Wednesday, March 12, 2008

5.04 लतीफ मियाँ के होसियारी

[ कहताहर - रामविलास वर्मा, मो॰-पो॰ - बेलखरा, जिला - गया]

एगो राजा हलन । रात के समय में ऊ रोज अप्पन बस्ती में घूमऽ हलन । एक दफे एगो गरीब अदमी लतीफ मियाँ के दरवाजा पर ठहर गेलन । उनका एगो लड़की आउ मेहरारू हलन बाकि लड़किया दोसरा के साथे एक दिन निकल गेल हल । ऊ रात के लतीफ मियाँ अप्पन मेहरारू से बतिआइत हलन कि "जेकरा माल होवे ऊ धरती में गाड़ देवे न तो पढ़ावे-लिखावे में लगा देवे ।" जब लड़की दसेयान हो जाय तऽ ओके ओके मरद के साथ भेज देवे ।" राजा ई बात सुनलन आउ अप्पन मकान चल अयलन । राजा मियाँ जी के एगो हाथी पर सिपाही से बोलवौलन । आवते मियाँ जी राजा के पैर पर गिर गेलन तो राजा जी कहलन कि "डेराय के जरूरत न हे । हम जे पूछवऽ ओकर जवाब दिहँऽ ।" राजा जी पूछलन कि "तूँ आधा रात में का बतिआत हले ? सच-सच कह ।" तब लतीफ मियाँ कहलन कि "हम तो कुच्छो न बतियात हली । हम्मर एगो लड़की हले, से खराब काम करके दोसरा के साथे भाग गेलै । हर घड़ी मेहमान आवथ बाकि उनका लौटा देल जा हल । एकरे से हमर लड़की भाग गेलै । हम एही तो बातचीत करइत हली आउ कुच्छो न सरकार । आउ एक बात एहूँ कि "अप्पन माल गाड़ के रखे, फाजिल होवे तो पढ़ा-लिखा देवे । सेयान लड़की अप्पन घर चल जावे ।" एतना सुन के मियाँ जी के राजा जी पाँच बिगहा जमीन दे देलन आउ हाथी पर चढ़ा के घर लौटा देलन । मियाँ जी खुसी से अप्पन जागीर में रहे लगलन ।

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