Sunday, March 9, 2008

5.03 बन्दर के चलाँकी

[ कहताहर - जद्दू मेहता, मो॰-पो॰ - बेलखरा, जिला - गया]

एगो नदी में मगर आउ किनारे पर एगो बन्दर रहऽ हल । दूनो में खूब दोस्ती हल । नदी पार जामुन फरल तो मगरवा अप्पन इयार से कहलक कि "इयार हम्मर पीठ पर चढ़ के नदी पार हो जा आउ जामुन तोड़ के खिलावऽ ?" मगर पानी से ऊपरे छहला गेल आउ बानर ओकर पीठ पर बइठ के नदी पार हो गेल । जामुन तोड़ के ऊ इयरवा ला गिरावे लगल आउ अपने भी खाये लगल । दूनो रोज अइसहीं जाथ आउ जामुन खाथ ।

एक दिन मगरवा के मेहररुआ कहलककि "हमरा बानर के करेजा खाय के मन करइत हे । से ऊ बनरा के करेजवा ले आवऽ ।" मगर कहलक कि ऊ हमर इयार हे, ओकर करेजा कइसे काढ़व ?" एकरा पर मेहररुआ जिद्द रोप देलक आउ अन्न-पानी सब तेयाग देलक । तब मगरवा लचार होके कहलक कि ओकर करेजा कइसे काढ़ब ? मेहररुआ कहकई कि "जब नदिया पार करे लगिहँऽ तो नीचे बइठ जइहँऽ । ऊ डूब के मर जतवऽ आउ हम ओकर करेजा निकाल के खा जायम ।" तब मगर बंदर के पास आयल आउ आन के जामुन तोड़े ला कहलक । बंदर ओकर पीठ पर बइठ के नदी पार होवे लगल । बीच नदी में गेल तो बोलल कि "इयार, हमरा बानर के करेजा चाहीं ।" तब बनरा कहलक कि "हम तऽ अपन करेजवा जमुनवें के पेड़वा पर रख देली हे । चल के दे देबवऽ ।" मगर ई सुन के बनरा के नदी पार करा देलक । बनरा उछिल के पेड़ पर चल गेल । मगरवा करेजा माँगलक तो बनरा कहलक कि "करेजा भी कहीं देह से बाहर रहऽ हे ?"

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