Wednesday, March 5, 2008

4.09 करकसा पड़िआइन

[ कहताहर - गुलबिया, मो॰-पो॰ - बलखरा, जिला - जहानाबाद]

एगो पाँड़े जी के मेहरारू दोसर से फँसल हले । ऊ रोज माँग के आवथ तो ऊ बेमारी कछले रहे आउ कहे कि "तीन गो लिटिया पकइहें रे रमवाँ, एगो कोठिया के कन्हवा चढ़इहें रे रमवाँ, उहूँ-उहूँ-हूँ-हूँ-हूँ .... ... एगो अपने खइहें रे रमवाँ, एगो हमरा दिहें रे रमवाँ, असल के होयवे तो ओकरो में से आधा छोड़वे हो रमवाँ, उहूँ-उहूँ-हूँ-हूँ ।" ऊ रोज अइसहीं करे आउ पाँड़े जी भूखे रह जाथ । ऊ एक दिन मेहरारू के बेमारी से चिंतित होके अप्पन बहिनी के लिआवे गेलन आउ रो-रो के सब हाल कहलन तो बहिनी समझ गेल आउ भइवा से कहलक कि "जाके गरम पानी करके कोठी में डाल दऽ । ओकर इअरवा उहँईं मर जतवऽ । बस, ओकर बेमारी ठीक हो जतवऽ ।"

बाबा जी घरे आन के तीनछिया चूल्हा पर खूब पानी गरम कयलन तो पड़िआइन पूछलन कि "हम भूखे मरल जाइत ही आउ तूँ खाली पानी गरम करइत हऽ ।" पाँड़े जी कहलन कि "कोठिया में 'सूढ़वा' लगल हे ओकरे मारे ला करइत ही ।" पड़िआइन केतनो मना कयलका पर ऊ न मानलन आउ पानी खउला के कोठी में डाल देलन । पड़िआइन के इयार उहँईं सीझ के मर गेलन । बाद में पड़िआइन के भी जान मार देलन आउ कोला में गड़हरा खन के राते में दूनो के गाड़ देलन । बाद में पाड़ जी दूसर विआह करके सुख से रहे लगलन ।

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