Friday, March 14, 2008

5.09 साँप आउ बेंग के इयारी

[ कहताहर - नन्दकिशोर सिंह, मो॰ - बरैल, पो॰ - वजीरगंज, जिला - गया]

एगो जंगल में बड़का गो पोखरा हल । पोखरवे के किनारे एगो झोड़ार में एगो बड़का गो साँप रहऽ हले । ऊ जब पलखत पावे तो बेंग के पकड़ लेवे आउ खा जाय । ई तरह ऊ ढेर दिना से अप्पन जिनगी बिता रहल हल । ओकरा जब बुढ१ारी आ गेल आउ तेजी से ओकर घूमना-फिरना बंद हो गेल तो ऊ बड़ा फेरा में पड़ल । ऊ सोचलक कि अब कइसे दिन कटत ? चले-फिरे के हूवा तो हे नऽ आउ बइठले-बइठले खाय ला कइसे जुमत । बाकि ऊ सँपवा हल बड़ी चलाँक । से एक दिन कइसहूँ गते-गते ससरइत-ससरइत पोखरा किनारे गेल आउ चुपचाप मन मारले बइठल हल ।ओकरा पर कीड़ा-पिल्लू चढ़ रहल हल बाकि ऊ सुगबुगायतो न हल । खाली टुकुर-टुकुर देखइत हल । ओकरा ई हाल देख के बेंगवन के राजा ओकरा से पूछलक - "आज तोर ई हाल काहे हो गेल हे ?" सँपवा तो पहिले कुछ बोलवे न करे आउ मरियल नियन चेहरा गिरवले जाय । बेंग राजा फिनो पूछलक कि हमर कि हमर राज में कोई दुखी-उदास न रह सके । इहाँ पानी में सब कोई उछले-कूदे हे । सँपवा बेंगवा के ई बात सुन के भीतरे प्रसन्न होयल । कहलक कि नदी में नेहायत खानी हम एगो बाबा जी के लइका के गोड़ में काट लेली हल, से ऊ मर गेल हल बाकि बाबा जी हमरा सराप दे देलन कि तू बेंग नियन एन्ने-ओन्ने उछिलल चलऽ हें आउ अदमी के जान ले लेहें । से जो बेंगवा के जब तक सौ बरस तक सेवा न करवे तब तक तोर उद्धार न होतउ । से का करीं, हम तो उनकर सराप से डर के तोहनी के सेवा में इहाँ आ गेली हे । तोहनी जे कहबय से आज से करम । बेंग राजा कहलक कि "तूँ तो बूढ़ा हो गेलऽ हे । तोरा से काम तो जादे बनतवऽ नऽ । से हमनी के लइकवन के खेलावल करऽ ।"

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