Saturday, March 15, 2008

5.13 सियार के चलाँकी

[ कहताहर - अवनीन्द्रनाथ, मो॰-पो॰ - बेलखरा, जिला - जहानाबाद]

एगो सियार हल । ऊ रोज एगो दरिआव में पानी पीये जा हल । ओकरा में एगो घड़ियाल रहऽ हल । रोज-रोज जाय से सियरवा आउ घड़ियलवा में इयारी हो गेल हल । रोज सब एक जगुन जुटथ आउ आपस में बातचीत करथ । कुछ दिन के बाद घड़ियलवा के मन में कपट घुस गेल आउ ऊ चाहलक कि सिअरवा के खा जाऊँ । तऽ एक दिन घड़ियलवा पूछलक कि "इयार, तूँ रोज कहाँ पानी पीये जा हऽ !" तो सियरवा कहलक कि "तूँ तो रोज देखवे करऽ हऽ !" घड़ियलवा कहलक कि "आजकल इयार, बराबर न देखऽ हीवऽ !" तऽ सियरवा कहलक कि "हम तो एहीजे पँकड़वा तर रहऽ ही आउ ओहिजे घटिया पर पानी पीयऽ ही !" घड़ियलवा सोचलक कि जब ऊ रात में पानी पीये आवे तो पकड़ के खा जाईं " से एक दिन रात के पाँकड़ के पेड़ पेड़ के नीचे घात लगवले पानी में पड़ल हल । सियरवा पानी पीये आयल आउ पानी पीये लगल, तब घड़ियलवा सियरवा के गोड़ पकड़ लेलक । सियरवा असमंजस में पड़ गेल ।

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