Friday, March 7, 2008

4.26 मुरुख पाँड़े के ढोंग

[ कहताहर - मदन, मो॰-पो॰ - चतरा, जिला - चतरा]

एगो बाबा जी के एके गो लड़का हलन । से बाबाजी अपन लइका के पढ़े ला कासी जी भेजलन । उहाँ ऊ केतनो पढ़थ बाकि कोई बात उनकर मगज में घुसवे न करे । केतनो पढ़े के कोरसिस कैलन बाकि ऊ कुछो न पढ़ सकलन तो एक रोज कासी छोड़ के घरे चल अयलन । रस्ता में एगो कुआँ पर पनिहारिन मिललन । पाड़े जी उहाँ पानी पीये गेलन तो पनिहरनियन पूछलथिन कि तू कहाँ से आवइत हऽ आउ कहाँ जइवऽ ? पाँड़े जी कहलन कि "हम कासी जी पढ़े गेली हल । कई बच्छर उहाँ रहली बाकि कुछो न सिखली । से घरे घूरल जाइत ही ।" ओहनी कहलथिन कि हमनी के डोरी पेटारी के हे बाकि एकरे रग्गड़ से कुआँ के पक्का खिया गेल हे । अइसहीं तू रग्गड़ करऽ तो विद्या सीख जयवऽ । पाँड़े जी सोचलन कि रग्गड़ करे से का न आ जा हे ? अगम विद्या भी अदमी अइसहीं न सीख जा हे ।

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