Wednesday, March 5, 2008

4.11 एगो ब्राह्मण के कहानी

[ कहताहर - रमेन्द्र कुमार, मो॰ - बीजूबिगहा, जिला - नवादा]

कोय गाँव में एक ब्रह्मण हलै । ओकरा एकी बेट हलै । कुछ दिना के बाद बप्पा मर गेलै तो बेटवा काम-किरिया कर के सुख से रहे लगलै । कुछ दिना के बाद माय-बेटा में झगड़ा होलै । तब बेटवा रूस के भागल जाय लगलै । केतनो समझावे से नै मानलै । भागते-भागते रस्तवा में एगो बूढ़ा मिललै । बुढ़वा कहलथिन कि तूँ कहे ला भागल जा हे ? तोरा जे जजमनिका हौ से के सम्हालतौ ? त ऊ कहलकै कि हम जजमनिका न सम्हालवै । हमरा पढ़े के मन करऽ हे । तब बुढ़वा कहलकै कि तूँ अप्पन जाति पढ़िहैं आउ दोसरा जाति से नै पढ़िहें चाहे कोई कुछ कहौ । ऊ तीन-चार इस्कूल में पूछलकै तो ओकरा अप्पन जाति न मिललै । ओकर सादी होल हलै से घूमते-घामते ऊ अप्पन ससुरार चल गेलै । ओकर ससुर पढ़ावऽ हलथिन । तब ऊ कहलकै कि "ए मायँ, इहाँ हम भी पढ़वै से गुरुजी पढ़ैथिन ?" तब पूछे पर पता चललै कि गुरुजी पढ़ैथिन । तहिना से ऊ वहैई पढ़े लगलै । वहैं से ओकरा ससुररिया के सभे लोग चीन्हऽ हलै । ओही इसकुलवा में एगो राजा के लड़का भी पढ़ऽ हलै ।

********* Entry Incomplete **********

No comments: