Saturday, March 15, 2008

5.11 बिआही अउरत के छोड़े के फल

[ कहताहर - जगदीश सिंह, ग्राम - ऐम (बाराचट्टी), जिला - गया]

एक समय दूगो जवन बादशाह आउ वजीर अखाड़ा में कुस्ती करइत हलन । ऊ घड़ी गाँव में भारी बरात आयल हल । बरात देख के राजा-वजीर घूरलन तो बतिआइत हथ कि "हमनी के सादी के जानकारी नऽ हे । अप्पन माय-बाप के पूछे के चाहीं आउ कल फिन अखाड़ा में बतियाल जायत ।" दोसर दिन दूनो अखाड़ा में अयलन आउ बादसाह भी अप्पन सादी होवे के हाल कहलन । ओहनी फिन बतिअयलन कि हमनी के ससुरार चले के चाहीं । दूनो इयार ससुरारी चललन आउ चलइत-चलइत बादसाह अप्पन ससुरारी के गाँव में पहुँचलन तो उहाँ एगो फुलवाड़ी में घुसलन । उहाँ देखलन कि एगो लड़की बीच फुलवाड़ी के पक्का इनार पर नेहइत हे । बादसाह वजीर से पूछलन कि "हम ओकरा से सवाल-जवाब करे ला चाहइत ही ।" वजीर कहलन कि "ई ठीक नऽ हे । कहीं गारी-उरी दे देलक तो अचछा नऽ होयत ।" तइयो बादसाह एगो सवाल करिए देलन -

किया रे हवऽ प्यारी माथे रे मइसनवा जी,
किया हवऽ केस झाड़ऽरन जी ?
किया जे हवऽ प्यारी पानी भरनवा जी,
किया हवऽ लाऽमी डोर जी ?

************ Entry Incomplete ************

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