Saturday, February 23, 2008

3.07 बितनवाँ

[कहताहर -- जितेन्द्र प्रसाद, 8 वाँ वर्ग, बीजूबिगहा, जिला - नवादा ]

एक ठो बितनवाँ हलै । ऊ अप्पन मइया के कहलकै ने कि ए माय, तू हमरा एगो भैंस ले दे । हम ओकरा से कमैबे-खयबे । ओकरा मइया हलै ने, से एगो भैंस ले देलकै । बितनवाँ ओकरा चरावे लगलै । एक दिन बितनवाँ भैंसिया के छोड़ के खाय चल अयलै और राजा जी के बगान में बैंगन के पेड़ हलै से बितनवाँ के भैंसिया खा गेलै । बस राजा जी ओकर भैंसिया के काट देल्थी । बितनवाँ कहलकै ने कि ए राजा जी, भैंसिया तो काटिये देला, से ओकर चमड़वा हमरा दे दऽ । राजा जी कहलथिन कि ले जाय न रे ! ओकरा हम की करबै ? बितनवाँ चमड़वा ले लेलकै । बगिया में जाके एक तार के पेड़ हलै -- उहाँ पर चोरन सब चोरा के आवऽ हलै आउ चोरी के समान बाँट हलै । बितनवाँ जाके तरवा पर चढ़ गेल आउ जब रतिया में चोरवन पैसवा बाँटे ले उहाँ पर अयलै आउ बाँटे लगलै तो बितनवाँ ऊ चमड़वा के ऊपरे से गिरलकै । बस, चोरवन कहलकै -- "अरे बाप रे बाप ! एकरा पर भूत रहऽ हौ । से भाग रे मरदे !" तहिया ओखनी सब भाग गेलई । बस, ओकरा पर से बितनवाँ उतरलै आउ सब पैसवा लेके घर चल अयलै आउ मइया से कहलकै कि ले मइया हम एतना पइसा ले अइलो । ओकर कोठी पइसा से भर गेलै ।

बस, रजवा कहलकई ने कि एरे बितनवाँ, तूँ कहाँ से एतना पैसवा लावऽ हें । बितनवाँ कहलकै कि हम ऐसे-वैसे लावऽ हियो । से रजवा भी ओइसहीं कलकै । चोरवन देखलकै आउ ओहनी उहाँ पर नै बाँटलकै । रजवा बितनवाँ पर खिसिया के ओकर घर में आग लगा देलक । बस, बितनवाँ कहलकै कि ए राजा जी, तू तो हम्मर घरवा में अगिया लगाइए देलऽ, से ओकर बानिया (राख) दे दऽ । तब रजवा कहलकई कि ऊ का रखल हो ! से ले जाय नेऽ ! बस, बितनवाँ बोरा में बंद करके बानिया बेचे चल गेलै । जैते-जैते एगो व्यापारी मिललै । ओहू हीरा-मोती-जवाहर बेचऽ हलै । ऊ पूछलकै बितनवाँ से कि कउची बेचऽ हें ? बितनवाँ कहलकै कि हमहूँ हीरा-मोती-जवाहरात आउ बहुत कीमती चीज बेचऽ हीऽ । बेपरिया पूछलकै कि तूँ कहाँ जा हें ? बितनवाँ कह कै कि टेसन दने जा हियो । ओहू कहलकै कि हमहूँ जैवो । तो बितनवाँ कहलकै कि चल ने ! बस, चलते-चलते रात हो गेलै । तब दूनु एगो गाँव में सूत गेलै । अधरतिये में बेपरिया बानियाओला बोरा लेके भाग गेलै । भोर होलै तो बितनवाँ अप्पन बोरा न देख के ओकरओला बोरा लेके घर चल आउ घर पर जाके अपन मइया से कहलक कि -- ले मँइया, बड़ी सन हीरा-मोती जवाहरात ! बस, ओकर समान से घर भर गेलै ।

बस, रजवा देख के जरे लगलै कि बितनवाँ एतना चीज कहाँ से लावऽ हकै । तब ओकरा बोला के बोरा में बंद कर के नदिया में फेंक देलकै । इधर से रोज एगो हाथी पानी पीये ला जा हलै । ऊ दिन पनिया पीये गेलै, बस ओकरे पर अप्पन गोड़ रखलकै आउ बोरवा फट गेलै । बितनवाँ ओकरा में से निकल गेलै आउ हाथी पर चढ़ के घर चलल आवऽ हलै । रजवा देखलकै तो कहलकै कि ए रे बितनवाँ, हमरो बोरवा में बान्ह के नदिया में फेंक लाव ! बस, राजा के बितनवाँ खूब कस के बान्हलकै आउ नदिया में फेंक लौलकै । बस, तहिना हथिया गेलै पनिया पीये लै ने, से रजवा के बोरवा पर लतिया पड़ गेलै आउ रजवा के पेट फट गेलै । रजवा ओहीं पर मर गेलै । खिस्सा गेलो वन में -- समझो अपने मन में !

3.06 बाघ आउ ब्राह्मण

[ कहताहर - जवाहिर प्रसाद सिंह, मो॰ - शेखपुरा, जिला - गया]

एगो दलिद्दर ब्राह्मण हलन । ऊ भीख माँग के खा हलन । रात माँगथ तो सवा सेर आउ दिन माँगथ तो सवे सेर । एक दिन ब्राह्मणी कहकथिन कि तूँ दिन-रात बरबरे कमा हऽ से कइसे काम चलतवऽ ? बाल-बच्चा कइसे खैथुन-पीथुन । से कहीं परदेस जयतऽ हल तो कमा-उमा के लौतऽ हल । पंडी जी कहलन कि कल्ह भोरे जबवऽ । कुछो नस्ता-पानी बना दिहँऽ । से पड़िआइन राख के सतुआ बना के बाँध देलन । पंडी जी अप्पन लड़िका के साथ परदेस निकललन । जाइत-जाइत एगो नदी पर पहुँचलन आउ नेहा-धोआ के पूजा करे लगलन । एन्ने पंडी जी के बेटा निकाल के राख के सत्तू खाइत हले । पंडी जी आन के देखलन तो बोललन कि भोंसड़ी राख के सत्तू देकऊ हे ? लड़कावा राख के सत्तू के नदी में बहा देलक ।

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3.05 लड़का आउ ठग

[ कहताहर - रामानन्द प्रसाद, ग्राम - मलिकपुर, थाना - सिलाव, जिला - पटना]

एगो हलै पंडित जी । ऊ बिजनेस के कम करऽ हलै । ओकरा एगो लड़का हलै । ऊ लड़कावा घरा पर बड़ी जुआ खेलऽ हलै । ओकर मइया के रोज सब सिकाइत करे आवे कि तोर बेटवा बड़ी जुआ खेलऽ हौ । सुनते-सुनते एक दिन लड़कावा के मइया ओकर बाबू जी ही चिट्ठी लिखलकै कि हम बड़ी जोर से बेमार हकियो । ई से तूँ एक दिन चल आवऽ । चिट्ठी लड़कावा के बाबू जी ही पहुँच गेल, तो लड़कावा के बाबू जी ऐला । ऊ अपन औरतिया से पूछलका कि कौन बात होलो से तूँ हमरा ही चिट्ठी लिखला कि तूँ जल्दी चल आवऽ । लड़कावा के मैया सब बात कहलका कि तोहर बेटा ऐसन हको कि रोज जुआ खेले ला परक गेलो हे । रोज पाँच-छ सौ रुपेया हार जा हको । लड़का के बाबू जी सोचलक कि हम अपन बेटा के परीक्षा ले लूँ ।

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3.04 साव के बेटा

[ कहताहर - यदु मेहता, ग्राम - बेलखरा, जिला - गया]

एगो साव जी हलन । उनका एगो बेटा हल । ओकर नाम जुगेन्दर हल । ओकर बाप बचपने में मर गेल तो माय पिसौना-कुटौना कर के ओकरा पाललन-पोसलन । जब जुगेन्दर सेआन हो गेलक तो माय से कहलक कि हमरा कुछ रुपेया दे, हम बेपार करम । माय एगो धनी अदमी से एक हजार रुपेया आन के बेटा के दे देलक । जुगेन्दर रोपेया ले के मेला पहुँचल । घूमते-घामते ऊ कुत्ता के बजार में पहुँचल आउ तीन सौ रोपेया में एगो बढ़िया कुत्ता खरीद लेलक । फिनो जुगेन्दर बिलाई के बजार में गेल आउ बिलाई के मेल-जोल करके ढाई सौ रोपेया में एगो बिलाई खरीद लेलक ।

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3.03 ब्राह्मण आउ सात गो परी

[ कहताहर - राम विलास सिंह, मो॰ - साधो बिगहा, जिला - गया]

एगो बाबा जी हलन । ऊ बड़ी गरीब हलन । उनका चार गो बेटा हलन आउ एगो स्त्री हल । ऊ रोज भीख माँग के अप्पन परिवार के पालऽ-पोसऽ हलन । एक रोज उनकर मेहरारू बड़ी बात कहलन कि "तोरा चार लइका हे । देस-विदेस में जाइत रहतऽ तो कुछ तो कमा के भी ले आइत रहतऽ ।" खीस के मारे पंडी जी अउरत के कहलन कि रसता के कलेवा बना दऽ, कल्ह हम परदेश जायम । पंडी जी घर से चललन । जाइत-जाइत कुछ दूर पहुँचलन तऽ एगो जंगल मिलल । ओकरा में एगो इनरा हल, जहाँ पर एगो पेड़ हले । उहईं पर पंडी जी नेहा-धोआ के भोजन करेला चाहलन । ऊ खायओला मोटरी खोललन तो सात गो पूआ देखलन आउ सोचइत बोले कि "एगो खाऊँ कि दू गो खाऊँ कि तीन गो खाऊँ कि चार गो खाऊँ कि पाँच गो खाऊँ कि छव गो खाऊँ कि सातो खा जाऊँ ।" ई सुन के इनरा में से सातो परी बोललन कि "पंडी जी, गोड़ पड़इत ही, हमनी सातो के परान ऊबार देऊँ । हमनी अपने के अइसन चीज देइत ही कि अपने के परबस्ती चल जायत ।" एतना कह के परी लोग इन्दरलोक में चल गेलन आउ बाबा जी ला एगो बरहगुना माँग के ला देलन । ऊ बरहगुना आन के बाबा जी के देलन आउ कहलन कि "सवा हाथ जमीन लीप के बारह प्रकार के भोजन माँगवऽ तो तुरते बन के तैयार हो जायत ।"

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Sunday, February 17, 2008

3.02 लोभ से मरन

[ कहताहर - रामप्यारे सिंह, ग्राम - बेलखरा, जिला - गया]

एक दफे एगो राजा आउ वजीर जंगल में सिकार करे गेलन तो राह में एगो आन्हर भिखारी के देख के रुक गेलन । ओकर भीरू जाके पूछलन आउ कुछ देवे लगलन तो ऊ कहलक कि हम न लेम ।राजा वजीर से पाँच रुपेया देवे ला कहलन । ऊ लेवे ला तइयार न होयल । पाँच से दस, दस से बीस, बीस से सौ, सौ से हजार, इहाँ तक कि आउ लाख रुपेया तक देवे ला राजा तइयार होयलन तइयो ऊ न लेलक । फिनो आधा राज-पाट भी न लेलक तो राजा ओकरा मुँहमाँगा देवे ला दरबार में बोलवलन । दोसर दिन भिखारी राजा किहाँ गेल । राजा कहलन कि तोरा का चहवऽ ? भिखारी कहलक कि "हमरा दू थप्पड़ मार के जे देम से हम ले लेम ।" "थप्पड़ हम काहे मारम ? एकरा का कारन हे ?" अपने राजा के पूछला पर भिखारी अप्पन सब हाल सुनावे लगल ।

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3.01 एक पइसा के बूँट दुनियाँ लूट

[ कहताहर - राजू, मो॰पो॰ - नवादा, जिला - नवादा ]

एगो गाँव में धनिक लाल नाम के एगो बनिया हलई । ओकरा चुन्नीलाल आउ मुन्नीलाल, दूगो बेटा हलई । बड़का बेटा चुन्नीलाल बाप के साथे बेपार में जायल करऽ हलई, जेकरा से ऊ चलाँक हो गेलई हल । ओकरा पास दूगो पइसा भी रहे आउ बढ़िया बस्तर भी । छोटका बेटा घरे पर धूर-जनावर चरावइत आउ खाइत-पीअइत रहऽ हलई, से ऊ लजकोर हो गेलई हल - सीधा आउ सपाट । बाप-माय भी ओकरा मूरुख समझऽ हलई । जब धनिकलाल बूढ़ा हो गेलई तो चुन्नीलाल से कहलकई कि "हमर हाथ-गोड़ कँपे लगलो, नैन जबाब दे देलको, अब तूँ ही बाहर जा के बेपार करऽ आउ नफा कमावऽ ।"

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Saturday, February 16, 2008

2.12 बूँटचुनवा के अउरत रानी

[ कहताहर - श्रीकृष्ण शाह, संजीव निकेतन, मिश्रटोला, टेकारी रोड, पटना - 6 ]

एगो राजा के सात गो लड़की हल । सातो में छोटकी लड़की अप्पन बाप के बहुत दुलारी हल । एक दिन सातों लड़की के बुला के राजा पूछलन कि "ए बेटी ! तू चस-सच बतावऽ कि तू लोग केकर भाग से जीयत-खायत हऽ ?" सात गो में से छौ गो बेटी कहलन कि "बापजान, हम तो तोहरे भाग से जीयत-खायत ही ।" जब छोटकी राजकुमारी से पूछल गेल तो ऊ कहलक कि "हम अपन भाग से जीयत-खायत ही ।" राजा के मन में बहुत दुख भे गेल । ऊ गोसिया गेलन आउ सोचलन कि छओ बेटी के शादी राजा के घर में करब बाकि छोटकी बेटी के एकदम से कोई कंगाल घर में कर देव । ई सोच के राजा छहो बेटी के राजा-घर में बिआह कर देलन आउ छोटकी लड़की के एगो बूँटचुनवा के साथ कर देलन । सब बेटी अपन-अपन ससुरार गेलन आउ सुखन से रहे लगलन ।


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2.11 फूलकुमारी (बेलमन्ती रानी का रूपान्तर)

[ कहताहर - जगदीश मेहरा, ग्राम - ईटवाँ, जिला - औरंगाबाद ]

एगो राजा के चार गो बेटा हलन । ओमें तीन गो के बिआह हो गेल हल बाकि छोटका के न भेल हल । से भउजाई लोग ताना मारऽ हलन कि तोरा तो फुलकुमारी से सादी होतवऽ । एक तुरी चारो भाई नोकरी करे निकललन । तीन भाई तो नोकरी करे लगलन आउ छोटका भाई फूलकुमारी के खोजे लगलन । रस्ता में उनका सोरह गो चोर मिलल । ओहनी के जेल में भेजल जाइत हल, से राजकुमार ओहनी के छोड़ देलन । राजकुमार चोर के साथे फूलकुमारी के खोजे चललन । जाइत-जाइत जंगल में एगो साधु मिललन जे छव महीना जागऽ हलन आउ छव महीना सूतऽ हलन । उनका जगे में एक दिन बाकी हल । राजा साधु के खूब सेवा कैलन तो ऊ फूलकुमारी के पता बता देलन । फूलकुमारी एगो दोसर जंगल में तीन सौ साठ दैत्य रखवाली में बक्सा में बंद रहऽ हलन ।

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2.10 राजा के बेटी आउ डोम

[ कहताहर - मनोरमा देवी, मो॰पो॰ - खटहन, जिला - औरंगाबाद ]

एक दिन एगो डोम गाँव में सुपली-मौनी लेके बेचे आयल । राजा के बेटी देख के कहलक कि हमरा खेले ला सुपली-मौनी ले दे । माय सुपली-मौनी ले देलक आउ बेटी ओकरा से खेले लगल । डोम राजा के बेटी के देख के लोभा गेल हल । से जब राजा के बेटी के बिआह होवे लगल तो डोम मँड़वा के ऊपरे बइठ गेल आउ सेनुरा दान होवे के पहिले ही लड़की के माँग पर सेनुर भुरभुरा देलक । लोग ओकरा पकड़े ला चाहलक बाकि ई कहइत ऊ भाग गेल कि "मोर बिआही हम्मर - मोर बिआही हम्मर ।"

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2.09 दिलवर जान (बृहत्कथा का संक्षेप)

[ कहताहर - रामप्यारे सिंह, ग्राम - बेलखरा, पो॰ - करपी, जिला - गया ]

एगो राजा के बड़ी तपस्या के बाद एगो बेटा भेल । ऊ बड़ी तेज हल आउ पढ़के जब सोरह बरस के भेल तो एक दफे ऊ सपना देखलक - "बावन गली तिरपन बजार, सीसा के बजार हे । ऊ बजार में एगो बड़ी सुन्नर हलुआइन हे । ऊ तीन दाम के मिठाई बेचऽ हे - पच्चीस रुपेया सेर, पचास रुपेया सेर आउ सौ रुपेया सेर । सेर भर मिठाई खाईं तो बड़ी अच्छा होय । अन्हारे ऊ लइका ऊ बजार देखे ला तइयार भेल तो बाबूजी पहिले अपने देख आवे ला कहलन । ऊ जाके सौ कोस के दूरी पर ओइसने बजार लगा देलन आउ ओकरा में एगो हलुआइन बइठा के समझा देलन । फिन लइका ऊ बजार के देखे जाय ला तइयार भेल । भेटा घोड़ा पर खूब रुपेया लाद के चलल, साथ में बापजान भी हो गेलन । बनावटी बजार में लइका पहुँचल तो हलुआइन से मिठाई के दाम पूछलक आउ लेके खयलक बाकि ओकरा बिसवास न भेल कि ई ओही बजार हे, जे ऊ सपना में देखलक हल । से ऊ उहाँ से घोड़ा पर रुपेया लदले भाग गेल । बापजान उहईं मुरुछा खाके गिर गेलन ।

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2.08 संत-बसंत

[ कहताहर - द्वारिका प्रसाद सिंह, ग्राम - जईबिगहा, पो॰ - मखदुमपुर, जिला - गया ]

एगो जंगल में गाय आउ सेरनी रहऽ हले । दूनो में खूब दोस्ती हले । दूनो के एगो के दोसर बिना चैन न रहऽ हले । एको छन दूनो अलगे न हो हलन । दूनो गाभिन होयलन आउ दूनो के बच्चा जलमल । ऊ दूनो के बचवन में ही खूब इयारी हो गेल । दूनो एके साथ रहे, खाय-पीय आउ खेले । गते-गते ओहनी सेआन हो गेलन । एक दिन गइया आउ सेरनिया एगो झरना में पानी पीअइत हले । गइया उपरे आउ सेरनिया नीचे पीअइत हले । गइया के मुँहमो के लेरवा सेरनिया के मुँहमाँ में पनिया के साथ गेल । ओकरा बड़ी मीठा लगल । सेरनिआ सोचलक कि जेकर लारे एयना मीठा हे ओकर माँस केतना मीठा होतई । ई सोच के सेरनिया गइया के मार के ओकर माँस खा गेल । ऊ आन के अकेले अप्पन माँद में बइठल हल कि ओकर बचवा आउ बछड़वा आयल । सेरवा अप्पन मइया से पूछलक कि "मँइया, मँउसी न हउ ?" त सेरनिया बोलवे न करे ।

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Tuesday, February 12, 2008

2.07 चतुर राजकुमारी

[ कहताहर - रामप्यारे सिंह, ग्राम - बेलखरा, पो॰ - करपी, जिला - गया ]

एगो राजा हलन । ओकरा एक्के गो बेटा हल । राजकुमार के सादी ला बड़ी मानी कुटुम आवऽ हलन बाकि राजकुमार कहलन कि जे हम्मर पाँच लाती रोज सहत ओकरे से हम सादी करम । ई सुन के सब कुटुम भाग जाथ । एक दिन एगो राजा राजकुमार के सादी ला पूछे ला आयल । राजकुमार अप्पन सर्त सुनौलन तो राजा सुन के अप्पन घरे लौट गेलन । घरे रानी पूछलन कि लइका ठीक होलवऽ कि न ? तब राजा उहाँ के सब हाल आउ लड़का के सर्त सुना देलन । बीचे में उनकर लड़की बोलल कि हम पाँच लाती खाय ला तैयार ही । ई करार पर शादी तय हो गेल । जब इहाँ महल में राजकुमार के रानी आयल तब रात में ऊ अप्पन महल में गेलन । पहिले एक लाती ऊ पलंग पर देलन तो ईयाद पड़ल कि पाँच लात मारली नऽ । तो रानी पूछ देलन कि काहे खड़ा हऽ । तब राजकुमार कहलन कि 'हमरा पाँच लात मारे के चाहइत हल ।' तो रानी कहलन कि 'कउन कमाई पर ? पहिले हमरा कमा के देखा दऽ तो फिर मारिहँऽ ।' एतना सुन के राजकुमार कमाय ला घर से निकल गेलन ।


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2.06 लाल, हीरा आउ राजकुमारी

[ कहताहर - जगदीश सिंह, ग्राम - बेलखरा, पो॰ - करपी, जिला - गया ]

एगो बढ़ई मिस्त्री दू प्राणी हलन आउ लकड़ी काट के बेचऽ खा हलन । एक दिन मिस्त्री जंगल से लकड़ी काट के लउटइत हलक तो ओकरा पियास लगल । ऊ बोझा रख के पानी पीये गेलक ् तब तक बोझा पर एगो मनिआरा साँप आन के बइठ गेल । ऊ ओकरा भगावे ला एगो लाठी खोजे गेल तो एन्ने सँपवा एगो लाल उगिल के भाग गेल । मिस्त्री आन के देख-दाख के बोझा उठौलक आउ नीचे गिरल लाल पत्थर के ले लेलक । बजार में आन के लकड़ी बेचलक आउ लालोबेचे गेल तो ओकरा एगो साव एक लाख देवे लगलई । ऊ समझलक कि गप्प करइत हे । से दूसर बनिया भीर गेल तो ऊ सवा लाख देवे ला कहकई । बढ़ही सवा लाख में लाल बेच के घरे चल आयल । एन्ने साव वहाँ के राजा हीं नालिस कर देलक कि सेठवा हमर गँहकी के भड़का के लाल खरीद लेलक हे । से राजा बनिया के बोला के सवा लाख दे देलन आउ लाल ले लेलन । राजा सोचलन कि तीन बादसाहत के बराबर एगो लाल होवऽ हे, से ऊ लाल के लेके रानी के दे देलन ।

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2.05 महादे(व) के किरपा

(लेखक द्वारा संकलित)

एगो पछिम देस के राजा हल । ओकरा बिआह हो गेल हल बाकि ओकर मन में एगो दूसर सुन्नर लड़की से बिआह करे के ललसा हल, से ऊधरे से निकल के ऊ पूरब देस में चल गेल । जाइते-जाइते एगो जंगल में पहुँचल आउ तपस्या करे लगल । पूजा करते-करते बड़ी दिन भे गेल तो ओकर पहिलकी मेहरारू एगो 'कउवा' के भेजलक, तो ऊ कउवा आन के कहलक कि तोर मेहरारू बिजोग में जर के मरल जाइत हथुन । तइयो ई बात सुन के राजा के मन न पसीजल आउ ऊ कहलक कि जब तक हमर दोसर बिआह न होयत तब तक हम कुछो न सुनव । ऊ पूजा करते-करते सूत गेल तो एक दिन ऊ देस के राजा के बेटी ओकरा भीरू आयल आउ राजा के उठावे लगल बाकि राजा न उठल तो ओकर चद्दर पर अपन हाल लिख के चल गेल । राजा उठल तो चद्दर पर के लिखल पढ़लक । पढ़ के ऊ बड़ी अफसोस में पड़ गेल आउ अप्पन सरीर के अपने तरवार से दू टुकड़ा कर लेलक । साँझ के महादे(व)-पारवती जी घूमे जाइत हलन । पार्वती जी ओकरा देख के कहलन कि ई तोरा बड़ी पूजा-पाठ करकवऽ हे । जब तक एकरा न झीअयवऽ तब तक हम आगे न जबवऽ । महादे(व) जी पारवती जी के बात सुन के राजा के धड़ के दूनो टुकड़ी के एक साथ जोड़ के अमरित छींट देलन आउ राजा जी गेल ।राजा उठ के ऊ लड़की के खोज में चलल । ऊ ऊहाँ के राजा के पास गेल आउ ऊ लड़की से सादी करे ला कहलक । राजा तइयार न भेल तो ई राजा लड़ाई करे ला तइयार हो गेल । दूनो राजा में लड़ाई होवे लगल । ई राजा तो अकेले हल । कइसे पार पावथ । से महादे(व) जी के सुमिरलक । महादे(व) जी भूत-परेत के साथे उहाँ आ गेलन । खूब लड़ाई भेल । अब तो ऊ राजा अप्पन लड़की से राजा के साथ बिआह कर देलक । सादी करके राजा रानी के साथ अप्पन घरे चलल । ओकरा घमंड भे गेल कि हमर रानी से बढ़के कोई दोसर सुन्नर न हे । राह में रजवा जाइत हल कि एगो बड़का गो नदी पड़ल । नाव पर ऊ पार हो गेल तो बड़ी जोर से आन्ही-बूनी आयल आउ नाव डूब गेल । पानी में राजा नदी के रानी के देखलक तो ओकरा देख के बेहोस हो गेल । कुछ देर के बाद होस आयल तो नदी के रानी भी ओकरा से परेम करे लगलक । राजा ओकरो से सादी कर के उहईं रहे लगल । ऊ रानी भी उहईं आ गेल । कुछ दिना के बाद राजा के अप्पन देस के इयाद आयल तो घरे चले ला कहलक । सब मिल के घरे चले लगलन तो नदी उनका एगो कंगना आउ मोर देलक । ओहनी सब मोर पर बइठलन आउ ऊ उड़के एहनी तीनों के रजवा के देस में पहुँचा देलक । इहाँ आन के राजा अप्पन तीनों रानी के साथ परेम से रहे लगल आउ बढ़िया से राज-पाट करे लगल ।

2.04 राजा, रानी आउ मोतीकुँअर

[ कहताहर - द्वारिका प्रसाद सिंह, ग्राम - जईबिगहा, पो॰ - मखदुमपुर, जिला - गया ]

एगो राजा रहे । ऊ एक दिन जंगल में सिकार खेले गेल । दिन भर हरान होवे पर भी एको सिकार न मिलल । राजा निरास होके लौट रहल हल कि रास्ता में पालकी मिलल । ऊ में लगल सोलहो कहार बहुत कीमती कपड़ा पेन्हले हलन । राजा सोचलक कि ई पालकी के कहार तो अइसन सुन्नर हे तो ई पालकी ओली केतना सुन्नर होयत ? राजा ओकरा देखे के वास्ते पालकी से कुछ दूरी पर चले लगल । रजवा रात भर साथे चलल पर पालकीओली के देख न सकलन । ऊ पालकीओली रानी जब नदी में नेहाय लगल तब पालकी से नदी तक परदा लगवा देलक । जब भी पालकी से से बाहर निकले तो परदा लगवा लेवे । ई तरह राजा दिन भर पालकी के पीछे लगल रहल बाकि ओकरा देख न सकल । आखिर राजा निरास हो गेल । पालकीओली के देखे के जब कोई आसा न रहल तब हार-पार के रजवा अप्पन घर के ओर चले ला मुड़ल, तो देखलक कि एगो पोटरी पलकिया पर से गिरल । रजवा घुर के ऊ पोटरिया उठा के देखलक तो ओमें हरदी, सुपारी, मोती आउ कुमकुम से रंगल थोड़ा सन चाउर हल । राजा ऊ सब के कोई मतलब न समझलक । बाकि रजवा के मन न लगे । ऊ बड़ी उदास रहे लगल । खाना-पीना छोड़ देलक । रनिया पूछे तो बोलवे न करे । आखिर रनिया के ऊ पोटरिया देके कहलक कि जब तक एकर मतलब न जानब तब तक हमरा चैन न हे । रनिया ऊ पोटरिया देख के कहलक कि ई सब के मतलब हम बता देब । अपने खा-पीअऽ । हम ई पोटरिया देवेओली से भेट भी करा देवो । राजा खयलक-पीलक तब रनिया ऊ पोटरिया के मतलब बतावे लगल । रनिया कहलक कि हरदी के माने हे कि पोटरिया देवेओली हरदीनगर के रहेओली हे । मोती के माने हे कि मोतीकुँअर ओकर नाम हे । सुपारी के मतलब हे कि ओकर घर के पास सुपारी के पेड़ हे । कुमकुम से रंगल चाउर के मतलब कि ऊ तोरा चाहऽ हे । रनिया कहलक कि जब राय होय तो ओकर घरे चलल जाय ।

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2.03 अप्पन किस्मत के कमाई

[ कहताहर - मु॰ इसलाम अंसारी, ग्राम - सोनभद्दर, जिला - गया ]

एगो बादसाह के सात गो बेटी हले । एक दिन बादसाह अप्पन बेटी से पूछलन कि तोहनी केकर किस्मत से खा हें ? सातो में छह बेटी कहलन कि बापजान, हम तोर किस्मत से खा ही बाकि छोटकी बेटी कहलक कि हम अप्पन किस्मत से खा ही । ई सुन के राजा के खीस बर गेल आउ ऊ बेटी के घर से निकाल देलन । जायत खानी ओकर माय ओकर जूरा में एगो लाल बाँध देलक आउ डोली पर चढ़ा के एगो लौंड़ी के साथे जंगल में भेज देलक । जंगल में लौंड़ी आउ राजा के बेटी गरीब-गुजारी से रहे लगलन । ओकरा नेहयला भी कई दिन हो गेल । एक दिन एगो पासी ताड़ पर चढ़इत हल । राजकुमारी दासी से कहलन कि पसिया से कह कि दूगो खगड़ा गिरा देवे । पसिया ढेर मानी खगड़ा गिरा देलक । राजकुमारी ओकरे से अड़ोत करके नेहा लेलक । नेहायते खानी जुड़वा में से लाल गिरल । ई लाल ऊ दाई के देलक आउ कहलक कि "तूँ बजार में जाके एकरा बेच दे । सूई-डोरा आउ फूल काढ़े के थोड़ा साज-समान लेले अइइहें ।" लौंड़ी जा के बजार में लाल बेच देलक आउ सूई-डोरा के साथ-साथ सब जरूरी समान लेले आयल आउ राजकुमारी के दे देलक । राजकुमारी रोज गिलाफ पर आउ रूमाल पर फूल काढ़े लगल । दाई ओकरे बेच के रोज खाय के समान लावे लगल । ई तरह से राजकुमारी दाई के साथ रहे लगल आउ कमाई करके मजे में खाय लगल । जे फाजिल पैसा बचे ओकरा हिफाजत से ऊ जमा करे लगल ।

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2.02 बेलमन्ती रानी

[ कहताहर - मानिकचंद राम, ग्राम - लभरी, पो॰ - रफीगंज, जिला - गया ]

कोई गाँव में एगो यादव के चार लइकन हलन । चारो के माय-बाप मर गेलन तो भाई लोग सोचलन अब बाहर चल के कमाय-खाय केचाहीं । तीन भाई के बिआह हो गेल हल बाकि छोटका कुँआरे हल । से तीनो बड़कन भाई अप्पन मेहरारू से समझा के कहलन कि हमनी परदेस, कमाय जाइत ही, तोहनी हमर छोटका भाई के आदर-सत्कार से रखिहँऽ । तीनो भउजाई देवर के बढ़िया से रखे लगलन । बाकि सब देवर से पूछथ कि तूँ हमर बहिन से सादी करबऽ हो ?" हाली-हाली ओकरा से पुछला पर छोटका भाई घर-दुआर छोड़ के बाहर जाय ला तैयार हो गेल तऽ भउजाई सब कहलन कि देखब न कि तू बेलमंती रानी से सादी करके लयबऽ ।

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2.01 राजा के बेटा आउ मेहतर के बेटी

[ कहताहर - रामचन्द्र मिस्त्री, सोननगर (बारुन) ]

आज से बड़ी दिन बीत गेल, दिल्ली सहर में एगो भारी राजा रहऽ हलथी । राजा जी के बेटा बड़ी बढ़िया सुन्नर जवान हो गेलथिन हल । एक दिन ऊ सैर करे ला निकललन तो घूमते-घूमते बड़ी दूर के गाँव में चल गेलथिन । ऊ गाँव में का देखलन कि एगो मेहतर के बेटी अप्पन दुहारी पर खड़ा हे जेकरा से बिजुली के समान अंजोर फैले हेय । लड़की के देख के राजा के लइका तो ओहिजे बेहोस होके गिर गेलन । राजा के बेटा के ओइसन हालत देख के भीड़ लग गेल । जब राजा के बेटा के होस भेल तो कहे लगलन कि - "हमरा के कछुओ न भेल । हमहूँ परेम बान से होइली घायल । हमर पिंजरा के सुगना के लगलई कठोर बान । दइवा पर लगइली आस । ओही निकालिहँऽ बान । हमरा के ओही दरुआ पिलावऽ जेकरा कारन भेली हम घायल ।"


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1.38 तोतवा के बेटी आउ फूलकुमारी

[ कहताहर - सीताराम सिंह, ग्राम - सयालडीह, जिला - हजारीबाग ]

एगो राजा के एगो बेटा आउ एगो बेटी हल । बेटी के दूगो सखी हल । एगो दाई के बेटी आउ एगो तोतबा के बेटी । तीनो सखी रोज घूमे जा हलन । राजा के बेटी के गोड़ दुखा गेल तो बइठे कहलन । एकरे पर दाई के बेटी कहलन कि हमरा कोई सींक से मार दे तो खून बहे लगे । फिन तोतवा के बेटी कहलक कि हमरा फूल से मार दे तो खून फेंक देवे । राजा के बेटा सुनलन तो सोचलन कि एकर परचोबा लेवे के चाहीं कि कइसे फूल से खून बहऽ हे । से ऊ एक रोज तोतवा के बेटी से सादी करे ला जिद रोप देलन । माय तइयार न हलथिन । तइयो बेटा के अन्न-पानी छोड़ देला पर बिआह करा देलन । राजा के बेटा तोतवा के बेटी भिरु सूते गेलन तो पहिले कोड़ा मारलन बाकि एगो खून-वून न निकलल । ऊ रोज दू कोड़ा मारे लगलन । तोतवा के बेटी दुबरा के लरेठा भे गेल । सास पूछलकथिन तो पुतोह बहाना कर देलक । एक रोज ऊ छिप के देखलन तो बेटा पुतोह के कोड़ा से मारइत हे, से माय कहकथिन कि अब का तोरा फूलवा रानी से बिआह होतवऽ ? ई बात बेटा के लग गेल आउ ऊ कपड़ा पेन्ह के घोड़ा पर सवार होयलन आउ फुलवा रानी के खोज में निकललन ।


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1.37 चरवाहा से राजा

[ कहताहर - ललन प्रसाद सिंह, ग्राम - दनई, जिला - औरंगाबाद ]

एगो रजा हलन । ऊ बार-बार अप्पन किला बनावऽ हलन आउ गिर जा हल । से एक तुरी सब अमला-कैला के गोजी-लाठी लेके खड़ा रहे कहलन कि अबरी किला के डाहे तो ओकरा जान मार दीहँई । ई बात ओहिजा के नगवा सुनइत हल से ऊ निकल के भागल । लोग ओकरा खदेरलन । रस्ता में एगो गोरखिया (चरवाहा) मिलल, जेकरा से नगवा बड़ी घिघिआयल कि हम गेड़र मार के बइठ जात ही । तू ऊपरे से बइठ जो तो हम बच जायम । चरवाहा पहिले नाकर-नुकुर कैलक बाकि नाग के एगो चीनी घइला देबे ला कहे पर ओकरा पर बइठ गेल । राजा के अदमी आन के आगे बैठ गेलन, नाग बच गेल । नाग के कहल मोताबिक चरवाहा के एगो घइला देलक आउ कहलक कि एकरा में पानी भरके झाँक दिहें आउ गरम करिहें । जब भाफ निकले लगतउ तो ढँकना उघार दिहें । ओकरा में से एगो लड़की निकलतउ । चरवाहा ओइसहीं कैलक आउ लड़की निकलल तो देख के सब चरवाहा भाग गेलन । बाकि नाग के बचावेओला चरवाहा रह गेल तो लड़किया पूछकई कि तोर घर कहवाँ हवऽ । चरवहवा कहलक कि ऊ का झोपड़िया लौकइत हे । दूनो अप्पन झोपड़ी में चल गेलन । उहईं रहे लगलन । एक दिन लड़किया कहलक कि तू सब के गोरू चराना बंद कर दऽ आउ राजा से घर बनावे ला जमीन माँगऽ । चरवाहा राजा भिरु जमीन ला गेल तो राजा कहकथिन कि जने जेतना जमीन मिले उहाँ घर बना के रहऽ गन ।


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1.36 अगरवाल के बेटा

[ कहताहर - श्याम सुन्दर सिंह, ग्राम - बमना, जिला - जहानाबाद ]

एगो अगरवाल हल । ओकरा एगो लड़का हल । बाप के मरला पर लड़कावा तीन पइसा के नोकरी करे लगल । दू पाई में ओकर मतरी सब खर्चा चलावे आउ एक पाई बचावे । एक दिन अगरवलवा माय से कहलक कि कुछ पइसा दऽ तो नोकरी करे जाईं । माय ओकरा एगो रोपेआ देलक । बेटा नोकरी न करके दोकान कर लेलक । एक रोपेआ में हरदी-धनिया-चतपतई लान के बेचे लगल । जब ओकर दोकान चल गेल तो ऊ बाहर से समान लान के बेचे लगल । एक तुरी बाहर जाइत खानी एगो बुढ़िया के तीन लड़की पर तीन चिरु पानी उबिछइत देखलक । ऊ कभी हँसे, कभी रोवे, कभी गीत गावे । ऊ चुपचाप देखलक आउ आउ फिन पूछलक कि तू का करइत हें । बुढ़िया कहलक कि तोर काम हवऽ से तू करऽ, हमर काम जे हे से हम करइत ही । अगरवाल के बेटा कहलक कि जब तक न बतयबे तब तक हम इहाँ से न जबउ । बुढ़िया कहलक कि हम 'भावी' (one who knows future) ही । फिन लकड़हरव पूछलक हमर सादी होयल हे कि ना ? बुढ़िया कहलक कि ना, बाकि आज रात के हो जतवऽ । एकरा पर खिसिया के अगरवलवा के बेटा ओकरा तीन लाती मारलक तो बुढ़िया कहलक कि मारऽ चाहे कुछ करऽ बाकि आज रात के तोर सादी जरूर हो जतवऽ । फिन ऊ सर-समान लेके चलल तो रस्ते में रात हो गेल । ऊ एगो पीपर के खोड़रा में लुका गेल ।


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1.35 परी आउ राजा

[ कहताहर - गया महराज, ग्राम - बेलखरा, जिला - जहानाबाद ]

एगो राजा के लाल नाम के लड़का हल । उनकर माय बेटा के बिआह करे खातिर नउवा-ब्रह्मण के पेठौलन । लड़की के लेखा-जोखा न बइठइत हल । से नउवा-ब्रह्मण एगो नदी किनारे बइठ के भोजन कैलन आउ खाके खोना नदी में बीग देलन । नदि के दोसर दने भी एगो लड़का खोजे नउवा-ब्रह्मण आके बइठलन आउ खा-पी के खोना नदी में फेंक देलन । एहनी के खोना नदी के पानी में नाँचे लगल तो लड़का तरफ ओलन पूछलन कि तोर खोना पानी में नाचइत हे । तब ओहनी कहलन कि हमनी सब लाल नाम के लड़का खोजे चलली हे । फिनओहनी दूनो दने के लोग सादी ठीक कर देलन आउ सब छेका-बरतुहारी हो गेल । कुछ दिन के बाद तिलक परल आउ सादी हो गेल । सादी में दुनिया भर के राजा पहुँचलन । सादी के बाद कोहबर मिलल । ऊ बराती में ढेर-सिन परी भी आयल हलन । जब राजा के बेटा अकेले कोहबर में गेलन तो सब परी मिल के राजा के लड़का के उड़ा ले गेलन आउ एगो जंगल में पार देलन । जब रानी कोहबर में गेलन तब बड़ी बिलख के रोवे लगलन । सब कोई सोचे लगलन कि लड़की काहे रोइत हे । लौंड़ी पूछे गेल कि काहे रोइत हँऽ ? तब ऊ कहलक कि राजा पलंग सहितेनऽ हथ । बराती में हलचल फैल गेल । तबो सब लड़की के कसूर बतौलन आउ कहलन कि हम लड़की के रोसगदी करा के ले जायम । लड़की कहलक कि हम बारह बरस सदावर्त बाँटब तब ससुरार जायम । बराती लौट गेल आउ लड़की एगो कोठरी में रह के सदावर्त बाँटे लगल । एक समय के बात हे कि दूगो रहगीर ओही जंगल से आवइत हलन तो देखइत हथ कि एगो राजा खूब बढ़िया पलंग पर सूतल हथ । चार गो परी राजा के खटिया के पउवा पर बइठल हे । परी के जब मन होवे तो राजा के जिया दे आउ जब मन होवे तो मार दे । जब मारे के मन हो तो गोड़थारी के बलिस्ता सिरहाना कर देवे आउ जिआवे के मन होवे तो सिरहाना के बलिस्ता गोड़थारी कर देवे । रहगीर एगो झाड़ी में बइठ के ई सब देखइत हल । रहगीर के जाइत-जाइत रस्ते में बेर डूब गेल । ओहनी दूनो रहगीर सोचलन कि जहाँ सदावर्त बटइत हे उहें रह जायब आउ सबेरे चल जायब । ओहनी रात के उहई रह गेलन आउ बतिआइत हथ कि आज तक अइसन न देखली हल कि सिरहाना के बलिस्ता गोड़थारी आउ गोड़थारी के बलिस्ता सिरहाना कर देवे से अदमी मरे हे आउ जी जा हे ।

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1.34 लाल आउ हीरा

[ कहताहर - सामदेव सिंह, ग्राम - चौरी, जिला - औरंगाबाद ]

एक मुलुक में एगो धनी-मानी सौदागर रहऽ हलन । कुछ दिन के बाद ओकरा पर अइसन विपत्ति पड़ल कि सब धन-जन बरबाद हो गेल । ऊ अन्न-अन्न के बिना तरसे लगल । से ऊ रोज जंगल से लकड़ी काटे आउ बेच के दूनो परानी कइसहूँ गुजर-बसर करे । एक रोज मेहरारू से कहलक कि सीधा में से एक-एक मुट्ठी रोज निकाल के थोड़े चबेनी भूँज दिहँऽ, जंगल में लेले जायब, बड़ी भूख लग जा हे । चबेनी फाँक लेब तो दू बोझा लकड़ी काट के ले आयब ।

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1.33 जैन आउ मेठ सुबरन सुन्नरी

[ कहताहर - सामदेव सिंह, ग्राम - टिकुली, जिला - औरंगाबाद ]

एगो राजा हलन । उनकर एगो बेटा हल । राजा बेटा के पढ़े लागी गुरु के पास भेज देलन हल । लड़का के नाम हल जैन । जैन बड़ी भारी मेहनत से पढ़इत हल । गुरु जी के भी एगो खूब सुन्नर लड़की हल । जैन के देख के ऊ लड़की मोहित हो गेल । दूनो में रोज बात-चीत होवऽ हल । बाकि जैन ब्रह्मचारी हल । गुरु-लड़की के साथ जैन बहिन के तरह व्यवहार करऽ हल । एक समय के बात हेय कि राजा के बेटा के बिआह करे लागी कहलन । ई खबर सुन के गुरु जी के लड़की कहलक कि तू हमरा से विवाह कर लऽ । जैन लड़की के बात नऽ मानलक तो लड़की अपन झूला आउ साड़ी फार के अप्पन बाप से कहलक कि बापजान हमरा जैन बरिआरी बेइज्जत कयलक हे । गुरु सुन के जैन पर बड़ी खिसिअयलन आउ जाके ओकर बाप राजा से कहलन कि कोई अदमी कोई अउरत के बरिआरी बेइज्जत करे तो ओकर कउन सजाय देल जायत ? राजा कहलन कि ओकरा फाँसी देल जायत । गुरु जी सारा हाल कह सुनौलन । सुनके राजा कहलन कि लगऽ हे अपने ओकरा बढ़ियाँ से शिक्षा नऽ देली हे । ठीक हे तो जैन के सजाय में हम ओकरा राज से निकाल देइत ही ।

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1.32 हँसती परी

[ कहताहर - सामदेव सिंह, ग्राम - चौरी, जिला - औरंगाबाद ]

एगो राजा के चार बेटा हलन । ओहनी चारो भाई एक रोज जंगल में सिकर खेले गेलन । उहाँ ओहनी अप्पन-अप्पन तीर छोड़लन । तीन भाई के तीर एक दने गेल आउ छोटका के तीर दोसर दने चल गेल । सबहे अप्पन तीर के पता लगावे ला चललन । तीन भाई के तीर के पता तो चल गेल कि एगो राजा के तीन गो बेटी हथ, ओही ले ले हथ । राजकुमार ऊ राजा के पास जाके पूछलन कि अपने के बेटी हमनी के तीर ले ले हथ । ओही तीर ला हमनी अयली हे । राजा महल में पूछौलन तो पता चलल कि ठीक उनकर बेटी तीर ले ले हथ । बाकि ओहनी कहलन कि तीर तबे देम जब ओहनी हमनी से सादी कर लेतन । तीनो भाई अपने में राय-मसवरा करके बिआह लागी तइयार हो गेलन । चट मँड़वा, भतवान आउ विआह हो गेल ।

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1.31 गुलम पीरसिंह

[ कहताहर - सामदेव सिंह, ग्राम - चौरी, जिला - औरंगाबाद ]

कोई सहर में राजा-रानी रहऽ हलन । एक दफे आधी रात में कोई चिरईं के बोल सुनायल तो दूनो राजा-रानी में बहस छिड़ गेलक कि कउन चिरईं बोलइत हे । राजा कहलन कि हंस बोलइत हे आउ रानी बोलन कि सरहँस बोलइत हे । एही पर राजा बाजी लगौलन कि जेकर बात झूठ होयत ऊ राज छोड़ देत । ई तय होयला पर राजा नोकर के बोला के कहलन कि देख आव तो पोखरा पर कउन चिरईं बोलइत हे । रानी विचार कयलन कि राजा के बात झूठ हो जायत तो राजा के राज छोड़ देवे से ठीक नऽ होयत । उनका बिना राज-पाट नऽ चलत । बाकि हम चल जायब तो कोई बात नऽ होयत । ई सोच के सिपाही के बोला के कहलन कि सरहँस भी बोलइत होयत तो राजा से आके कह दीहँ कि हँस बोलइत हे । सभे बात तो तू जनते हऽ ।



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Monday, February 11, 2008

1.30 मुरुख लइका आउ लाल परी

[ कहताहर - इन्द्रदेव सिंह, ग्राम - दनई, पो॰ - जाखिम, जिला - औरंगाबाद ]

एगो राजा के तीन गो बेटी हलन । राजा बेटियन के खूब प्यार करऽ हलन । से तीनों बेटी के पढ़े लागी दूसर जगुन भेज देले हलन । जब तीनो बेटी पढ़ के अयलन तब राजा ओहनी से पूछलन कि केकरा राजे राज करईत हऽ बेटी । बड़की आउ मँझली बेटी बोललन कि बाप जान के राजे राज करइत हियऽ । बाकि छोटकी बेटी बोलल कि किस्मत आउ भावी पति के राजे राज करइत हियऽ । राजा सोचलन कि अभी छोटकी बेटी खूब नऽ पढ़ल हे । से फिनो ओकरा पढ़ लागी भेजवा देलन । एक-दू बरस के बाद पढ़ के फिन आयल तो राजा ओही सवाल कयलन । छोटी बेटी फिन ओइसहीं जवाब देलक । राजा जवाब सुन के बड़ी खिसिया गेलन आउ सिपाही के हुकुम देलन कि जा के मुरुख लइका खोजऽ जेकरा से एकर बिआह कर देब । सिपाही लोग लइका खोजे चल देलन । मुरुख के खोजइत-खोजइत एगो भारी जंगल में पहुँचलन । उहाँ एगो गड़ेरी के लड़का पेड़ के जउन डाढ़ पर बइठल हल ओकरे काटइत हल । सिपाही लोग देख के कहलन कि एकरा से बढ़ के कउन मुरुख मिलतइ कि जउन डाढ़ पर बइठल हे ओही डाढ़ के काटइत हे । ओही लड़का के बरियारी पेड़ से उतरववलन आउ पकड़ के राजा के पास ले गेलन । राजा पूछलन कि तोहनी एकरा 'बुड़बक' कइसे समझलऽ ? ओहनी सभे हाल कह सुनवलन तो राजा समझ गेल कि ई ठीके में 'बुड़बक' हे । राजा छोटकी लड़की के ओकरे से विआह कर देलन आउ अरिआत देलन । बाकी लड़की के माय बढ़ियाँ-बढ़ियाँ बेसकिमती कपड़ा पहिना देलक हल । मुरुख लड़का आउ राजा के बेटी दूनों एक साथे चल देलन ।


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1.29 राजकुमार आउ मयनावती रानी

[ कहताहर - इन्द्रदेव सिंह, ग्राम - दनई, पो॰ - जाखिम, जिला - औरंगाबाद ]

मक्खन के दलदल आउ मक्खी के पहाड़ ।
मुरगी मार देलक लात, गिर गेल सहर गुजरात ।।

एगो कोई राजा हलन । राजा रोसगदी करा के जब अप्पन राजमहल में अयलन आउ महल में सूते लागी गेलन तो पलंग पर जइसहीं एक लात रखइत हथ कि रानी ठठा के हँस देलक । तुरत राजा अप्पन गोड़ पलंग से भुइयाँ पर रख देलन आउ रानी से पूछलन कि तूँ का बात ला हँसलऽ हे ? सेकर कारण बतलावऽ । रानी कहलक कि हम अइसहीं हँसली हेय, कुछो बात नऽ हे । राजा कहलन कि एमें जरूर कोई बात हे । रानी एकरे पर कहलक कि जा नऽ तोरा तो मयनावती से बिआह होइत हवऽ । एतना सुन के राजा तुरंत घोड़ा के अस्तबल में गेलन आउ खोल के घोड़ा पर सवार हो गेलन । उहवाँ से मयनावती रानी के खोजे ला चल देलन । कहलन कि जब तक हम मयनावती रानी से बिआह नऽ करब तब तक राज में नऽ लौटब ।


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1.28 लीलकंठ राजा

[ कहताहर - सूर्यदेव सिंह, ग्राम - दनई, पो॰ - जाखिम, जिला - औरंगाबाद ]

एगो राजा-रानी हलन । उनका कोई लड़का-फड़का नऽ हल । ढेर दिन के बाद एगो लड़का होयल । ओकर नाम लीलकंठ पड़ गेल । पंडी जी पतरा देखइत खनी कहलन कि जब एकर बिआह होयत आउ कोहवर में जायत तब उहँई पलंग पर मर जायत । से राजा ओही दिन कहलन कि एकर बिआह नऽ करब तो कइसे मरत । जब लड़कवा जवान हो गेल तऽ रानी कहलन कि हम लड़का के बिआह करब । राजा बहुत मना कयलन बाकि रानी नऽ मानलन । लड़का के बिआह होयल आउ कोहबर में जाय के पहिले ऊ कहलक कि जब हम मरब तऽ हमरा जारीहऽ-उरीहऽ नऽ । अइसहीं जाके ठठरी पर चिरारी में रख दीहऽ । जब लड़का पलंग पर सूतल तो सुतले रह गेल । रानी पिपकारा करे लगलन । राजा अप्पन लड़का के बाँस के ठठरी बनवलन आउ अइसहीं जाके मुरदघटिया पर रखवा देलन । इहाँ रानी अप्पन पुतोहू के अछरंग लगवलन कि तूँ कुलच्छन हेयँ तब नऽ हम्मर बेटा मर गेल, से रानी ओकरा बड़ी बड़ी तकलीफ देवे लगल । बेचारी का कर सकऽ हल ? कइसहूँ दुख-तकलीफ सह के रहइत हल ।

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1.27 दइतिन बहिन के करमात

[ कहताहर - श्यामदेव सिंह, ग्राम-पो॰ - चौरी, जिला - औरंगाबाद ]

एगो राजा-रानी हलन । उनका एगो बेटा हल । जब बेटा छव-सात साल के हो गेल तब पढ़े ला पाठसाला में जाय लगल । फिनो राजा के एगो दइतिन लड़की जनम लेलक । जब राजा के एकर जानकारी भेल तऽ ऊ अप्पन बेटा के कहलन कि तू जा के लड़की के तलवार से मूँड़ी काट दे । बेटा तलवार लेके मूँड़ी काटे चलल तब माय बोलल - तोरा हम जनमउली हे आउ एकरा हमर कोख से का जनम न भेल हे ? बेटा उहाँ से लौट के चल आयल आउ बाप के पास सब हाल कहलक । राजा सुनलन तो एँड़ी के लहर कपार पर चढ़ गेल । तुरत तलवार उठाके लड़की के मूँड़ी काटे चललन तब रानी देख के कहलन कि अब हम कउन उपाय करूँ । राजा से रानी कहलन - पहिले लड़की के सूरत देख लेईं । जब गोदी में लेके लड़की के सूरत निहारलन तो मोह आ गेल आउ लड़की के छोड़ देलन ।

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1.26 अहेरी कुमार आउ बलकी कुमारी

[ कहताहर - श्यामदेव सिंह, ग्राम-पो॰ - चौरी, जिला - औरंगाबाद ]

एगो बड़ा भारी राजा हलन । उनका धन-दौलत से खजाना भरल हल बाकि उनका इको लड़का न हल । सेकरा लागि बड़ा उदास रहऽ हलन । जे उनकर मुँह सबेरे में देखे से कहे कि आज बाँझ-बाँझिन के मुँह अन्हार ही देखली हे, कइसन तो दिन-बार जा हे ।राजा जानीओ लेथ तो मन मसोस के चुप रह जाथ । एक दिन उनका सुतले कोठरी में किरिन फूट गेल । बाहर में नोकर झाड़ू देइत हल सेकर अवाज सुन के राजा के नीन टूट गेल । आउ केंवाड़ खोलल तो उनका देखके नोकरो बोलल कि आज बाँझ के मुँह देखली हे, कइसन तो दिन जा हे ! राजा सुन के खिसिअयलन नऽ बलुक केंवाड़ी बंद कर लेलन आउ परन (प्रतिज्ञा) कैलन कि जब तक हमर दुख कोई नऽ बुझत तब तक केंवाड़ी न खोलब । अइसहीं भूखे-पिआसे कोठरी में बंद रहइत हलन ।


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1.25 नाग के अँगूठी

[ कहताहर - सूर्यदेव सिंह, ग्राम - दनई, पो॰ - जाखिम, जिला - औरंगाबाद ]

एगो बड़का राजा हलन । उनका एगो लइका हल । कुछ दिन के बाद राजा मर गेलन तब रानी लइका के साथे रहे लगलन । एक दिन लइका माय से पूछलक कि हम बेपार करे जाइत ही । माय लइका के छौ सौ रूपेआ देलक । लइका रोपेआ लेके चल देलक । राह में कई अदमी मिल के एगो बिलाई के मारइत हलन । राजा के लइका के देख के मोह लगल । से ऊ कहलन कि बेचारी बिलाई के जान काहे मारइत हऽ ? एकरा छोड़ दऽ । तब एकरे पर, राजा के लइका पर सबहे खिसिया गेलन कि ई हमर सब दूध-दही खा जाहे आउ बरबाद कर देहे । एकरे पर राजा के लइका कहलक कि ई तोर केतना रोपेआ के समान खराब कैलक हे । हम तोरा दे देव । सबे कहलक कि 'दू सौ रूपेआ के' । झटपट दू सौ रूपआ देके ऊ बिलाई छोड़ा देलक ।


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1.24 सोना के अँगूठी

[ कहताहर - सूर्यदेव सिंह, ग्राम - दनई, जिला - औरंगाबाद ]

एगो राज में राजा आउ वजीर के लइका में बड़ी दोस्ती हल । एको छन ओहनी एक-दोसर से अलगे नऽ रहऽ हलन ।

एक दिन वजीर के लइका अप्पन इयार से मिले उनकर महल में गेलन । बाकि उहाँ न देखके समझलन कि इयार रनिवास में होयतन । एही सोंच के ऊ रनिवास में चल गेलन । उहाँ खाली रानी तोसक-गलीचा लगा के सूतल हलन । वजीर के लइका भी निसा के सूर में पलंग पर जाके पड़ रहलन । ओकरा भी नीन आ गेल । थोड़े देर में जब वजीर के बेटा के नीन टूटल तऽ ऊ उठके चल गेल आउ ओकर हाथ के अंगूठी पलंग पर गिर गेल । ओने राजा अयलन आउ अंगूठी देखके चुपचाप उठा लेलन । ओही दिन से ऊ रानी से बोल-चाल बंद कर देलन । ई से रानी के बड़ी तकलीफ होयल तब रानी अप्पन नइहर में अप्पन भाई-बाप के पास चिट्ठी लिखलन –

बाबा बाग लगायके, लाखो-लाख लुटाय ।
रसभरी रसीली में, भौंरा घुर-फिर जाय ।।

अइसन पाँती देख के राजा अप्पन बेटा के दे देलन । बेटा समझ गेलन आउ नाउ के लेके बहिनही चल देलन । जब उहाँ पहुँच गेलन, पानी-उनी पीके, साँझ खनी राजा के बेटा, वजीर के बेटा, नउवा आउ अपने चारों घूमे-फिरे चललन । गाँव से दूर जा के एगो बढ़िया पोखरा पर बइठ गेलन । टहटह इंजोरिया रात हल । पोखरा में फूल खिलल हल । चारों बइठ के चौपड़ खेले लगलन । केलइत-खेलइत राजा के साला कहलन कि -

निरमल जल तलाब में, अति ही पवित्र-पवित्र ।
सो जल काहे न पिये, सुनहुँ हमारे मोत्र ।। सत् रह ।।

तब राजा एतना सुनके मन-ही-मन सोच के कहलन -

कर पंजे के बीच में, तामें लाल समाय ।
सो मैं देखा पलंग पर, नीर पिया न जाय ।। सत् रह ।।

एतना सुनके चौपड़ खेलइत-खेलइत वजीर के लइका कहलन -

घटा गरजे, बिजली चमके, लागे न काहूँ अंत ।
माय-बहिनिया जा के, गये पलंग पर बैठ ।। सत् रह ।।

ओकरा बाद नउवा के पाँसा आयल तो सोच-विचार के कहलक -

चतुरन में चतुरन मिले, लगे न काहूँ अंत ।
अभाग हे ऊ नारी के, कि मूरुख मिलल कंत ।। सत् रह ।।

एकरा बाद राजा के असली बात हिरदय में समा गेल । फिनो सबहे घरे अयलन आउ राजा-रानी खुसी से रहे लगलन ।

1.23 नाग के बेटा

[ कहताहर - सूर्यदेव सिंह, ग्राम - दनई, जिला - औरंगाबाद ]

एगो सहर में बड़का राजा हलन । उनका धन -सम्पत कोई चीज के कमी नऽ हल बाकि उनका कोई बेटा न हल । राजा दिन-रात फिकिर में रहऽ हलन कि उनका कइसे बेटा होयत । राजा के बड़का किला हल । किला में एगो सरप रहऽ हल । सरप के एक रोज अगाह भेल कि किला के एगो देवाल गिर जायत आउ ऊ चिपा जायत । से ऊ उहाँ से भागे ला चाहलक तइसहीं देवाल गिर गेल आउ साँप चँपा गेल । देवाल गिरे के अवाज सुन के नोकर-चाकर दउड़लन तो देखऽ हथ कि एगो साँप आधा चँपल हे आउ ओकर मुँह से ई दीप न ऊ दीप के एगो बालक निकलल हे । लौड़ी आन के राजा से सब हाल कहलक तो राजा ऊ बच्चा के खूब दुलार से पाले-पोसे लगलन । एक रोज राजा बराहमन के बोला के बच्चा के नाम धरे कहलन । बाबा जी कहलन कि लइका बड़ी भागसाली हे बाकि लइका मुँह से जनम लेलक हे । से अप्पन मुँह से जे घड़ी अप्पन नाम कहत ओही घड़ी ई मनुष सरीर छोड़ देत आउ सरप हो जायत । लइका के नाम 'लाल सहजादा' धरा गेल ।

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1.22 सात हंस

[ कहताहर - अम्बिका सिंह, बीजूबिगहा, जिला - नवादा ]

एक ठो राजा हलै । ओकरा सिकार खेले के बड़ा सौख हलै । एक दिन सिकार खेलते-खेलते ऊ जंगल में रस्तवे भुला गेलै । रस्तावा खोजते-खोजते एगो झोपड़ी मिललै । ओकरा में एक ठो बुढ़िया बैठल हलै । ऊ जादूगरनी हलै । रजवा ओकरा से रस्ता पूछलकै । तब बुढ़िया बोललकै - हाँ, हम तोरा रस्तावा बता देबो बाकि एक ठो बात पर । जब तूँ हम्मर बतिया नऽ मनबऽ तो तूँ जंगल में भूखे-पिआसे तड़प-तड़प के मर जयबऽ । रजवा बतिया पूछलकै - कउन बात बुढ़िया । बुढ़िया कहलकै कि हमरा एगो बेटी हकौ । जब तूँ ओकरा अप्पन रानी बनयबऽ तब तोरा जंगल से बाहर जाय के रास्ता बता देबो । रजवा बेचारा की करते हल ? बुढ़िया के बात मान लेलकै । तब बुढ़िया रजवा के रस्ता बता देलक । रजवा बुढ़िया के बेटिया लके अप्पन गाँव पहुँचलै । उहाँ ऊ दूनो में सादी हो गेलै ।

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1.21 सपना के हाल

[ कहताहर - गोविंद प्रसाद, उम्र 35 वर्ष, ग्राम-पो॰ - मेढ़कूरी, जिला - नवादा ]

एगो ब्राह्मण हलै । ओकरा एके गो लड़का हलै । ऊ सब कुछ में तेज हलै बाकि गरीब ब्राह्मण होवे से पढ़ा-लिख नै सकऽ हलै । ओकर गाँव के लोग बड़ी कहलकै कि ये पंडी जी, तूँ अप्पन लड़कावा के पढ़ा देतो हल से तोहर लड़कावा पढ़े में बड़ी तेज हको । कुछ दिन के बाद ब्राह्मण एगो मास्टर से कहलकै कि ए गुरु जी, हम्मर लड़कावा के कोय तरह से पढ़ा देतो हल तऽ बड़ी अच्छा होते हल । तऽ गुरु जी पढ़ावे लगलथि । दुनों हमसे एके साथे खा हलथी, पीआ हलथी आउ रहऽ हलथी । कुछ दिन के बाद एक रात में लड़कावा एगो सपना देखलकै लि दूगो लड़की हमरा नेहावऽ है आव एगो पानी भर रहलै है । फिर निन्दिया टूट गेलै । तब ऊ हँसे लगलै । एकरा बाद काने लगलै । तब गुरु जी एकर कारन पूछे ला चाहलथी । लेकिन सोचलथी कि अभी रात हे से भोरे पूछवै । जब भोर भेलै तब नस्ता-पानी करे के बाद गुरु जी पूछे लगलथी कि आज रात में तूँ हँसे लगलहीं आउ फीन काने काहे लगलहीं । तब लड़कावा कुछ नै बोललै । काहे से कि गुरु जी के भी दूगो लड़की हलै आउ अपना अउरत हलै । एही से केतनो पूछलकथिन बाकि नै कहलकै । अन्त में गुरु जी मारे ले दउड़लथी । तब ऊ लड़कावा भागे लगलै । भागते-भागते एगो राजा मिललै ओकरा से सब हाल कह देलकै । राजा के दया आ गेलै । तब ओकरा लेके राजा घर चल गेलै । कुछ दिन के बाद सब बात जान गेलै आउ लइकवा से पूछे लगलै कि तहिना तूँ सपना में की देखलहीं हल ? कि तोरा गुरु जी पूछलकौ हल तो नै बतौलहीं हल, से ऊ मारे लगलौ बाकि ऊ राजा के भी नै बतौलकै । काहे कि राजा के भी दूगो बेटी हले आउ अपना अउरत हलै । एही से राजा भी केतनो पूछलकै बाकि नै कहलकै । से खिसिया के राजा अप्पन जल्लाद से कहलकै कि जाव एकर करेजा काढ़ के लेले आवऽ । जब ऊ लड़कावा के ले जाय लगलै तब रानी कहलकै कि ए जल्लाद, तोरा हम दू हजार रोपैया दे हियौ से तूँ ई लड़कावा के हमरा दे दे आउ बानर के करेजा लान के राजा के दे दे । जल्लाद ऊ लड़कावा के दे देलकै आउ दू हजार रोपैया ले लेलकै आउ बानर के करेजा लाके राजा के दे देलकै । ऊ रानी के यहाँ छिप के रहे लगलै ।

ओही समय में एगो राजा दूसर राजा के परीक्षा करऽ हलै । तो एक दिन ऊ राजा से चिट्ठी अयलै । ओकरा साथ दू गो घोड़ी भी हलै । चिट्ठीया में लिखल हलै कि ई दूनों घोड़ी में कउन माय है आउ कौन बेटी हे । अगर तूँ नै पहचनवै तो हम तोहर राज ले लेवौ आउ अगर पहचान जयवै तो हम्मर राज तूँ ले लिहैं । राजा के भारी फिकिर पड़लै । राजा सब हाल रानी के कह देलकै । तब रानी भी उदास रहे लगलै । रानी के उदास देख के लड़कावा पूछलकै । पूछला पर सब हाल मालुम होलै । तब लड़कावा कहलकै कि हम पहचान जैवे । दूसर दिन रानी कहलकै कि ए राजा, से एगो लड़का है, से कहऽ है कि हम पहचान जयवै । से जी-जान ओकर बकस देहौ तब हम बोलयवो । राजा कहलकै कि जाव सो ले आवऽ । रानी ऊ लड़कावा के ले लैकै । लड़कावा राजा से कहलकै कि एक सड़क पर ढेर सान कूड़ा-करकट जमा कर के जरवा देहै । राजा सब कुछ कर देलकै । तब दूनो घोड़िया के मँगावल गेलै । दूगो घुड़सवार दुनू पर सवार हो गेलै आउ कूड़ा-करकट के ढेरवा से टपावे लगलै । एगो टाप गेलै से माँ हलै आउ एगो नऽ टपलै से बेटी हलै । राजा एगो कागज में 'माँ-बेटी' लिख केगियरिया में बाँध देलकै । घोड़ी के छोड़ देलकै । दूसर राजा अप्पन राज के हार गेलै । ऊ राजा के एके गो बेटी हलै से ऊ ई राजा के पास चिट्ठी लिखलकै कि अप्पन बेटा से हम्मर बेटी के सादी कर लऽ । बड़ी धूम-धाम के साथ दूनो के सादी भे गेल । ऊ लड़कावा अपना ससुर के इहाँ रहे लगल आउ उहाँ के राज-पाट करे लगल । अब ऊ अप्पन पिता के भी बोला लेलकै आउ हराम से रहे लगलै । बुद्धि से का नऽ हो जा सकऽ है ।

1.20 राजा के बेटी पंडुक

[ कहताहर - गंगाजली, उम्र 14 वर्ष, बेलखरा, जहानाबाद ]

एगो राजा हलन । ऊ बड़ी गरीब हलन । उनका एको बाल-बच्चा नऽ हले । उनखनी दू परानी हलन । सोचलन कि हमनी के बाल-बच्चा नऽ हे से एकर कुछ उपाय करे के चाहीं । उनखनी दूनों आपसे में बतिआइत हलन । एतने में उनकर गोतिनी आ गेलइन से पूछे लगलन कि तोहनी फुसुर-फुसुर का बतिआइत हँऽ । उनखनी दूनो कहलन कि हमनी के बाल-बच्चा नऽ हे, से ही दुख-सुख बतिआइत ही आउ का ?

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1.19 नाग के बेटा

[ कहताहर - देवनारायण मेहता, ग्राम - चौरी, औरंगाबाद ]

एगो हलन पंडित जी ।उनका दुनिया से कुछ मतलब नऽ हल । उनका एगो लड़की हल । आउ ऊ अपने मेहरारू के साथे रहऽ हलन । उनकर मेहरारू हमेसा सोचइत रहऽ हलन कि कइसे राज-पाट चलत । उनकर पतिदेव हमेशा चौबिसो घंटा पूजा करऽ हलन । से ई से उनकर मेहरारू उनका पर बड़ी खिसिया हलथिन । इहाँ तक कि उनका मार-गारी भी दे दे हलथिन । इकरा मारे बाबा जी एकांत जगह में पूजा करे वास्ते चल देलन । चार-पाँच दिन हो गेल बाकि पंडित जी घरे नऽ अयलन । उनकर घरे के सोचलन कि बाबा जी कहाँ चल गेलन । पंडिताइन जी टोला-परोस के लइकन से पूछलन कि बाबा जी के देखले हें बाबू ! लइकन सब कहलन कि हाँ, हम देखली हे । से ऊ अहरा पर जाके दिन-रात पूजा करइत रहऽ हथुन । उनकर मेहरारू कहलथिन लइकवन से कि ए बाबू, तूँ जाके तंग करऽ गन कि ऊ पंडित जी उहाँ से भाग जाथ । जब लइकन उनका बड़ी तंग कयलक तब बेचारे अप्पन बोरिया-विस्तर बाँध के अप्पन गाँव से एकांत जंगल में एगो तलाब पर चल गेलन । उहाँ अप्पन आसन लगौलन ।

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1.18 मुरगा में अदमी

[ कहताहर - शांति देवी, ग्राम - बमना, जहानाबाद ]

एक हलक राजा । ओकरा बड़ी मानी रानी हले । ओकर एगो रानी के एगो अइसन बेटा हले कि दिन में तो ऊ मुरगा रहे आउ रात में अदमी बन जाय । एक दिन मुरगावा चरे ला बाहर गेल । चरते-चरते ओकरा एगो सोना के गुल्ली मिलल । ऊ घरे आने के धर देलक । दोसर दिन फिनो चरे गेल तो ओकरा एगो आउ गुल्ली मिलल । ओकरा लेके आगे गेल तो एगो अदमी मिलल । ओकरा से मुरगावा कहलक कि हम्मर सोना के गुल्ली ले ले आउ चाउर से कान भर दे । दोसर राजा के बेटी एगो लाल देखलक तो माय से कहलक कि एगो सोना के गुल्ली ले ले आउ चाउर से मुरगवा के कान भर दे । जब ओकर कान भराय लगल तो राजा के सब कोठी के चाउर काली हो गेल, तइयो मुरगवा के कान नऽ भरायल । तब फिनो मुरगवा कहलक कि एकमुट्ठी आउ भर दे । एक मुट्ठी चाउर आउ डाललक तो ओकर कान भर गेल । मुरगा लाल दे के आगे बढ़ल तो ओकरा एगो बकरी के चरवाहा मिलल । ओकरा से ऊ कहलक कि जाके हम्मर माय से कह दे कि सब कोठी-भाँड़ी अजवार के रखत । मइया कहकई कि मुरग हो के कहाँ से अन्न-धन लावत घर जाके मुरगा बोले लगल - "मइयाव, कोठिया अजबरिहें, मइया, घरवा अजबरिहें ।" आउ मुरगा अप्पन कान झारलक तो घर-अंगना चाउर से भर गेल । अगल-बगल के गोतिया-नइया अपन बेटा-बेटी के मारे लगलन आउ कहलन कि मुरगा हो के चाउर-दाल लावइत हे आउ तोहनी अदमी हो के कुछो नऽ करे ।

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1.17 औघड़दानी शिव-पार्वती

[ कहताहर - मुद्रिका, ग्राम - सुमेरा, जिला - जहानाबाद ]

एगो हले राजा । ऊ बड़ी राजा हले । ओकरा ही खायओला कोई नऽ हले । अनाज से सब कोठी भर गेल हले । से ऊ एक दिन अप्पन कोठी में आग लगा देलक । ओकर धुआँ अकास में उड़ल आउ इनरासन भी ओकरा से डोल गेल । उहाँ इनर भगवान समझलन कि कोई यज्ञ कयलक हे । ऊ आन के पूछलन कि "ओ बच्चा, केंवाड़ी खोल । तूँ काहे ला एतना धन जरवलऽ हे ? का सोच के अइसन काम कयलऽ हे ?" राजा कहलन कि "हमरा बड़ी मानी धन हले बाकि कोई खनिहारे नऽ हले ।" भगवान कहलन कि तोरा एगो बेटा होतवऽ । तूँ जहाँ बारह आम के एगो घउद के देखिहँऽ तऽ बायाँ हाथे मारिहँऽ आउ दहिना हाथे लोकिहँऽ । आन के अप्पन रानी के खिआ दीहँऽ । नौ महीना के बाद एगो लइका जनम लेतवऽ बाकि ऊ लइकवा बारहे बरस जितवऽ, फिरो मर जतवऽ ।


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1.16 राजा के बहादुरी

[ कहताहर - मुद्रिका, ग्राम - सुमेरा, जिला - जहानाबाद ]

एगो हलन राजा जी । उनका इक्के गो लइके हलइन । खाय-पीये के तो कुछ कमिए नऽ हलइन । उनकर बेटा बड़ी पहलवान निकललइन । एक दिन एगो बड़ी मतवाला हाथी सब अदमी के खदेरइत हल । जब ई राजा जी ओकरा देखलन, तब अइसन तबड़ाक मारलन कि हाथी सौ कोस पर जा के गिरल आउ अलअला के मर गेल । राजा जी के बड़ी सन्नर बगइचा हले । ऊ ओकर अप्पन जानो से बढ़ के जानऽ हलन । राजा जी रोज ओहिजे सूतऽ हलन । एक दिन एगो गड़ेरिया उनकर बग में आयल आउ सब भेंड़ी के घुसा देलक । राजा केतनो कहलन कि अप्पन भेंड़ी के निकाल नऽ तऽ मार देबउ । ऊ नऽ मानलक आउ कहलक कि देखऽ हिवऽ तूँ का करऽ हऽ । तब राजा घरे गेलन आउ अप्पन सोंटा ले अयलन । अइसन ऊ सोंटा हल कि राजा जेतना अदमी के मारे ला चाहऽ हलन ओतना अदमी मर जा हल । बगइचा में जाके राजा जी अप्पन सोंटा चलवलन । ओकरा से जेतना भेंड़ी हल आउ जेतना भेंड़ी के चरवाहा हल, सब के मूँड़ी कट गेल । तब उन खनी सब चरवहन के सम्बन्धी सब राजा जी के मारे ला सोचलन । गड़ेरिया सब ओही रात के सात सौ दैत्य के नेवत देलक । उनकर मेहरारू के ई मालूम भेल कि आज राजा जी नऽ बचतन । तब रानी राजा जी के खूब मना कयलन कि आज मत जा । तब राजा कहलन कि हम तुरत आ जाम । एतना कहके राजा बगइचा में चल गेलन ।

बगइचा में ऊ जहाँ सूतल हलन उहाँ एगो पेटारी रख देलन आउ ओकरा चद्दर-उद्दर ओढ़ा के अइसन रख देलन कि लगे, राजा जी सूतल हथ । अपने जाके एगो आम के पेड़ पर चढ़ गेलन । जब रात के सब दैत्य आयल तब कहलक कि अच्छे ! आज तो रजवा के खयवे करबइ । ओकरा में एगो दैतवा कहलकइ कि आज तो इनका खयबे करबहीं बाकि पाँच फेरा घूम के खाहीं, तब ठीक होतई । सब दैत्य पाँच फेरा घूम के राजा के खाय ला ओढ़ावल कपड़ा उठवलक तो देखइत हे कि एगो खाली पेटारी रखल हे । तब सब दैतवा मिल के ऊ सब कपड़े नोचे लगल । तब राजा ऊपरे से अइसन सोंटा झारलन कि सब दैत्य के मुँड़ी कट गेल । राजा पेड़ पर से उतर के सीधे घर चल अयलन । तब सब गड़ेरियन भोरे सुनलन कि राजा सब दैतवन के मार देलन हे । तब ऊ सब सोचलन कि ई राजा के कइसहु मारे के चाहीं । तब सब जा के जंगल में सब बाघ के नेवत देलन, फिनू राजा जी के इयार उनकर मेहरारू से कहलन कि आज उनका ला बड़ी मानी बाघ नेवतलवऽ हे । तब राजा ओइसहीं रात के अप्पन बगइचा में जाय लगलन । तब रानी कहलन कि आज हम तोरा कोई हालत में नऽ जाय देबवऽ । कइसहुँ राजा जी बगइचा में चल अयलन । ओइसहीं बाना बनाके ऊ पेड़ पर चढ़ गेलन । राजा सोंटा से सब बघवन के मार देलन । राजा जी नहिए मरलन । गड़ेरियन के सब उपाय निष्फल भेल ।

1.15 पड़िआइन के पुतोह

[ कहताहर - साधुशरण, ग्राम-पो॰ - मखदुमरबाद, जिला - जहानाबाद ]

एगो गाँव में एगो पाँड़े आउ पड़िआइन रहऽ हलन । उनका खाली एगो बेटी हल । बड़ी दिन तक कोई बेटा न भेल । पाँड़े रोज आलसी के तरह सूतल रहथ । ढेर मानी दिन उठ जाय तइयो ऊ न उठथ । एक दिन पड़िआइन कहलन कि तोरा बेटा का होतवऽ । सबेरे उठऽ हइये नऽ, घूमऽ फिरऽ हइये नऽ । से एक दिन पाँड़े जी खूब तड़के उठलन आउ नेहा-दोवा के चलल आवइत हलन । राह में एगो महात्मा खड़ाऊँ पर चढ़ल जाइत हलन । पाँड़े के सबेरे देखलन तो पूछलन कि तूँ ई घड़ी जाइत हें । पाँड़े जी कहलन कि हमरा कोई बेटा नऽ हे । ओही ला जाइत ही । महात्मा जी कहलन कि ई मट्टी ले जो आउ अप्पन मेहरारू के कान में डाल दे । पाँड़े अइसने कयलन आउ उनकर अउरत के गरभ रह गेल । नौ महीना के बाद उनका एगो बेटा पैदा लेलक । ऊ लइका रोज एक जौ बढ़े । थोड़े ही दिन में सयान हो गेल । पड़िआइन चाहलन कि अप्पन दूनो संतान के एके घर में सादी कर दीहीं । बाकी लड़कावा गोलावट सादी करे ला तइयारे न होवे । अंत में माय के जिद्द रोप देला पर बेटा सादी करे ला तइयार हो गेल । एके घर में सादी ठीक हो गेल । पहिले पड़िआइन के बेटी के बराती आयल । सादी-उदी हो गेल । बेटा के बराती जाय के तइयारी भेल तो तो नहछुर के पहिले बेटवा कहलक कि हमरा बड़ी गरमी लगइत हे । मना कइला पर भी ऊ न मानल आउ लोटा-डोरी लेके बाहर कुआँ पर नेहाय चल गेल । उहाँ जा के लोटा-डोरी कुआँ पर रख देलक आउ अपने ओकरा में कूद गेल । एने बराती के जाय में कुबेर होय लगल से खोजाहट भेल । लोग कुआँ पर गेलन तो देखइत हथ कि ऊभ-डूब करइत हथ । उनका निकालल गेल । लोग उनका "इनरडुब्बू" कहे लगलन ।


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1.14 दूगो राजकुमार

[ कहताहर - पारसनाथ, ग्राम - तबकला, पो॰ - सकरी, जिला - जहानाबाद ]

एगो राजा हलन । उनका गाँव में एगो बाजार लगऽ हल । ऊ बाजार में जे सामान न बिके, साँझ के राजा आके ओकरा खरीद ले हल । एक दिन साँझ के राजा उहाँ खरीदे गेल तो देखलक कि एगो मुरगा एक आदमी के नऽ बिकल हे । राजा मुरगा के दाम पूछलन तो ओकर मालिक कहलक कि मुरगा के दाम मुरगे से पूछऽ । मुरगा से पुछला पर ऊ अप्पन दाम एक लाख बतौलक । राजा अनहोनी मुरगा समझ के ओकरा एक लाख दाम देके ले लेलक ।

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1.13 कुटनी बुढ़िया

[ कहताहर - पनकुरी देवी, ग्राम - बेलखरा, जिला - जहानाबाद ]

एगो जंगल में एगो कुटनी बुढ़िया रहऽ हल । उहाँ पाँच-छव गो गाय-भइँस के चरवाहा ढोर चरावे जा हलन । एक रोज छवो साथी मिल के चूहा पकड़लन आउ ओकरा पका के खाय ला आग खोजे चललन । ओहनी ऊ कुटनी बुढ़िया भिरू धुआँ देखलन । ओकरा में से एगो कुटनी भिरू जा के आग माँगलक । तब कुटनी बुढ़िया कहलक - नऽ हमरा हाथ हे, नऽ हमरा गोड़ हे, नऽ हमरा आँख हे, नऽ हमरा कान हे, से अपने ले लऽ बाबू । हम खाली तमाकुल पीये ला आग रखले रहऽ ही । अपने काढ़ के ले लऽ बाबू । ऊ लइका आग काढ़े गेल । बस, कुटनी बुढ़िया उठल आउ ओकरा एके 'कउर' में निगल गेल । इहाँ इयार सब सोचलन कि ऊ कहाँ रह गेल । तब दूसर इयार के आग ला भेजलन । कुटनी बुढ़िया उनकरो एके कउर में खा गेल । ओइसहीं ऊ बुढ़िया पाँच साथी के खा गेल । छठा साथी बड़ी फेर में परल कि ओहनी सब कहाँ चल गेलन । ऊ कुटनी बुढ़िया भिरू गेल आउ जल्दी से आग माँगलक आउ बतौला पर आग काढ़े लगल । बुढ़िया जइसहीं खाय ला मुँह खोललक तइसहीं मुँह पर एक थप्पड़ मारलक तऽ ओकर एक साथी निकलल । ई तरी पाँच थप्पड़ में पाँचो साथी निकल गेलन । फिनो सबे मिलके मौज से रहे लगलन ।

1.12 बिसेसरवा

[ कहताहर - नारायण दास, ग्राम - खुटहन, जिला - औरंगाबाद ]

बिसेसरवा नाम के एगो ब्रह्मन हलन । उनका सादी न भेल हल । एक दिन ऊ जाके भावी (Future prophet) से पूछलन कि हमरा केकरा से विआह होवत ? भावी कहलक कि तोहर गाँव में एगो धोबी रहऽ हवऽ, ओकरे बेटि से तोर सादी होतवऽ । एकरा पर ऊ बाबा जी भावी के दू लात मारलन आउ कहलन कि हम पंडित ही आउ धोबिन से हम्मर सादी होयत । एतना कहके ऊ अपन गाँव चल अयलन । ऊ पंडित जी धोबिया के लड़किया के मारे ला बड़ी उपाय रचलन । धोबिया एक दिन अपन बेटी के साथे कपड़ा धोवे गेल । एने पंडित जी ओकर घरवा में आग लगा देलन आउ दउड़ल-दउड़ल आन के धोबिया भीर खबर जना देलन । धोबिया अपन बेटी के बिसेसरवा पंडित पर छोड़ के आग बुतावे ला दउड़ल । एने पंडित जी ऊ लड़किया के जाँघ चीर के ओही नदी में दहा देलन । दहइत-दहइत ऊ लड़की एगो ब्राह्मण से छानल गेल । ऊ बाबा जी के कोई संतान न हल । सेकरा से ऊ पंडित जीलड़किया के खूब अच्छा से पोसे लगलन । पोस के जवान कर देलन तब ओकर विआह करे ला वर खोजे निकललन ।

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1.11 करमजरी के भाग

[ कहताहर - राधा कली, ग्राम - सिमरा, पो॰ - पनारी (गया) ]

एगो राजा के सात बेटा आउ एक बेटी हल । सातो बेटा के पहिले सादी भे गेल । बेटी के भी सादी ठीक हो गेल, बारात आयल आउ सादी भी हो गेल । कोहबर में लोग ओकरा से नाम पूछलन । ऊ कहलक कि नाम कहम तब हम मर जायम । लोग नऽ मानलन, कहलन कि नाम तो हम बतावइत ही । हम मर जायब तब हमरा जारिहऽ न, जंगल में फेंक दीहऽ । नाम धरते ऊ मर गेलन । मरे पर रोआ-रोहट होवे लगल । राजा के बेटी के नाम 'करमजरी' पड़ गेल । बरात घुर के चल गेल । राजा के बेटा के जाके लोग जंगल में फेंक देलन । सातो भाई परदेश जाय लगलन । अप्पन मेहरारू से सब जाइत खनी पूछलन कि तोरा ला का लबवऽ । ऊ सब अपन मन के मोताबिक कहलन । फिन सातो भाई 'करमजरी' से भी पूछलन कि तोरा ला हम कउची लायम ? ऊ कहलक कि हमरा ला एगो 'पनबट्टा' लेले अइहँऽ । सातो भाई परदेश चल गेलन । साल भर छव महिना के बाद लौटलन । सब सामान ले लेलन । तब सातो भाई फिन पनबट्टा ला चललन आउ पूछलन कि एकरा केतना दाम हे । दोकानदार कहलक कि एकर दाम एक लाख रोपेया हे । एक लाख सुन के ओकरा नऽ खरीदलन । सातो भाई बतिअयलन कि बहिनी से कहम कि मिलबे नऽ कयल । समुन्दर किनारे आन के जहाज पर चढ़ गेलन । चढ़ला पर जहाज खुलबे नऽ करे । केतनो उपाय कयल जाय तइयो नऽ खुले । तब सातो से मलाह पूछलक कि तोहनी के कुछ सरो-समान गड़बड़ायल हे से हमर जहाज नऽ खुलइत हे ।

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1.10 बाँसुवे का नाच

[ कहताहर - लक्ष्मीकांत पाठक, ग्राम - नवादा (गया) ]

एगो राजा आउ एगो वजीर के लड़का हलई । दूनु में बड़ी दोस्ती हलई । दूनु के पढ़ा-लिखना आउ रहना एके जगह होवो हलई । पढ़-लिख के होसिआर हो गेल तो दूनु अपने में गौर कैलक माय-बाप हमनी के सादी-बिआह कैलक हे कि नञ एकर पता लगावे के चाही । तू हम्मर माय से जा के पूछऽ आउ हम तोर माय से जा के पूछवौ । दूनु एक-दोसर के माय से पूछ आयल आउ ई जान के खूब खुस भेल कि दूनु के विआह बचपन में हे गेले हई । दूनु गौर कर के एक साथ घोड़ा पर सवार होके ससुरार के राह पकड़ लेलक । चलते-चलते एगो चौराहा पर पहुँच गेल । ठहर के दूनु सोचे लगल । इहाँ से दूगो राह दू दने जा हई । राजा के लड़कावा पूछलक ई कि काहे घोड़ा खड़ा कयले तब वजीर के लड़कावा कहलकई कि अकेले तो मन नहिए लगतई । ई से तू कहौ तो हम साथ चलूँ आउ नञ् तो हमरा साथ तो चलौ । राजा के लड़का कहलकई - अच्छा भाय, हमरे ससुरार चलौ ।

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1.09 ब्राह्मण के बेटी आउ चमार के बेटा

[ कहताहर - नारायणदास सिंह, ग्राम - खुटहन-दाउदनगर, जिला - गया ]

कोई गाँव में एगो पंडी जी रहऽ हलन । ऊ पंडी जी के एगो बेटी हल । पंडी जी ओकरा सादी करे ला लड़का खोजे लगलन । लड़का न मिलल तो पंडी जी भावी (one who knows future) से पूछे गेलन कि ए भावी, तूँ बोलऽ तो, हम्मर बेटी के केकरा से सादी होत । तऽ भावी बोलल कि गाँवे में एगो चमार के बेटा हवऽ । ओकरे से तोहर बेटी के सादी होतवऽ । ओतिए घड़ी ऊ पंडी जी भावी के दू लाती मारलन आउ कहलन कि हम्मर बेटी के सादी का तो चमार से होत । हम देखइत ही । भावी कहलन कि मारऽ चाहे कुच्छो करऽ बाकि ओकर बिअहवा ओकरे से होतवऽ । पंडी जी ओकरा इहाँ से चललन आउ गाँव में पहुँच गेलन । चमरा के लइकवा के मारे के फेराक में लग गेलन । तब पंडी जी चमरा के लइकवा के कहलन कि ले तूँ ई चिट्ठी के राम-लछुमन के दे आव । पंडी जी सोचलन कि रास्ता में एकरा बाघ-सिंघ खाइए जायत ।

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1.08 तीन राजकुमार

[ कहताहर - सूर्य देव सिंह, ग्राम - तवकला, जिला - गया ]

एक राजा के तीन लइका हलन । तीनो पढ़ऽ हलन । तीनो भाई सलाह करलन कि आज हमनिओं सिकार करे चलऽ । ई सोंच के तीनों बाप भीर आके कहलन । बाप ऊ सबसे कहलन कि जोऽ, बाकि दखिन, उत्तर और पूरब में जइहें ।तीनों भाई तीन दने सिकार ला चल देलन । राजा साहेब के भीर सिकार ला मन न लगल तब ओहू चल देलन । कहऊँ सिकार न मिलल तऽ एक बरके गाँछ तर खाली एगो सुग्गा देखाई पड़ल । तब राजा साहेब उहाँ पहुँचलन । घोड़ा से उतरलन आउ सब पोसाक उतारलन, तीर हाथ में लेके मारे ला चाहलन बाकि बढ़िया सुग्गा देखके मारे ला न सोचलन । हाथ से पकड़े ला सोचलन आउ पेड़ पर चढ़के पकड़े ला चाहलन बाकि ऊ सुग्गा के रूप में दैत्य हल । तुरते राजा साहेब के निगल गेल । राजा के पोसाक पहिन के राजा के रूप बना लेलक, घोड़ा पर चढ़ गेल । मन में विचार करइत हे कि हमरा इनकर घरे कइसे रहे के चाहीं । घरे पहुँच के घोड़ा अस्तबल में बाँध देलक आउ भोजन करे गेल तो रानी कहलन कि राजा साहेब, बड़ी थोड़ा-सा खयलऽ । राजा कहलन कि सिकार न मिलल सेकरे से कम खइली हे । बिहान रास्ता में कर चार गो अदमी के राजा साहब के रूप में दैत्य खा गेल । दूसरा रोज अइसही आठ अदमी के खा गेल । सब परजा उनकर लइकन से कहलन कि ई राजा न बुझाइत हथ, कोई दैत्य मालूम पड़इत हे । ई पर लइकवन खिसिअयलन कि हम्मर बाप अदमी खा हथ ? तब उनकर परजा कहलन कि अन्धार अपने ही देख लेबऽ । तेसरे दिन सतरह अदमी के खाइत देखलन । तब लइकवन जान गेलन कि ई हम्मर बाप न हथ ।
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1.07 बड़ डर टिपटिपवा के

[ कहताहर - जगदीश प्रजापति, ग्राम - कचनामा, रामपुर (गया) ]

एक जंगल में एगो बुढ़िया रहऽ हल । ओकरा घोड़ा हल । अन्हार रात हल । बिजुरी चमकइत हल । उहाँ एगो चोर आउ एगो बाघ आयल । चोरवा चाहलक कि अबरी बिजुलिया चमके तो घोड़वा ले भागी । बघवा सोचइत हल कि अबरी बिजुलिया चमके तो घोड़वा के खा जाई । एही समै बुढ़िया बोलल कि डर चोरवा के, न डर बघवा के, भारी डर टिटिपवा के । चोरवा सोचलक कि एकरा न बाघे से डर हे, न हमरे से डर हे, तो टिटिपवा कउन हे ? बघवा भी सोचलक कि एकरा न हमरे से डर हे, न चोरवे से । एतने में बिजुली चमकल तो बाघ मुँह फाड़ के घोड़ा के पकड़े चलल आउ चोर लगाम लेके घोड़ा के लगाम देवे चलल बाकि लगाम घोड़ा के न पर के बघवे के गरदन में पर गेल आउ चोरवा ओकरा पर चढ़ गेल । अब बाघ भागल । चोरवा भी समझे लगल कि हम टिपटिपवा के फेरा में पड़ गेली । बिहान होला पर चोर देखलक कि हम बाघ पर चढ़ल ही तो ऊ कूद गेल आउ एगो पेड़ के खोढर में समा गेल । बाघ तो भागले जाइत हल ।

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Sunday, February 10, 2008

1.06 गुरु गुड़ चेला चीनी

[ कहताहर - सूर्यदेव सिंह, ग्राम - दनई, रफीगंज, जिला - गया ]

एगो हलन बाबा जी । दिन माँगथ तो सवा सेर आउ रात माँगथ तो सवे सेर । उनका कभी पेट न भरे । उनका दूगो लइकन हलन । बाबा जी सोचथ कि एहनी के कहिना पाठसाला में बइठाऊँ ? गरीबी से उनका बइठाबल न बनऽ हल । सपरते-सपरते दूनो लइकन सेआन हो गेलन । एक दिन उनकर दूरा पर बेर डूबइत एगो साधु पहुँचलन आउ कहलन कि 'मिले जजमान, मिले जजमान !' एकरा पर बाबा जी कहलन कि तोरा दिन भर माँगे से पेट न भरलवऽ तो बेरिया डूबे माँगे से पेट भर जतवऽ । साधु जी कहलन कि तूँ काहे ला खिसिआइत हऽ । तूँ ई दूनो लइकवन के पठसाला में न भेजऽ ? बाबा जी कहलन कि गरीबी से पाठसाला में भेजल पार न लगइत हे । साधु जी कहलन कि हमरा दूनो लइकवन के दे दऽ । हम पढ़ा दीवऽ लेकिन हम एक लेइकवा के ले लववऽ । बाबा जी दूनो परानी राय करके पढ़े ला साधु जी के दे देलन । साधु जी कहलन कि चार महीना कि बाद तूँ हमरा ही अइहँ । साधु जी लइका लेके चल अयलन । बड़का के बिसटी पेन्हा के बकरी चरावे ला भेज देलन । ऊ रोज बकरी चरावल करे । छोटका के सब गुन से भर देलन ।

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1.05 भूअवरा जिला के बाबू

[ कहताहर - श्यामदेव सिंह, ग्राम - दाउदनगर, चौरी (गया) ]

एक बड़ा भारी सहर में एगो राजा हलन । राजा के सात रानी हलन । बाकि सातो रानी में एक्को लड़का न हल । एक समय राजा जंगल में सिकार खेले गेल हलन, से ओही जंगल में एक दैत्य के सुन्दर लड़की जार-बेजार रो रहल हल । लड़की के पास राजा जाके पूछलन कि तू अकेले जंगल-झार में बइठ के काहे रोइत हे । से ई पर लड़की बोलल कि हमरा मरदाना एही जगह बइठा के कने तो चल गेलन । एही लागी हम बइठ के रोइत ही । एकरे पर राजा कहलन कि तू हमरा साथ चलवे ? तब लड़की राजी हो गेल । राजा ओकरा अप्पन घोड़ा पर बइठा के राजमहल में ले अयलन । राजा के पहचान में न आयल कि लड़की दैत्य के हे । ऊ बड़ी सुन्दर हल से ई से राजा ओकरा साथ काफी प्रेम रखे लगलन ।

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1.04 उदन छत्री के वीरता

[ कहताहर - श्यामसुन्दर सिंह, ग्राम - बेलखरा (गया) ]

एगो राजा हलन । उनका बड़ी धन हल । बाल-बच्चा न होव हल । तब एक-एक कर छव गो सादी कयलन । तइयो न एको लइकन होयल । तब एक सादी आउ कयलन । तइयो कोई बाल-बच्चा न होयल । ई जानके ऊ एक दिन भोरे मैदान जाइत हलन कि एगो कानुन पर नजर पड़ल । कानुन कहलक कि आज बाँझ के मुँह देखली हे । का जनी कइसन तो दिन जाहे । सुनके राजा जंगल में चल गेलन । उहाँ ध्यान लगौलन तो भगवान खुस होके अयलन । ध्यान तोड़लन तो पूछलन कि तोरा का चाही । राजा कहलन कि हमरा कोई बाल-बच्चा न हे । हम सात गो सादी कइली हे । तब भगवान कहलन कि इहे रास्ता में आम के एगो पेड़ हे , जहाँ सात आम के घउद हे । एक झटका में घउद के गिरा के ऊपर ही लोक लीहँ । राजा आम तर पहुँचलन, आम तोड़लन आउ अपन घरे चललन । घरे रानी सब के एकह गो आम खिला देलन । सातो के गरभ रह गेल । झगड़ा कर के छोटकी के सब रानी घर से निकाल देलन । ऊ दोसर के राज में, जंगल में जाके रोइत हल । ओकर रोवाई से सब कुछ दुःख में भे गेल । ऊ गाँव के राजा आयल आउ पूछलक कि काहाँ तोर घर हवऽ बहिन ? राजा बहिन के नाता लगा के ओकरा घरे ले गेलन । उहई पर उनका लड़का पैदा लेलक । ओकर नाम उदन छत्री परल आउ ऊ छवो रानी से छव भाई के जलम भेल । एहो सब बीर-बलवान भेलन । सब लड़कन पढ़े लगलन तब ऊ सब कुस्ती भी करऽ हलन । उदन छत्री ई छवों के अखाड़ा में आके इनखर मुगदर तोड़ देलन । तव छवो भाई अयलन आउ कहलन कि कउन अइसन वीर हे जे हम्मर मुगदर तोड़ देलक हे ? फिर ऊ चउरासी मन के मुगदर बना के ले आयल आउ अखाड़ा में रख देलक । फिर बिहाने उदन छत्री ऊहाँ अयलन आउ मगदर देख के कुस्ती कयलन आउ मुगदर उठा के पटक देलन । ऊ टूट के चार गो हो गेल । ओकरा चारो कोना पर धर देलन । उहाँ से अप्पन घरे चल अयलन । फिर छवो भाई गेलन आउ देखलन कि मुगदर तोड़ल हे । ऊ कहलन कि कउन अइसन वीर हे जे मुगदर तोड़ देहे । तीसरा दिन भुतही हाथी के ले गेलन । ओही समय में उदन छत्री ओही अखाड़ा में कसरत करइत हलन, से देखलन हाथी के आउ इलम से हाथी के पाछा हो गेलन आउ पोंछी धर लेलन आउ घुमा के बीग देलन कि कहाँ हाथी आउ छवो भाई चल गेलन । एकर बाद उदन छत्री घरे चल गेलन ।

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1.03 मुरदा के करमात

[ कहताहर - श्यामसुन्दर सिंह, उम्र - 32 वर्ष, गाँव - बेलखरा (गया) ]

एगो महतो के चार लइकन हलन । ऊ बड़ा गरीब हलन । एक दफे चारों भाई अपना में बँटवारा करे ला लड़े लगलन । महतो जी कहलन कि ई घड़ी बँटवारा कउची के करबऽ ? हम मर जायम तो हमर शरीर ले जाके राजा के बजार में रख दीहँ । राजा साँझ खनी सब समान खरीद ले हथन । (राजा के पूछला पर) जाके कहिहँ कि मुरदा के दाम मुरदे कहत । महतो जी एक दिन मर गेलन । चारो भाई अनखा राजा के बजार में ले गेलन । सब सौदा बिक गेल तो लोग कहलन कि मुरदा तूँ इहाँ काहे ला लवलऽ हे । ओहनी कहलन कि हम बेचे ला लवली हे । सोर भेल आउ ई खबर राजा भीर गेल । राजा आन के ओहनी से पूछलन तो ओहनी कहलन कि मुरदा के दाम मुरदे कहत । मुरदा बोलल कि हम्मर एक लाख दाम हे । हमरा ले जाके अप्पन दुरा पर सामने मचान बना के रख दीहँ । राजा ओहनी के एक लाख रुपया दे के मुरदा ले लेलन । चारो भाई रुपेआ बाँट के घरे चल अयलन ।
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1.02 पिंगल पढ़ल औरतन

[ कहताहर - राजनाथ सिंह, उम्र - 20 वर्ष, बेलखरा (गया) ]

एगो हलन महतो जी । उनका दूगो औरत हल । एगो हल ब्याही आउ एगो हल अर्घी । दूनों से एकेक गो लइका हले । महतो जी एगो गाय पोसले हलन । उनकर दूनो औरत पिंगल पढ़के पीर होयल हल । बाकि महतो जी न जानऽ हलन । महतो जी के गाय तो दूध जरूर दे हल बाकि दूध के बँटवारा दूनों औरत में कम-बेसी हो जा हल । काहे के जब गाय दूहा हल तो जे पहिले जा हल ओही जादे दूध ले ले हल । एही दूध ला महतो जी के दूनों औरत में लड़ाई रहऽ हल । उकरा सोच के महतो जी के एगो आउ गाय खरीद लेलन । आउ एह गाय दूनों औरतन के दे देलन । तब ब्याही औरत महतो से कहलक कि गाय तो बाँट देलऽ हे । तब तुहूँ बँटा जा । एकरा ला अर्घी भी तइयार हो गेल । बँटवारा भे गेल कि महतो जी दूनों दने अठ-अठ दिन रहतन । जब ब्याही के पारी हल तब सब काम महतो जी ब्याही के करऽ हलन । एक दिन देखलन कि अर्घी के बछिया खोला के सब सब दुधवा पीले हे । महतो जी सोचलन कि अर्घी के भी लइकवा हमरे हे आउ ब्याही के भी हमरे हे । से जब हम न बान्हब तऽ आज अर्घी के लइकवा भूखे रह जायत । ई सोच के महतो जी बान्हें लगलन तऽ ब्याही देख लेलक । अर्घी भी ओने से आवइत हल से देख लेलक । ब्याही कहलक कि तू तो आज हमरा दने हऽ । से तू काहे ओकर गइया के बान्हलऽ । तूँ अर्घी दने रहऽ हऽ । हमरा दने खाली देखावे ला रहऽ हऽ ।
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1.01 नट-विद्या

[ कहताहर - श्री अयोध्या सिंह, ग्राम-पो॰ - बेलखरा, जिला - जहानाबाद]

एगो गाँव हल । ऊ गाँव में एगो राजा हलन । राजा के गाँव में एगो नट आउ नटिन आयल आउ आउ खेल-तमासा करे लगल । करते-करते राजा जी के दरवाजा पर पहुँचल । राजा जी कहलन कि हमरो दुरा पर खेल-तमासा करऽ । नटवा बोलल कि चार कोना पर चार गो सिपाही खड़ा कर दीहीं तो खेल करइत ही । राजा जी कहलन कि सिपाही के बदला में चार जगुन चार गो खूँटा ड़ा जाय तो का हरजा हे ? न राजा जी, खेल में चोट लग जायत तो ठीक न हे । से राजा जी चारो कोना पर चार गो सिपाही ठारा कर देलन । नट-नटिन खेल सुरू कैलक । तऽ राजा जी के मन में गड़ गेल कि नटिनियाँ के रख लिहीं । तब नटवा कहलक कि नटनियाँ के रख लिहीं । आउ हमर लास आवत तो जरा देव । राजा जी ओकरा रखीए लेलन । ओकरा बाद नटवा से कहलन कि हमरा नटविद्या सिखा दे । नटवा बोलल कि अपने राजा होके का नट-विद्या सीखवऽ ? तइयो राजा जोर मारलन तो नटवा कहलक कि हम तो न बाकि हम्मर गुरुजी सिखा देतन । तब राजा पूछलन कि ऊ कहाँ पर हथुन ? नटवा बता देलक । नट चल गेल आउ राजा नउवा के लेके नटवा के गुरु के पास नट-विद्या सीखे चल गेल ।
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