Wednesday, March 12, 2008

5.05 राजा के पहचान

[ कहताहर - उमेश प्रसाद, मो॰ - धनगाँवा, पो॰ - बीजूबिगहा, जिला - नवादा]

एक ठो राजा हलै । से अपन मंत्री आउ नोकर के साथे ले के सैर करे गेलै । घुमते-घुमते ऊ सब एक जंगल में पहुँचलै । हुआँ रजवा के बहुत जोर से पिआस लगलै । ऊ अपन नोकरवा से कहलकै कि पानी ला दे । वहैं पर एक ठो कुटिया हलै । ऊ कुटिया में एक ठो आन्हर साधु जी रहऽ हलै । नौकरवा ऊ कुटिया के सामने जा करके कहलकै - "अरे अन्हरा, तोरा पानी हो तऽ दे हमरा ।" तऽ सधुआ कहलकै कि "हम नीच नौकर के पानी ना देवो !" नौकरवा उहाँ से लौटलै आउ कहलकै रजवा से कि "अन्हरा बड़ी खच्चड़ हौ, से पनिया नञ देहौ ।" रजवा मंत्रिया से पानी ले आवे ला कहलकै । मंत्रियो अन्हरा के पास गेलै आउ सधुआ से कहलकै -"ए अन्धरा भैया, थोड़े सान पानी लाहीं तो ।" तब सधुआ मंत्री से कहलकै - "तू मंत्री हऽ सेकरा से की ? हम पनिया नञ देवो !" मंत्री भी खाली हाथ लौट गेलै । तब तेसर दफे रजवा खुद्दे वहाँ पहुँचलै आउ सधुआ से कहलकै - "ए महात्मा जी, हमरा बहुत जोर से पियास लगल हे । कृपा करके थोड़ा सिन पानी दऽ ।" सधुआ कहलकै -"राजा जी, बैठ जा, हम अभी तुरते पानी लावऽ हियो ।" रजवा कहलकै -"हम पनिया पीछे पीवो । पहिले किरपा करके ई बताहो कि तोहरा तो जना हको नऽ, तऽ तूँ कइसे जान गेलो कि हम राजा हीहे । आउ हमरा से पहिले अयलै से मंत्री हलै !" उ साधु जवाब देलकै कि "हम बोलिया से पहचानऽ हियो ! 'अरे' कहेवाला नोकर होवऽ हे आउ मंत्री के बोली नोकरे नियन होवऽ हे । राजा के बोली में आदर-भाव, सत्कार भरल रहऽ हे । से तूँ राजा बने के लायक हका । जे जेतना ऊँचा पद पर रहऽ हकै ओतने ओकर बोली में मिठास आउ नेवतई रहऽ हकै ।"

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