंगुल्ली, ले पनुल्ली, तब न ठोर धोवानी खा गुहली के बच्चा रे चेंव, चेंव !" तब गइया कहकई कि "जो घास ले आव । तब न खा के दूध देवउ !"

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