Saturday, March 8, 2008

4.30 पिताभक्त राजकुमार

[ कहताहर - सूर्यदेव सिंह, ग्राम - दनई, पो॰ - जाखिम, जिला - औरंगाबाद]

एगो राजा हलन । उनका एगो बेटा हल । कुछ दिन के बाद राजा के अउरत मर गेलन । राजा फिन अपन सादी करे ला बेटा से पूछलन तो ऊ कहलक कि "एकरा में हमरा का उजूर हे ? दूसर माय आवत तो हमनी सबहे के आराम होयत ।" से बेटा राय दे देलक ।

एकरा बाद राजा के बिआह के तइयारी हो गेल । चट मँड़वा, पट भतवान । राजकुमार सपना देखलक कि बापजान के तीन गो बड़ी भारी गरह हे । अगर ई तीनो गरह से बच जयतन तो फिनो कुछ न होयत - (1) बराती जलमासा लगत तो आँधी-पानी आवत आउ पेड़-बगाद गिर के सब बराती सहित बापजान मर जयतन (2) बराती दरवाजा लगत तो किला के ढह जाय से राजा मर जयतन आउ (3) राजा ई सब से बच जयतन तो कोहवर में आधा रात में बड़ेरी से साँप लटक के काट देत आउ राजा मर जयतन । ई तीनो गरह से बच गेला पर राजा के कुछो न होयत । लड़का सोचलक कि बापजान के जाने भी न देईं आउ उनकर परान भी बचा लेईं ।


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