Friday, March 7, 2008

4.24 मसमात के लचारी

[ कहताहर - बच्चू सिंह की पत्नी, ग्राम - बलुआपर, पो॰ - गया, जिला - गया]

एगो ढेर दिन से मसमात हल । एक दफे भगवान जी (जमींदार जी) के लड़का के सादी होइत हल । तब गोहुम पीसे ला घरे-घर बाँटल जाइत हल । भगवान जी मसमात के दू पसेरी गोहुम देलन आउ सब के पीसे ला एकेक पसेरी गोहुम देलन । सब कोई एक-एक पसेरी गोहुम पीस-पास के दे देलन । मसमात अभी गोहुम पीस के न देलक हल काहे से कि ओकरा हीं घामा न उगल हल । तब सब लोग सलाह देलथिन कि कहऽ - "हमरा हीं घामा उगे भगवान, हम तोरा कुछ देबवऊ ।" ऊ अइसहीं कहलक आउ घामा उग गेल । ऊ आँटा पीस के भगवान जी हीं दे देलक । दोसर दिन भगवान जी ओकरा हीं गेलथिन । तब मसमात कहलक कि दोसर दिन आवऽ, आज लीपल-पोतल नऽ हे । दोसर दिन घर लीप-पोत के मसमात दूसर अदमी हीं चल गेल । एतने में भगवान जी ओकर घरे गेलन आउ मसमात के उहाँ न देखलन । तब भगवान जी खिसिया गेलन आउ ओकर कोना में मूत देलन । उहाँ कुचकुच हरिअर गेन्हारी साग जम गेल ।

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