Sunday, March 9, 2008

5.01 खोपड़ी के मोल

[ कहताहर - डॉ॰ रामनन्दन, पूर्व प्राध्यापक, भूगोल विभाग, पटना कॉलेज, पटना]

एगो राजा हलन । उनकर दरबार में बड़ा-बड़ा विदवान अदमी रहऽ हलन । एक दिन उनकर दरबार लगल हल कि एक-ब-एक छत पार फार के एगो भूत बीचे दरबार में आ गेल । ऊ अप्पन हाथ में एगो खोपड़ी लेले हल । ओकरा देख के सब दरबारी काँप उठलन । ऊ राजा के तरफ खोपड़ी देखा के बोलल - "बोल ई खोपड़ी के मोल, न तो दरबार सहिते सभे के चबेनी बना के चिबा जबउ ।" ई बात सुन के सब थरथर काँपे लगलन । ऊ भुतवा कहलक कि चाबीसवाँ दिन एकर जवाब न देवें तो सभे के खा जवउ । ई कह के भुतवा हहास कर के चल गेल । दरबार में तो खलबली मच गेल । सब्भे दरबारी कुछो जवाब न मिले से तबाह हो गेलन । ओकरा में एगो लम्बोदर पंडित हलन । ऊ घरे आन के अप्पन मेहरारू से पूछलन त कुछो जवाब न मिलल । ऊ कहलन कि हम एकर जवाब खोजे बाहर जयवो ।

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