Friday, March 14, 2008

5.06 खाना, हँसना आउ रोना

[ कहताहर - उमेश प्रसाद, मो॰ - धनगाँवा, पो॰ - बीजूबिगहा, जिला - नवादा]

एक ठो बटेर हलै आउ एक ठो सिआर हलै । दूनो में बड़ी दोस्ती हलै । एक दिन सिअरा कहलकै कि "ए यार जी, हमरा दही खाय के मन करऽ हको ।" तब बटेरवा कहलकै - "बेस ।" एक दिन तीन-चार ठो गोवारिन दही बेचे ला चलल आवऽ हलै से बटेरवा अगली खचीवा पर जा के बैठ गेलै । तब पिछली देखलकै आउ कहलक - "सखी बटेर ! सखी बटेर ! सखी बटेर ! बटेर हो !" से ऊ खचीवा रख के बटेरवा पकड़े लगलै । जब तक एने सिअरवा आके सभे दहिया खा के आउ मटकिया में हग-मूत के भाग गेलै । आ के ऊ सब देखऽ हे कि "ए सखी, ई तो सब हगल-मूतल हे ! अब की करऽ हऽ, से चलऽ अब !"

एक दिन फेर सिअरा कहलकै कि "ए यार जी, हमरा हँसे के मन करऽ हे !" तब बटेरवा कहलकै - बेस भाय । से एक दिन एक ठो सिपाही लाल मेरेठा बान्ह के दू-तीन ठो चौकीदार के साथ जा रहले हल लाठी ले के । सिपहिया आगे-आगे आउ चौकीदरवन पाछे-पाछे जा हलै । से बटेरवा जा के सिपहिया के मथवा पर बैठ गेलै । चौकीदरवा देख के कहलकै 'बटेर ! बटेर !' आउ एक लाठी सिपहिया के मथवा पर चला देलकै । सिपहिया के मथवा फट गेलै । तब सिअरा के हँसते-हँसते पेट फटे लगलै । सिपाही डागडर हीं गेलै ।

दोसरा दिना सिअरा बटेरवा से कहलकै कि "ए यार जी, अब काने के मन करऽ हो ।" बटेरवा कहलकै - बेस ! बटेरवा कहलकै कि तूँ हमरा से कुछ पाछे रहिहँऽ । सिअरा वैसहीं करलकै । एक दिन बटेरवा वैसन जगह गेलै कि जहाँ आठ-दस ठो कुत्ता के जमात हलै । वहैं पर बटेरवा उड़ के गेलै आउ पीछे से सिअरो गेलै । अब तो कुतवा झोल-झाल के खूब मारलकै आउ ओकर देहिया-उहिया नोच-नाँच के छोड़ देलकै । जब सिअरा लौट के अयलै तऽ बटेरवा कहलकै - "यार जि, तूँ तो कहली हल कि हमरा काने के मन करऽ हकौ तब कना देलियो । तूँ हमरा अब की कहऽ हें ? अब तूँ कानवें करमें !"

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