Friday, March 14, 2008

5.08 गुनग्राही राजा

[ कहताहर - नरायण दास, मो॰-पो॰ - खटहन, जिला - गया]

एक दफे दूगो दोस्त बाहर चललन तो राह काटे ला एगो कथा सुरू कयलन । दूसरका दोस्त कहे लगल कि संसार में चार चीज सबसे बढ़ के हे । जल में गंगा, फल में आम, भोग में स्त्री-भोग आउ धन में लछमी । ई बतिआ एगो कपड़ा धोइत धोबिन सुनलक तो एहनी पर बिगड़ल आउ रोवे लगल । रोवाई सुन के कई लोग जुट गेलन आउ एहनी दूनो से पूछलन कि तोहनी का कह देलहीं कि ई रोवे लगलई । दूनो में से एगो कहलक कि हमनी कथा कहऽइत जाइत हली से सुन के ई गरिआवे लगल आउ रोवे लगल । तइयो लोग ओहनी के पकड़ के राजा के पास ले गेलन । धोबिनियाँ के भी बोलाहट भेल । ओकरा से पुछला पर धोबिनयाँ कहलक कि हमरा एहनी कुछो न कहलन हे बाकि एहनी के गलत कथा पर हमरा दुख होल हे । ओही ला हम रोइली आउ खिसिअइली हे । राजा फिनो कहलन कि "ओहनी के कथा में जे गलती हे से हमरा बतावऽ ।" तऽ धोबिनियाँ कहलक कि हमरा का इनाम मिलत ? राजा जवाब के बदला में आधा राज-पाट देवे ला कहलन । धोबिनियाँ कहलक कि जल में इनरा के जल बड़ा, फल में पुत्र-फल बड़ा, भोग में अन्न-भोग बड़ा आउ धन में विद्या-धन बड़ा हे । राजा ई उत्तर सुन के खुस होयलन आउ धोबिनियाँ के आधा राज-पाट इनाम में दे देलन । राजा जान गेलन कि धोबिनियाँ बुधवान हे । ई राज-पाट भी बढ़िया से चला लेत । खिस्सा खतम - पैसा हजम ।
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