Friday, March 7, 2008

4.20 स्वार्थी पड़िआइन

[ कहताहर - नन्हें, ग्राम-पो॰ - बेलखरा, जिला - जहानाबाद]

एगो पंडित जी हलन आउ एगो पड़िआइन जी । एक दिन पड़िआइन कहलन कि "ए पंडी जी, तू मर जयवऽ तऽ हम बड़ी रोववऽ । हमरा रहल न जायत । तोहर जिनगी में हम कुछो न खैली !" तब पंडी जी कहलन कि कुछो न खैलऽ ? पड़िआइन, लावऽ तो झोला, हम माँग के ले आईं ।" तुरते पंडी जी खीर बनावे के सब समान लेके अयलन । पड़िआइन जी भी खीर बना के रख देलन । पंडी जी कस के सूत रहलन तो पड़िआइन उठावे गेलन तइयो ऊ न उठलन आउ मरल अइसन कर देलन । तब पड़िआइन जी कहऽ हथ कि पंडितवा मर गेल । तब पड़िआइन जी सोचलन कि हल्ला करऽ ही तो सब खीर बिगा जायत । ई से ऊ सपासप खीर खाय लगलन आउ कहलन कि "सइयाँ रे गुर सइयाँ, खीर सपासप खइयाँ ।" सब खीर पड़िआइन जी खा गेलन आउ जाके गाँवओलन के बोला अयलन कि पंडी जी मर गेलन हे । पंडित जी एतना मोट हलन कि दुआरी में अँटवे न करथ । तब सब कोई कहे कि दुआरी ढाह दऽ बाकि पड़िआइन जी कहलन कि अब तो पंडी जी मरिये गेलन । अब का होत ? से इनकरे काट के दुअरिया पार कर देहूँ । बाकि कोई काटे ला तइयार न भेल तब पड़िआइने जी पंडी जी के काटे ला तइयार भे गेलन । पंडी जी ओतिये घड़ी उठलन आउ पड़िआइन जी के मार के गड़हरा भरा देलन आउ दूसर सादी करके सुख से रहे लगलन ।

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