Thursday, March 27, 2008

8.20 ढपोरशंख

[कहताहर - पंकजवासिनी, द्वारा सुरेन्द्र साह, पटेलनगर, पटना]

एगो बाबा जी हलन । ऊ बड़ी गोल-गोल बात बतियावऽ हल । उनकर ई खूबी हल कि ऊ कोय के भी पुछला पर इया कोय काम अढ़ैला पर खूब लम्बा-चौड़ा बात बतियावऽ हलन बाकि करऽ कुच्छो न हलन । उनकर ई आदत से भला आदमी के बड़ी परेशानी होवऽ हल ।

एक तुरी ऊ जंगल से चलल आ रहलन हल कि उनका बीच राह में पड़ल एगो शंख मिलल । ऊ शंख के उठा के ले ले अयलन । घरे आके ओकरा धो-धा के ऊ पहले ओकर पूजा कयलन फिनू ओकरा फूँकलन । ओकरा में से अवाज आयल - "सुखी रहऽ बचवा ! जे मन के चाहऽ हवऽ से माँगऽ ।"

बाबा जी के ऊ घरी बड़ी भूख लगल हल । ऊ शंख के परनाम कहलन आउर कहलन - "हमरा बड़ी भूख लगल हे । से हमरा खूब बढ़िया भोजन करावऽ ।" उनकर प्रार्थना सुन के शंख बजलक - "ल लड्डू खाऽ ! पूड़ी खाऽ ! इमरिती खाऽ ! बर्फी खाऽ ! पेड़ा खाऽ ! "बाजा ती खुस होके कहलन - "बस, बस ! पहले इतने दे दऽ ।" ऊ आस जोहइत में बइठल रहल बाकि कुच्छो न आयल । बाद में ऊ अब भी कुछ मँगलन, ऊ शंख बार-बार ओयसने देवे के खूब लम्बा-चौड़ा हाँक देत बाकि कभियो कुच्छो देवे नऽ !

बाबा जी समझ गेलन के ऊ शंख उनकरे नियन खाली हाँके ओला ढपोरशंख हे, जो बात तो खूब लुभावे ओला कहऽ हे बाकि कुच्छो करऽ न हे !

8.19 अतिथि-सत्कार

[कहताहर - कुलवन्ती देवी, चुटकिया बाजार, सिमली शाहदरा, पटना सिटी]

एगो अदमी अपना के भारी शहंशाह समझऽ हलक बाकि ऊ हलक भारी कंजूस । से ओकरा हीं कोय अतिथि जदि आवऽहलक तऽ ऊ ओकरा कोय-न-कोय बहाना बना के टरका दे हलक ।

एक तुरी ओकर एगो बड़ा पुराना इयार ओकर घर आयल । अयला पर ऊ ओकरा अप्पन बैठका में बैठयलक, ओकर कुसल-क्षेम पुछलक आउ बचपन के इयाद करके हँसी-मजाक कयलक । ओकरा पैर धोवे ला ऊ पानी भी मँगौलक ।

भोर के बेरिया हल । जब बातचीत करइत कुछ समइया बीत गेल तऽ अप्पन बोली में असीम प्यार भर के ऊ कहलक - "आज एकादसी हवऽ । हमनी हीं सबकी उपवास हवऽ । कल रात के कुछ बासी बचल तऽ हे बाकि तूँ बसिया तो खैबऽ नऽ । से ई घरवा से निकलला पर अगलके मोड़ पर बंसी हलवाई के दूकान हवऽ । से तूँ उहाँ कचौरी जलेबी भरपेट जरूर खा लिहऽ, तोरा हम्मर किरिया ।"

8.18 पैंक के करमात

[कहताहर - भूपेन्द्र नाथ, मो॰पो॰ - बेलखरा, जिला - जहानाबाद]

एक ठो पैंक हल । ऊ एगो बस्ती में गेल । उहाँ कहलक कि हमरा तेरह हर के बैल हे, बाछी-पोछी के लेखा नऽ हे । इहाँ आ के देखलक कि बाड़ी बाछी हे जे अइसन चोता हगे हे कि अँगनो लीपे भर नऽ हे । बड़ा दगा देलक पैंक ।

कह गेल पैंक कि तेरह कोठी चाउर हे, कोठा-खुद्दी के लेखा-जोखा नऽ हे । आँख से देखली - पइला पर धान, माँड़ो चुये न हे । बड़ा दगा देलन पैंक !

कह गेलन पैंक कि सोना-रूपा ढेर हे, काँसा-पीतर के लेखा-जोखा नऽ हे । आँखि देखवलन कि फुटली छिपनिया कि पनियो रहे योग नऽ हे । बड़ा दगा देलन हो पैंक !

कह गेलन पैंक कि तेरह थान लूगा हे, फाटल-पुरान के लेखा-जोखा नऽ हे । आँखि देखवलन फटली लुगरिया जे पेंवनो साटे जोग नऽ हे । बड़ा दगा देलऽ हो पैंक ।।

8.17 घमघट

[कहताहर - भूपेन्द्र नाथ, मो॰पो॰ - बेलखरा, जिला - जहानाबाद]

लाल गोहुम के उजर चपाती आउ धीवन के ठट्ठा,
हम छानत हैं मोसाफिर, तू खाव तऽ बाजे घमघट ।।
घमघट के माने नऽ सखी, घमघट के माने नऽ ।।

कोठा ऊपर कोठरी, तर बिछाओ खाट ।
घमघट के माने नऽ सखी, घमघट के माने नऽ ।।
हम-तुम मोसाफिर मौज करो, तब बाजे घमघट ।।

लम्बा डाँड़ पात पुराना, सौंफ पुराना, सौंफ-मिरीच के ठट्ठा
भांग ले भंगोटन ले आ, तब बाजे घमघट ।।
घमघट के माने एही सखी, घमघट के माने एही ।।

8.16 अनमोल मोती सुरूपा

[कहताहर - रामचन्द्र मिस्त्री, स॰शि॰, मो॰-पो॰ - सोननगर, जिला - औरंगाबाद]

सात समुन्दर गंडक पार एगो मधुआ के गाँव हल, जेकरा में भोला नाम के मछुआरा रहऽ हल । ऊ समुन्दर से मछरी मार के खा-पीआऽ हल । कभी-कभी मोती भी मिल जाय तो ऊ काली माई के वरदान समझऽ हल । भोला बूढ़ा भेल तो तीरथ करे जाय लगल बाकि ओकर बेटा रोक देलकइन । एक तुरी बेटा समुन्दर में गोता लगौलक तो ऊ फिन कहिनो नऽ निकलल । भोला रो-धो के संतोख कैलक । कुछ दिन के बाद ओकर मसोमार पुतोह से एगो पोती भेलई आउ पुतहियो मर गेलई । भोला बेचारा टुअर पोती के पोसे-पाले लगल । नाव पर ले जा के पोती के सुता देवे आउ अपने समुन्दर में डुबकी लगा के मछरी-मोती निकाले । ई तरी गते-गते पोती कुछ सेयान भेलई तो ऊ दादा के काम में मदद करे लगल । अइसेहीं काम चलइत हल ।

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8.15 बिसवासघाती अउरत

[कहताहर - रामचन्द्र मिस्त्री, स॰शि॰, मो॰-पो॰ - सोननगर, जिला - औरंगाबाद]

एगो सहर में भारी राजा हलन । उनकर चार गो बेटा हलन । बड़का लड़का बड़ा बढ़िया हलन तइयो सहर के चुगला सब राजा भीर उनकर सिकाइत करके दू बरस दू बरस ला जंगल में निकलवा देलक । राजकुमार जंगल में जाय लगलन तो उनकर अउरत 'चन्द्रप्रभा' भी घिघिआ के साथ हो गेलथिन । ऊ कहलकथिन कि "बिन मरद के अउरत कइसे जीअत । से हमहूँ अपने के साथ जंगले में रहब !"

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8.14 राजा आउ ओकर छोटका बेटा

[कहताहर - रामकृत प्रसाद, मो॰ - चिलोरी, पो॰ - मखदुमपुर, जिला - जहानाबाद]

एगो राजा के चार गो बेटा हलन । जब बेटा सब पढ़-लिखके तइयार हो गेलन तो राजा कहलन कि तोहनी अप्पन-अप्पन काम बतावऽ । ओकरा में से बड़का बेटा कहलक कि हम अभी पढ़बो । मँझिला कहलक कि हम तो नोकरी करबो । सँझिला कहलक कि हम तो गिरहस्ती करबो । छोटका बेटा बंस में लेढ़ा लगाबे खातिर चोर से रूप में जनम लेलक । राजा छोटका लड़का से कहलक कि "ए बेटा, तू जब अप्पन माय के झुल्ला चोरा ले अयबऽ तऽ हम मानब कि तूँ सही चोर हऽ । राजा के छोटका बेटा अप्पन महल में सेन्ह फोर के अप्पन माय के पास पहुँचल । गरमी के महीना हल । ओकर माय गरमी के मारे झुलवा काढ़ के खटिया पर रख देलक हल । ऊ झुल्ला उठाके ले भागल आउ जा के बाबू जी के देखा देलक । राजा कहलन कि तू ठीके में पकिया चोर हें । राजा फिनो कहलन कि हम्मर बेटा तो बंस में लेढ़ा लगाइये देलऽ बाकि हम तोरा सही माने में पकिया चोर तब समझवो जब तू फलना राजा के सात भुजाओला तरवार आउ सामकरन घोड़ा चोरा के ले अयबऽ । बेटा कहलक कि "बापजान, हम जरूर ला देम ।" राजा बेटा के दिन-तारीख दे देलक । छोटका बेटा ओही दिन महल से चल देलक ।
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8.13 राजा ला चोर चतुर

[कहताहर - सुमेरु सिंह, मो॰-पो॰ - जईबिगहा, जिला - गया]

नौरंग आउ सबरंग नाम के दूगो भाई हलन । ओहनी दूनों भाई चोरी करे में माहिर हलन । एक दिन दूनों सोचलन कि "हमनी चोरी तो बड़ी कैली बाकि राजा हीं नऽ चोरवली तो पक्का चोर कउची के ? आजे चलल जाय !" दूनों भाई तैयार हो गेलन । फिन दूनों राजा के महल में घुस गेलन । उहाँ देखलन कि राजा सूतल हथ आउ नउवा गोड़ में तेल लगा रहल हे । जब राजा के नीन आ गेल तऽ नउवा उठ के चल देलक । तऽ चोरवा के छोटका भइवा राजा के खटिया पर बइठ गेल आउ गोड़ दबावे लगल । एतने में रजवा के नीन टूट गेलई आउ नउवा के खिस्सा कहेला कहलन तो नउवा के जगह पर बइठल चोरवा खिस्सा कहे लगल ।
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Wednesday, March 26, 2008

8.12 राजकुमार के बहिन आउ डोम (दीहिलो बहिन)

[कहताहर - सूर्यदेव सिंह, ग्राम - दनई, पो॰ - जाखिम, जिला - औरंगाबाद]

एगो राजकुमार के डोम से बड़ी इयारी हल । दूनो जुआ खेलऽ हलन । एक दफे राजकुमार डोम के हाथे सब कुछ हार गेलन । राज-पाट हारला के बाद अप्पन बहिन के भी दाव पर रख देलन आउ ओकरो हार गेलन । डोम राजपाट न ले के उनकर बहिन के मांगलक तऽ ऊ कहलक कि "हम्मर बहिन फूल के बड़ी सौखीन हे । से तू जा के पोखरा में बइठ के फूल देखइहें । बहिन फूल लेवे जायत तो तू पकड़ लिहें !"

एकरा बाद राजा अप्पन माय से कहलक कि कल हम अपने से हर जोते जायम । ऊ कहलन कि राजा के बेटा होके तू हर जोते कइसे जइबें ? बाकि राजकुमार नऽ मानलन आउ हर-बैल ले के खेत पर चल गेलन । जब पानी पीये के बेरा भेल तब माय अप्पन बेटी दीहिलो के नस्ता ले के भेजलक । दीहिलो भाई के नस्ता करावइत हल तो ओकरा पोखरा में कमल के फूल लौकल । से ऊ भाई से पूछ के फूल ला पोखरा में हेल गेल । भर घुट्ठी पानी में गेला पर फूल नऽ मिलल तो दीहिलो गीत गयलक - भर घुट्ठी पानी में अइली हो भइया, तइयो न मिलल कमल केरा फूल ! राजकुमार कहलन कि "आउ ओते जो बहिनी, आउ ओते जो !"

बहिन कमर भर पानी में, फिन छाती भर पानी आउ फिर मांग भर पानी में फूल ला गेल बाकि फूल नऽ पकड़ायल । बहिन कहलक - माँग भर पानी में अइली हो भइया तइयो नऽ मिलल कमल केरा फूल ! राजकुमार कहलन - आउ ओते जो बहिनी ! आउ ओते जो ! .... ...

माँग से सेनूर धोआयल हो भइया,
तइयो न मिलल कमल केरा फूल ।

ओतने में पानी में बइठल डोम, राजकुमार के बहिन के ले के बइठ गेल । जब राजकुमार हर-बैल ले के घरे अयलन तो माय, दीहिलो बेटी ला पूछलन तो ऊ बता देलन कि मायँ, बुझी भुला गेल ! सगरो खोजाय लगल । तब दीहिलो के पोसल सुग्गा ओही पोखरा के पेड़ पर जाके अपन दुःख गावे लगल -

केने हहीं, केने गेली हारिल गे दीहिलो,
बेरिया मारत मूसराधार ।
सुनके पोखरा में से दीहिलो बोलल - का कहीं,
का करीं हारिल रे सुगना, भइया हारल, डोम जीतल ।

ओही घड़ी दीहिलो के ससुरार से नेयार आवइत हल । ई सब सुनके ऊ उलटे गोड़ी लौट गेल आउ राजा के सब खिस्सा सुनौलक । राजा नोकर-चाकर सब के लेके पोखरा पर आ गेलन आउ पोखरा उविछाय लगल । पोखरा सूख गेल तो ओकरे में से राजा के लड़की दीहिलो आउ डोम निकलल । फिन ओही पोखरा में डोम के गाड़ देल गेल आउ लड़की अप्पन बिआही मरद के साथ ससुरार चल गेल । उहाँ जाके अपन पति के साथ बढ़िया से राज-पाट करे लगल ।

8.11 तदबीर से तकदीर बड़ा

[कहताहर - जद्दू मेहता, मो॰पो॰ - बेलखरा, जिला - जहानाबाद]

तकदीर आउ तदबीर दूगो भाई हलन । दूनो भाई अपने में लड़े लगलन कि हमनी में कउन बड़ा ही । तकदीर कहलक कि हम बड़ा ही । तदबीर कहलक कि हम बड़ा ही । दूनो के लड़इत देख के तेसर कहलक कि तोहनी में से परीक्षा में जे पास कर जायत वही बड़ा मानल जायत । फिनो ओहनी के परीक्षा शुरू भेल ।

तदबीर लकड़हारा बन के राजा के पास लकड़ी के बोझा ले के चलल । दरबान लकड़हारा के देख के कहलक कि तू सीधे राजा के पास मत जा ! ढेर देरी तक बतकुच्चन के बाद लकड़हारा राजा के पास चल गेल । राजा ओकर गरीबी देख के एगो लाल दिया देलन । ऊ ले के चल आयल । राह में सोचलक कि ई पत्थल, राजा जी लइका के खेलौना देलन हे । हाथ में उलट-पलट के देखइत हल कि एगो चिल्ह झपट्टा मार के ले भागल । चिल्ह ओही लकड़हारा के घर में ताड़ के पेड़ पर खोता लगौले हल जेकरा में लाल रख देलक ।

दोसर दिन फिन लकड़हारा राजा के पास गेल । राजा समझलन कि ई लाल के कीमत न जानल हे । से ओकरा पाँच सौ रोपेआ दिया देलन । ऊ रोपेआ ले के जाइत हल आउ सोचइत हल कि राजा हमरा सितुहा देलन हे । एकरा से हमरा का होयत ? लकड़हारा घरे ले जा के रुपेया थैली में रख देलक ।

पड़ोसी लोग पूछलन कि आज राजा जी का देलकथुन हे ? ऊ कहलक कि राजा जी सितुहा देलकथिन ह, उका रखल हवऽ । मेहररुआ देखलक तो थैली नऽ हे । कारन एगो पड़ोसी थैली उठाके चल देलक ।

तेसर दिन लकड़हारा फिन राजा ही गेल । राजा देख के बोललन कि ई महामूरख हे । फिनो ओकरा एक रोपेआ के खाली पइसा भंजा के दे देलन । ऊ खुस हो के सब पइसा ले के घरे आयल । ओकरा बाद बाजार गेल - चना, चादर चबेनी आउ मछरियो ले के घरे आयल । अवरतिया कहलक कि ई मछरी काहे ला लवलऽ हे ? पकयबऽ कउची से ? लकड़हारवा कहलक कि उका तार के खउँका हे । लकड़हारा तार के खउँका तुड़े ला पेड़ पर चढ़ल तो ऊ देखलक कि ओकर लाल रखल हे । ऊ हल्ला कयलक कि चोर पकड़ली - चोर पकड़ली ! ई बात रोपइया चोरावेओला पड़ोसी सुनलक तो रोपेआ समेत थैला फेंक देलक कि लइकवा ले गेलवऽ हल । ताड़ पर से लाल उतारलक । अब ऊ रोपेआ, लाल सब कुछ चिन्ह गेल आउ मजे में रहे लगल । तकदीर ठीक होयला पर सब कुछ ठीक हो गेल ।

8.10 लाल बुझक्कड़

[ कहताहर - रामसेवक, मो॰-पो॰ - कुनापी, जिला - गया]

चार गो साथी हलन । एक दिन बतिअयलन कि हमनी के कहीं घूमे के चाहीं । सड़क पर जाइत हलन तो ओकरा पर गोड़ के चिन्हा देखलन । ऊ में से एगो कहलन कि इयार, एगो अउरत गेलवऽ हे । दूसरका बोलल कि ऊ अउरत गर्भिनी हल । तीसरका कहलक कि ऊ भाग के गेल हे । चउथक कहलक क ऊ उत्तर तरफ गेल हे । आगे बढ़लन तो फिनो एक साथी बोलल कि इयार, ई राह से एगो ऊँट गेल हे । दोसरका बोलल कि ओकरा पर कुछ लादल हे । तीसरका बोलल कि ऊपर कुछ लादल तो हे बाकि सवार नऽ हे । चउथक का बोलल कि ऊ ऊँट एक आँख के कान हे । तब तक औरत वाला आउ ऊँट वाला खोजइत ओहनी के पास पहुँचलन । ओहनी सब बात सुन लेलन आउ कहलन कि तोहनी चोर मालूम पड़इत हें काहे से कि सब बात बता देइत हें ।

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8.09 जतरा के फेरा

[ कहताहर - रामअसीस, मो॰-पो॰ - बेलखरा, जिला - जहानाबाद]

एगो बाबा जी ससुरार गेलन तो रोसगदी करावे ला जल्दीबाजी करे लगलन । ससुर कहलथिन कि ई घड़ी 'भदरा' हे, दू-चार दिन के बाद ई नछत्तर बीत जायत तो रोसगदी कर देबवऽ । बाकि ऊ नऽ मानलक आउ बरियारी रोसगदी करा के मेहरारू के घरे चललन । ससुर कहकथिन कि भदरा में रोसगदी करावे के फल तू पा लेबऽ । बाबा जी मेहरारू के ले ले घरे जाइत हलन तो राह में एगो नदी मिलल । किनारे पर पहुँच के बाबा जी दीसा फीरे लगलन आउ कहार के कह देलन कि तोहनी ऊ पार चल के ठहरिहँऽ । कुछ देर के बाद 'भदरा' बाबा जी के रूप धर के घोड़ा पर चढ़ के अयलन आउ कहलन कि "तूँ लोग अब चलऽ । कहार लोग चललन तो असली बाबा जी पीठिया ठोक के पहुँचलन । ऊ जा के पूछलन कि तू के हें आउ हम्मर सवारी काहे उठवले जाइत हें ? ओकरा पर दूसरका बाबा जी कहलन कि ई हम्मर सवारी हे । ई पर दूनो लड़े लगलन आउ लड़ते-लड़ते एगो गाँव में गेलन तो एगो अदमी कहकइन कि तोहनी पंचयती करा लऽ ।

गाँव के पूरब भर एगो टिल्हा हल जेकरा पर बइठ के पाँच गो अदमी फैसला करऽ हलन । दूनो बाबा जी सवारी ले-ले उहाँ गेलन । उहाँ दूगो बूढ़ा आउ तीन गो जवान मिल के फैसला करे लगलन । टिल्हा पर पंच लोग बइठलन तो ओहनी के पता चल गेल कि बाबा जी 'भदरा' के फेरा में पड़ल हथ । पंच सब मिल के कहलन कि बाबा जी, एगो टूआँ ले आवऽ । ओहिजे के एगो अदमी कुम्हार हीं से टूआँ ला देलक । पंच कहलन कि जे ई टूआँ में से समा के निकल जायत ओकरे ई सवारी होयत । ई सुन के दूसरका बाबा जी खुस हो के दू बार टूआँ में से समा के निकल गेलन । देख के लोग चकित हो गेलन कि अदमी भला टूआँ से समा सकऽ हे । ई देख के असलका पंडी जी जार-बेजार रोवे लगलन कि हमरा ई टूआँ में खाली एगो कइसे जायत ? सरीर तो घुसवे नऽ करत । बाबा जी के रोइत देख के पंच लोग समझौलन कि अभी हमनी फैसला सुनौली नऽ हे । काहे रोइत ही ? बाबा जी थोड़ा संतोष बान्हलन । पंच लोग दोसरका बाबा जी से कहलन कि फिन जरा टूआँ में घुसऽ तो । बाबा जी खुसी से टूआँ में घुस गेलन तो पंच लोग टूआँ के दूनो मुँह झट से बंद कर देलन आउ असलका बाबा जी के कहलन कि "अप्पन सवारी ले जाऽ आउ अब से भूल के भी 'भदरा' नछत्तर में जतरा नऽ करिहँऽ ।"

8.08 सरसती आउ लछमी

[कहताहर - पारस सिंह, मो॰पो॰ - तबकला, जिला - जहानाबाद]

एक बार सरसती आउ लछमी अपने में बहस कैलन कि हमनी में कउन बड़ हे ? जे बड़ होयत से सोना के कुरसी पर बइठत आउ जे छोट होयत से चाँदी के कुरसी पर बइठत । दूनो एक-दूसर के परीक्षा लेवे ला पहिले कहलन तऽ कोई तइयार नऽ होवे । अंत में लछमी जी पहिले परीक्षा लेवे ला तइयार होयलन ।

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8.07 आगे सोचल काम न करतो

[कहताहर - धर्मेन्द्रनाथ, मो॰पो॰ - बेला, जिला - गया]

एक ठो हलै ढेला आउ एक ठो हलै पत्ता । पतवा उड़ते-पड़ते एक तुरी ढेलवा के पास पहुँच गेलै । साथे रहते-रहते दूनो में इयारी हो गेलै । ओहनी मिल के आगे के बात सोचे लगलै । ढेलवा कहलकै - "ए यार जी, पानी पड़तो तो तू हमरा पर चढ़ जइहँऽ तऽ हम बच जायम । आन्ही अवतो तो हम तोरा पर चढ़ जयबो ! ई तरह दूनो सलाह करके रहे लगलन । एक समय के बात हे कि आन्ही-पानी दूनों एके तुरी आ गेलै । अब तो ओहनी के कोय काम नऽ देलकै । आन्ही में पत्ता उड़िया गेल आउ ढेला बिला गेल । खिस्सा गेलो बन में, समझऽ अप्पन मन में !

8.06 विपत के मारल राजकुमार

[कहताहर - नारायण दास, मो॰ - खुटहन, पो॰ - औरंगाबाद, जिला - औरंगाबाद]

एगो राजा आउ एगो रानी हलन । कुछ दिना के बाद उनका एगो बेटा जनमल । फिनो राजा मर गेलन । राजकुमार माय के साथे रहे लगलन । होस-हवास होयला पर दरबार देखे लगलन । एक तुरी राजकुमार भोरे पखाना गेलन आउ कुली-कलाली करे एगो कुआँ पर गेलन । कुआँ में लोटा-डोरी डाललन तो ओकरा में बिपत रहऽ हल, ऊ लोटा-डोरी धर लेलक । तब राजकुमार पूछलन कि अपने के ही आउ का चाहऽ ही ? ऊ बोलल कि हम विपत ही आउ तोरा पर हम एक दिन सवार होववऽ ? तू अखनी चाहइत हऽ कि जवानी में इया बुढ़ारी में ! राजकुमार कहलन कि हम माय से पूछ के जवाब देबवऽ । राजकुमार घरे आन के माय से पूछलन तो माय कहकथिन कि लइकाई आउ बुढ़ारी में तो बड़ा तकलीफ होतवऽ । ई से जवनिये में कह देहुन । राजकुमार कुआँ पर जा के कह देलन कि हमरा पर जवानी में सवार होऊँ । विपत लोटा-डोरी छोड़ देलक आउ राजकुमार घरे आन के कचहरी करे लगलन ।

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Tuesday, March 25, 2008

8.05 मुरगी मेलान कायथ पहलवान

[ कहताहर - लालमणि कुमारी, मो॰-पो॰ - बेलागंज, जिला - गया]

एक समय के बात हे कि एगो राजा के दरबार में सात गो मुंसी जी रहऽ हलन । ओहनी सब देवान-पटवारी के काम करऽ हलन । बइठल-बइठल राजा के बुरवक बना के धन भी ठग ले हलन । ओहनी के देह से तो कोई काम होयबे नऽ करऽ हल । एक दिन के बात हे कि राजा साहेब एगो लाला जी के कहलन कि जा के कोयरी के खेत में से मुरई कबार के ले आवऽ । मुंसी जी देह से कोई काम न ऽ करलो चाहऽ हलन । ई भी डर हल कि एक तुरी कोई काम कर देव तो राजा साहब तुरी-तुरी काम करे ला कहतन । से ई बात सोच के लाला जी खेत में गेलन आउ मुरई कबारे में जोर लगावे लगलन । मुरई कबरवे न करे । दरअसल ऊ मुरई कबारे ला नऽ चाहऽ हलन । राजा जी लाला जी के ई नाटक देखलन कि ऊ मुरई कबारत-कबारत थक गेलन हे तो ऊ फिनो छवो मुंसी जी के भेजलन । सातो मुंसी जी खेत में पहुँच के अपना में बतिअयलन कि मुरई कबारे में हमनी सब ला घाटा हे - हमनी से कलम के साथे देह से भी काम लेवल जायत । से मुरई कबार के नऽ ले चले के चाहीं बाकि कबारे के ढोंग करने हे, नऽ तो नोकरी से निकाल देल जायत । से ओहनी सातो मुंसी जी एके तुरी मिल के मुरई कबारे लगलन । कोइरी के खेत अँहड़ गेल । ढेर मानी मुरई रउँदा गेल । ई हाल कोयरी झोपड़ी में बइठल देखइत हल । ओकरा खीस तो वर रहल हल बाकि राजा के डरे कुछ बोलइत नऽ हल । ढेर देरी के बाद ओकरा नऽ रहायल तो झोपड़िये में से गते टुभकल - "मुरगी मेलान आउ कायथ पहलवान ?" ई बात सुन के ओहनी सातो लजायल नियन कैले राजा भिरु गेलन । राजा खाली हाथ देख के ओहनी से मुरई के बात पूछलन तो ओहनी कहलन कि "सरकार, कोयरिया हमनी के ठिसुआ के भगा देलक !"

8.04 लेना एक न देना दू

[ कहताहर - लालमणि कुमारी, मो॰-पो॰ - बेलागंज, जिला - गया]

एगो मलाह रोज समुन्दर किनारे मछली मारे जा हल आउ मछरी बेच के अप्पन हाल-रोजगार चलावऽ हल । ऊ मजे में खा-पीअऽ हल । एक रोज ओकरा एक्को मछरी नऽ मिलल । अंत में हार-दाव देख के एक तुरी कस के फिनो जाल फेंकलक तो मछरी नऽ बझके एगो कछुआ छना गेल । मलाह कछुआ के पकड़ के ले चलल तो ऊ गिड़गिड़ायल कि हमरा छोड़ दऽ तो हम तोरा समुन्दर से एगो बढ़िया मोती लान के देबो । मलाह कछुआ के बात मान लेलक आउ ओकरा मोती लावे ला समुन्दर में छोड़ देलक । कछुआ सरत के मोताबिक एगो मोती लान के मल्लाह के दे देलक । मोती देख के मलाह के लोभ समा गेल । से ऊ कछुआ के पकड़ लेलक आउ तंग कैलक कि एगो आउ ओइसने मोती ला के दे नऽ तो मार के खा जबउ । कछुआ मलाह के इरादा समझ गेल ।

फिनो कछुआ मलाह से कहलक कि अइसने मोती तो तबे आ सकऽ हे जब एकरा साथे ले जा के मिला के खोजब । से, मलाह कछुआ के ऊ चमकइत मोती दे देलक । कछुआ मुँह में मोती दबौलक आउ समुन्दर में घुस गेल । जब ऊ मलाह से ढेर दूर चल गेल तो पानी से ऊपर बुलदे छहलायल । ओकरा देख के मलाह सरत के मोताबिक दोसरो मोती माँगलक । एकरा पर कछुआ उहईं से जोर से कहलक - "लेना एक न देना दू ! तोरा एगो लेवे से हमरा दूगो देवे ला नऽ हे ।" ऊ दिन से ई एगो कहाउत बन गेल जे आज तक चलल आवइत हे ।

8.03 लालमती के समझदारी

[कहताहर - लालमणि कुमारी, मो॰ - क॰ म॰ वि॰, पो॰ - बेलागंज, जिला - गया]

दूर देहात के एगो गाँव में एगो गिरहस्त रहऽ हलन । उनकर लालमती नाम के चलाँक बेटी हल । ओकर सादी लइकाई में भे गेल हल । जवानी के दूरा पर पहुँच गेला पर भी ओकर गवना नऽ भेल हल । से बेटी अप्पन माय-बाप के घर-गिरहस्थी में सहजोग दे हल । परिवार सुख से जिनगी बितावऽ हल । हँासी-खुसी से भरल परिवार में कोई तरह के कभी कमी न बुझा हल । खाइत-पीअइत, खेती-खरिहान में काम करइत ओहनी हरमेसे खुस रहऽ हलन ।

एक रोज ऊ गिरहस्थ हर जोत के दुपहर से पहिलहीं घरे आ गेल आउ नेहा-धोआ के खाय ला बइठल ओने ओकर घरनी भी जाँता में गोहुम पीसे लगल । जाँता पीसते ओकरा अप्पन मरदाना से खाइते खनी मजाक करे ला सूझल आउ ऊ एगो बुझौनियाँ में मजाक से बंधन बान्ह देलक -

सेह बइठल भार सवना के, कभी न बोले बानी ।
ई बुझौनियाँ बूझिहें सामी तब पीहेंऽ तू पानी ।।

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8.02 बाबा जी आउ पनिहारिन

[कहताहर -- ईश्वर दयाल, मो० पो० - सिकंदरा, जिला - जमुई ]

एगो गाँव में एगो गरीब बाबा जी हलन । ऊ दिन भर माँग के अनाज जमा करऽ हलन आउ बेर डुबला के बाद जे माँगऽ हलन ओही बना के खा हलन । एक रोज मँगला के बाद झोल-झोलान में एगो कुआँ भिरू जा के अदाह जोरलन आउ ओकरा पर तसला रख के पानी डाल देलन । पानी गरमाय लगल तब तक ऊ इनरा पर जा के पानी से चाउर धोबे लगलन । ओही घड़ी एगो नया दुलहिन उहाँ पानी भरे आयल । डोल से पानी भर के घइला भरलक आउ घइला कपार पर उठावे लगल तऽ बाबा जी ओकरा एगो बुझौनियाँ बुझा देलन –

"जेकर सोर पताल में खिले, उपरे ढूले अंडा ।
ई बुझौनियाँ बुझिहँऽ गोरी, तब उठइहँऽ भण्डा ।।"

गोरी बुझौनियाँ न बूझलक आउ बिना बुझले ओकरा घइला उठावे पर रोक लगल हल । से ओहू एगो बुझौनियाँ बुझा देलक –

"बापक नाँव से पूतक नाँव, नाती के नाँव कुछ आउर ।
ई बुझौनियाँ बुझिहँऽ पाँड़े, तब मेरइहँऽ चाउर ।।"

अब बाबा जी भी चाउर धो के मेरावे ला बइठल हथ । गोरी नऽ घड़ा उठा रहल हे नऽ बाबा जी चाउर मेरा रहलन हे ।

एने नया दुलहिन (गोरी) के सास देर होते देखलक तऽ घबरायल । ऊ पनघट पर आयल तो पुतोह आउ बाबा जी के चुपचाप खड़ा देखलक । ऊ घड़ी खिस्सा-कहानी आउ बुझौनियाँ सुनला इया बुझला बिना अगाड़ी के कोई काम नऽ हो हल । से सास उहाँ जयते बात समझ गेल आउ एगो तेसर बुझौनियाँ बुझा के एहनी के काम में लगे के रस्ता साफ कर देलक । सास बोलल –

"जेकर मद से मयगर भाते, तेली लगावे घानी ।
तू मेरावऽ चाउर पाँड़े, घड़ा उठावे धानी ।।"

ई तरी बुझौनियाँ से लगल बंधन बुझौनिये से टूट गेल आउ बाबा जी खलखलाइत अदहन में चाउर मेरा देलन तो चाउर तुरते सीझ गेल । एन्ने गोरी भी अप्पन पानी भरल घइला के कपार पर उठा के घरे ले गेल आउ मरद से बाबा जी के हाल सुनौलक । ओकर मरद खिस्सा सुने के सौखीन हल । से ऊ बाबा जी के अप्पन दूरा पर सूते ला ले गेल जहाँ रात भर बुझौनियाँ आउ खिस्सा से लोग के मन बहलइत रहल । ठीके नऽ कहल गेल हे कि खिस्सा दिन भर के थकान दूर कर दे हे । खिस्सा भेलो खतम -- पइसा भेलो हजम । कहे ओला झूठा, सुने ओला सच्चा ।

8.01 राजकुमारी आउ गोरखिया

[ कहताहर - इन्द्रदेव नारायण, ग्राम - सेवती, पो॰ - मखदुमपुर, जिला - जहानाबाद]

एगो राजा हलन । उनका एके गो बेटी हल । ऊ बड़ी सुन्नर आउ दयालु हल । ओकरा हीं एगो गरीब अहीर के लइका नोकरी माँगे आयल तो राजा के बेटी ओकरा गाय-बैल के सान्हीं-पानी करे ला नोकर रख लेलक । ऊ गोरखिया बड़ी बढ़िया से सान्हीं-पानी करे आउ कभी-कभी राजकुमारी के भी काम-धाम कर देवे । गते-गते गोरखिया राजकुमारी के रूप से मोहा गेल बाकि राजा के बेटी से ऊ बात कइसे करे ? परेम के बात ओकरा कहे के हिम्मत नऽ हो हल । ऊ रोज सोच-सोच के मन के बात मने में रखले रहे । एक दिन ओकरा से नऽ रहायल तो ऊ बुझौनियाँ में अप्पन बात कह देलक -
ऊपर कोठ झरोखे बइठे, बिजुली माँग फड़कती ।
एतना दिन हम सेवा कइली, कहिनो नयन पलटती ?


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7.22 तीन गो बेशकीमती बात

[ कहताहर - हेमा रानी, मो॰-पो॰ - खुसरूपुर, पटना]

एगो राजकुमार हलन । उनका घूमे-फिरे के बड़ा सौक हल । राजा के महामंत्री बूढ़ा हलन बाकि दीन-दुनिया काफी देखले-सुनले हलन । ऊ जे सलाह दे हलन ओकर एक-एक बात बेशकीमती होवऽ हल ।

एक बेरिया के बात हे कि राजकुमार के मन में देस-विदेस घूमे के मन कैलक । ऊ अप्पन मन के बात अप्पन बाबू जी से कहलन । बाकि ऊ उनकरा अप्पन आँख तर से ओझल होवे ला न चाहऽ हलन । एन्ने राजकुमार अप्पन जिद्द पर अड़ल हलन से ऊ महामंत्री जी से राय माँगलन । महामंत्री जी कहलन कि "देस-परदेस घूमे में कउनो हरज न हे । घूमे से अनुभव बढ़े हे । बाकि हम राजकुमार के तीन गो बेशकीमती बात बतावऽ ही । ऊ ई तीनों बात के ध्यान में रखतन तऽ कभियो मुसीबत में न पड़तन ।"

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7.21 गदहा से अदमी

[ कहताहर - देवनारायण मेहता, मो॰-पो॰ - चौरी, जिला - औरगाबाद]

एगो गुरु जी लड़कन के पढ़ावऽ हलथिन । ओकरा में एगो बड़ा भोला लड़का हल । गुरु जी ओकरा एक दिन पीटइत हलथिन आउ बोल रहलथिन हल कि "अरे गदहा, तोरा तो हम पढ़ाते-पढ़ाते अदमी बना देलिअउ तौ भी तूँ कुछ खेयाल नऽ करे हें ।" ई बात एगो निसंतान धोबी सुनलक आउ गुरु जी भी जा के कहलक कि हमरा कोई लइका-फइका नऽ हे । हम्मर गदहवा के तू अदमी बना दऽ । गुरु जी कहलन कि "एक हजार रोपेया लगतो, जा के ओके ऊ खुटवा में बान्ह दे । भादों तक हम एकरा पढ़ा के अदमी बना देबउ । भादों के पुनिया तक तो जरूर ले जइहें । नऽ तो हम एकरा अप्पन स्कूल से निकाल देवउ ।"
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Monday, March 24, 2008

7.20 खरहा, ऊँट आउ बाघ

[ कहताहर - सुरेन्दर प्रसाद, ग्राम - चिलोरी, पो॰ - मखदुमपुर, जिला - जहानाबाद]

एगो खरहा आउ ऊँट हल । ओहनी दूनो इयारी लगौलन । एक दिन ऊँट मन में सोचलक कि आज इयार से बाजी लगाऊँ । ऊँट खरहा से पूछलक कि "इयार एगो भर छाती के देवाल हे । ओकरा कउन पहिले तड़पऽ हे । ऊँटवा सोचलक हल कि "हम तो तड़प जायब, ई सार तनियक गो जीव का तड़पत ? से दूनो छड़पे लगलन । ऊँट तो देवाल पर टँग गेल आउ खरहा पार हो गेल । से खरहवा से ऊँटवा कहलक कि हमरा कइसहूँ निकालऽ । खरहवा देवाल पर चढ़ के कभी ऊँट से मूँड़ी दने, कभी पीठ दने दोमचे । एतने में एगो बाघ आवइत हल । बाघ खरहा के देख के खड़ा हो गेल आउ सोचलक कि एतना बड़ा जानवर ऊँट के तो ई खरहवा तबाह कयले हे । ऊँटवा के मूँड़ी आउ देह ओर चले हे । हमरा देखत तो आउ तबाह कर देत । हम तो ऊँटवा से छोटे ही । ई सोच के बघवा उहाँ से भागल, तो खरहवा पाछे से रगेदलक । बघवा भागल जाइत हल आउ खरहवा खदेरले जाइत हल । बेलदार उहाँ माँटी कोड़इत हल से बेलदरवा चपड़ा के बेंट से अइसन मारलक कि खरहवा के कनचपड़ा में लागल । बस, खरहवा तो ओही जगह मर गेल । बेलदार ओकरा डेली तर झाप देलक । थोड़े देर में बघवा आयल आउ बेलदरवा से पूछलक कि "ए भाई, एने एगो खरहा अलई हे ?" बेलदरवा कहलकई कि "हाँ, ओकरा मार के तो हम डलिया तर झाँक देली हे ।" बघवा कहलक कि कइसे खबहीं । बेलदरवा कहलकई कि सींझा के । बघवा कहलक कि ए भाई, ई बात तू केकरो से मत कहिहें कि खरहवा बघवा के खदेरले जाइत हले । बेलदरवा कहलक कि अच्छा भाई, न कहबउ । बेलदरवाजब साँझ के घरे अलई तऽ खरहवा के आग में पकावे लगलई से सब गाँव-घर के आ के पूछे लगल कि ए भाई, कहाँ से ले अयले हें ? कइसे मारले हें ? बेलदरवा कहलक कि कहे नऽ रे बाप ! ई न कहम, बघवा सुन लेत तो बचे नऽ देत । ओहनी कहलन कि कहे नऽ, का बात हउ ! जब सब लोग जोर मारलन तब कह देलक । बघवा ओकर घरवा के पिछुती सब सुनइत हल । जब रात के सूतल तो बघवा ओकर घर में छप्पर फाड़ के घुसल आउ बेलदरवा के कहलक कि अब बतावऽ, तू काहे दोसर से सब बात कह देले । अब बताव़ऽ कि हम तोरा कने से खइअऊ ? आगे से इया पीछे से ? बेलदरवा कहलक कि तोरा जने से मन हउ तने से खो । एतने में बेलदरवा के डर के मारे बड़ी जोर से हुचकी आयल । बघवा पूछकइ कि का बात हउ ? बेलदरवा कहलक कि खरहवा निकलल चाहऽ हे । बघवा कहलक कि तब थोड़ी देरी बन्द करऽ । हमरा भागे दऽ तब निकालिहें । बेलदरवा आउ जोर से चिल्ला के कहे लगल कि खरहवा अब निकलऽ तो बघवा जान छोड़ के भागल आउ बेलदरवा के परान बचल । आउ खिस्सा खतम, पइसा हजम ।

7.19 बाबा जी आउ घोड़ा के अण्डा

[ कहताहर - द्वारिका प्रसाद सिंह, मो॰-पो॰ - जइबिगहा, जिला - गया]

एगो बाबाजी हलन । उनका बहुत मानी जजमान हलन । ऊ अप्पन घर पर भी तीन-चार गो चेला रखले हलन, जे उनका सेवा-टहल करऽ हलन । ऊ बाबा जी कोई तरह से बारह गो असरफी जमा कयलन ।


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7.18 काना बेटा

[ कहताहर - उपेन्द्रनाथ वर्मा, ग्राम-पो॰ - बेलखरा, जिला - जहानाबाद]

एगो राजा के सात गो बेटा हलन । जब ओहनी पढ़-लिख के तइयार होलन तऽ नोकरी के खोज में निकललन । सबसे छोटा बेटा काना हल । ऊ आसानी से कोई के फेरा में नऽ पड़ऽ हल । जाइते-जाइते ओहनी एगो सुन्नर महल देखलन । भइवन के लालच समा गेल कि ई बाहर से तो एतना चमकइत हे, भीतरे एकरा में का नऽ का भरल होयत । से ओहनी ओकरा में सेन्ह मारे लगलन तो भीती गिर गेल आउ ओकरा तर दूगो चता के मर गेलन । फिनो आगे बढ़लन तो ओहनी एगो नदी देखलन । ओकरा में एगो बड़ी सुन्नर लड़की दहल चलल आवइत हल । ओकरा देख के दू भाई तो छाने ला चभाक-चभाक नदी में कूद गेलन, बाकि पैरे नऽ आवऽ हल से ओकरे में डूब मर गेलन । तीन भाई आगे बढ़लन तो दूगो भैंसा लड़इत हल । भैंसवा अइसन खदेरलक कि दू भाई तो ओकर चपेट में आ गेलन आउ ओहिजे मर गेलन । एगो काना बेटा बचल आउ लौट के घरे आ गेल ।

काना बेटा के घरे अयला पर राजा पूछलन - "कहऽ बेटा, दुनियाँ के रीती" - तो बेटा कहलक कि "दूगो मर गेलथुन चपा के भीती ।" बाप अफसोस में हो गेल आउ बोलल कि "आहा !" काना बेटवा जवाब देलक कि "दूगो नदी में गेलन दहा ।" राजा सोचलक कि मजाक करइत हे से ओहू कहलक कि "ऐसा ?" तऽ काना फिनो कहलक कि "दूगो के मारलक भैंसा ।" ई पर राजा बोललन कि "सच्चे !" तो काना बेटवा झट से जवाब देलक कि "हमहीं तो एगो काना बच्चे ।" राजा काना के जवाब सुन के चुप हो गेलन आउ दंग रह गेलन कि कइसन ई नालायक बेटा जनम लेलक हे । ठीके कहल गेल हे कि "अन्हरा, लँगड़ा, काना, विरले भलमानुस जाना ।"

7.17 कोंकड़ा आउ बाघ

[ कहताहर - अमेरिका ठाकुर, ग्राम - चिलोरी, पो॰ - मखदुमपुर, जिला - जहानाबाद]

एगो कोंकड़ा पानी किनारे घर उठौलक । एगो बाघ रोज पानी पीये जाय । ओकर घरवा ढाह देवे । एक दिन कोकड़वा बघवा के घरे चेतावे गेल कि "ए बघिनिया मामा, तोर बेटवा रोज हमर घरवा जा के ढाह दे हउ । से ई अच्छा बात नऽ हउ, एक दिन जरूरे लड़ाई होतउ !" ऊ घरे आयल तऽ ओकर मइया मारे दउड़ल कि "तूँ कोंकड़वा के घर ढाह देवऽ ही । से आज बड़ी खिसिया के गेलउ हे !" ई सुन के फिनो बघवा कोंकड़वा के घरवा ढाहे गेल । कोंकड़वा अप्पन घरवे में नुकल खाऽ हले । से जइसहीं बाघ ढाहे ला थोथुना लगौलक ओइसहीं कोंकड़ा बाघ के नाक में टँगुरा समा देलक आउ नाक में काटना सुरू कइलक । अब बघवा सार छटपटायल, रोवे, गिरे, पछड़े आउ कहे कि "ए कोंकड़ा भइया, अब छोड़ दे, अब नऽ ढाहबउ !" कोंकड़वा कहलक कि "चल पनियाँ में, तूँ थोथुना डूबइहें तब छोड़ देबउ ! से गते-गते बाघ पानी में गेल आउ अप्पन थोथुना डीबउलक । कोंकड़ा पानी में भाग गेल आउ बघवा जंगल में भागल जाइत हल ।

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7.16 बतफरोस बेटा

[ कहताहर - नन्हे, ग्राम - बेलखरा, जिला - जहानाबाद]

एगो अदमी के दूगो लइका हलन आउ जुदागी होयला पर दूनो दू गाँव में रहे लगलन । एक रोज एक भाई दोसर भाई से मिले उनकर गाँव में गेल तो घरे भाई के न पवलक । फिन भतीजा से पूछलक कि बाबू जी कहाँ गेलथुन हे ? तब भतीजा बोललकइ कि "बाबू जी नौ सौ बगेरी के ठीका ले-ले हथुन । से ओकरे बझावे गेलथुन हे ।" तब चचा पूछलक कि बगेरिया केतना दूध करऽ हो ? भतीजवा कहलक कि "दूध के तो न जानीं बाकि नौ भाँड़ी घीव रोज करऽ हे ।"

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7.15 अलबत्ता चिरईं

[ कहताहर - धर्मेन्द्रनाथ, मो॰-पो॰ - बेला, जिला - गया]

एगो राजा हलन । उनकर घर में एगो खुदबुदी चिरईं खोता लगवले हल । ऊ चिरईं एक दिन बहरना में से एगो चित्ती कउड़ी पवलक । तब अप्पन घर में आके बके लगल कि जेतना राजा के न धन ओतना हमरा हे धन ! अइसहीं ऊ बकइत हल तब राजा ओकरा पकड़वा के ओकर चित्ती कउड़ी छीन लेलन । तब फिन ऊ जा के बके लगल कि राजा कंगाल भेल मोर धन ले गेल । राजा के दया आ गेल तो ऊ कउड़ी के दे देलन । फिन ऊ चिरईं उड़-उड़ के बके लगल कि "राजा डेरा गेल, मोर धन दे गेल !" राजा के तब मन खिसिया गेल । तब ऊ चिरईं के पकड़ के ओकर पाँख-ऊँख नोच के बनावे ला होयलन तो बोले लगल - "नोचन-नाचन में अइली गे मइयो !" फिन ओकर कड़ाही में छउँकल गेल तो बोलल -"छनर-मनर में अइली गे मइयो !" चिरईं कराही में सीझे लगल तो बोलल -"खदर-खुदर में अइली गे मइयो !" राजा ओकरा खाय लगलन तो ऊ बोलल कि "कर्रर-कुर्रर में अइली गे मइयो !" सुबह भेल तो राजा दीसा फीरे गेलन । ओती घड़ी भी चिरईं बोलल कि "बारंग देखन में अइली गे मइयो !" एकरा बाद चिरईं उड़ के भाग गेल ।

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7.14 महादे(व) के बचन

[ कहताहर - राम खेलावन, मो॰ - राघो बिगहा, पो॰ - बेलखरा, जिला - जहानाबाद]

एगो राजा, ठाकुर के साथे, ससुरार जाइत हलन तो उनका मैदान लगल तो ठाकुर पर घोड़ा छोड़ के दीसा फीरे लगलन । ठकुरवा कहलक कि "अपने अप्पन पोसाक दे देब, तब न घोड़ा धरे लायक रहम !" राजा अप्पन पोसाक ठकुरवा के दे देलन । एन्ने ठाकुर घोड़ा पर चढ़ के राजा के पोसाक में उनकर ससुरार चल गेल । ठाकुर के भेस में राजा भी ससुरार पहुँचलन तो ठाकुर राजा बनल हल । अब राजा के ठाकुरे भेस में रहे पड़ल ।

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7.13 नेकी आउ बदी

[ कहताहर - जगदीश प्रजापत, मो॰ - कचनावाँ, पो॰ - मखदुमपुर, जिला - जहानाबाद]

एगो गाँव में दूगो भाई हलन । उनकर नाम हल नेकी आउ बदी । एक दिन नेकिया नोकरी ला घरे से निकलल । एगो राजा हीं जा के नोकरी करे ला पूछलक । राजा कहलन कि "हमरा तीन सौ साठ गो बकरी हे । ओकरे चरावे परतउ । घामा में चरयबें तऽ एक कौर भात देबउ आउ छहिरा में चरयबें तो एक कोना रोटी देबउ । अगर तू नोकरी न करल चहवें तो तोर नाक-कान काट लेबउ आउ अगर हम नोकरी से हटैबउ तो हम्मर नाक-कान तू काट लीहें !" नेकिया ओही करार पर नोकरी करे लगल । कुछ दिना के बाद ऊ नोकरी से उबिया गेल आउ अपन नाक-कान कटवा के नोकरी छोड़ देलक । घरे आयल तो बदिया देख के पूछलक कि "ई का होलवऽ भाई ?" नेकिया सब हाल कह सुनौलक । बदिया कहलक कि "अब हम नोकरी करे जाइत हिवऽ !" ऊ ओही राजा के इहाँ जा के ओही सरत पर नोकरी करे लगल । जंगल में जब बकरी चरावे जाय तो रोज एगो बकरी मारे आउ खा जाय । ई तरी तीन सौ साठो बकरी के ऊ खा गेल ।


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7.12 एगो गप्पी

[ कहताहर - रामप्यारी सिन्हा, ग्राम - तबकला, पो॰ - जहानाबाद, जिला - जहानाबाद]

एगो गप्पी हल । ऊ गप करे में जग जाहिर हल । एक दिन ऊ बजार में टहले गेल । उहाँ एगो हलुआई के दोकान पर बइठल तऽ ऊ कहकई कि "ए गप्पी भाई, एगो गप-सप करऽ ।" तऽ गपिया कहलक कि "दुत्त सार ! गप का करिअउ ? अभी देखलिअउ कि तोर मेहररुआ के चाल करकउ से ऊ रहरिया में चल गेलउ !" ई सुन के हलुअइया बाड़ी ले के दउड़ल । एने ओकर मेहररुआ घरे से निकललई आउ पूछलक कि हमरा हीं के कने गेलन । गपिया कहलक कि "कउन तो एगो रहिया में से मेहरारू चाल करकइन, से चल गेलथुन हे ।" सुन के ऊ झड़ुआ लेलक आउ हुएँ दउड़ल । उहाँ दूनो माउग-भतार रहर में एक दूसर के खोजइत चलइत हथ । खोजइत-खोजइत दूनो रहर के बीच में मिललन, तो मेहररुआ झड़ुआ तनले हे आउ मरदनवा बाड़ी सम्हारले हे । मरदनवा बोलल कि "हम न हली कि दोसर भीर अयले हे ?" मेहररुआ कहलक कि "हमरा गपिया कह देलक कि ऊ दोसरा भीर चल गेलथुन हे ।" तब मरदनवाँ कहलक कि "चल-चल, हमनी आज ओकरे फेर में पड़ गेली । अब गुहे-मूते धांगली हे, से चल के दूनो नदी में नेहा लीहीं ।" दूनो नदी में नेहाय गेलन ।

एने हलुअइया के 'सरवा' पहुँचल तो घरे केकरो न पवलक । उहाँ बइठल गपिया से पूछलक कि हमर बहिनी-बहनोइया कहाँ गेलन हे ? गपिया कहलक कि "ए जी बाबू, तोर बहिनी के गोदिया में एगो भगिना भी हलवऽ न ?" ऊ कहलक कि हाँ । तब गपिया कहलक कि "ओही मर गेलन हे । से ओकरे दूनो गाड़े गेलथुन हे । इहाँ गाँव हव ? कोई न गेलई बाबू ।" एतना सुन के 'सरवा' दउड़लन नदी किनारे आउ मुरद-घटिया पर पहुँचलन । ओहनी दूनो नेहयले आवइत हलन से सरवा देख के जोर-जोर से रोवे लगलन । दूनो नजीक पहुँचलन तो बहनोइया पूछलक कि "तूँ सार काहे ला रोइत हें ?" सरवा कहकई कि "तोर दलनिया पर एगो अदमी कहलक कि भगिनवा मर गेलउ ।" ई सुन के ओहनी कहलन कि "हमनी भी तो ओकरे फेर में पड़ल ही !" फिनों जा के दूरा पर गपिया से पूछलक कि "हमनी से अइसन गप करे ला हलऊ !" गपिया कहलक कि "तू ही न कहलऽ हल, अभी तो गप करलियो हे, सप बाकी हो !"

7.11 बेंगवा के संतान

[ कहताहर - लालमनी कुमारी, मो॰-पो॰ - गया, जिला - गया]

एगो बेंग हल । एक समै ऊ रस्ता में कूदइत जाइत हल । ओही राह से एगो बड़का ााँढ़ जाइत हल । सँढ़वा के लाती बेंगवा पर पड़ गेलई तऽ ओकर पेट फट गेलई । ओकर पेट में से पाँच चीज निकलल - एगो बैल, एगो तेली, एगो बाघ, एगो बटेर आउ एगो सुअर । बटेर अपन चिरई के झुंड में चल गेल । सुअर अप्पन जमात में चल गेल । बाघ जंगल में चल गेल बाकि तेलिया आउ बैला बच गेल । से बैला कहकई तेलिया से कि "हमनी दूनों मिल के कमा-खा सकऽ ही । से तू एगो कोल्हू ले आवऽ, राजा से जमीन माँग के उहईं गाड़ दऽ । तेल पेर के बेचऽ, हमरो खिआवऽ आउ तूहूँ खा ।" तेलिया एही कयलक । ऊ रोज कमाय-खाय लगल । कुछ दिना के बाद तेलिया सादी कर लेलक । तब राजा के सिपाही के ओकर मेहररुआ पर लोभ समा गेल । सिपहिया सोचलक कि कइसे तेलिया के मार दीं आउ तेलिनिया के रख लीहीं । सिपहिया के कुछ उपाय न सूझल तो राजा से जा के कहलक कि "राजा साहब, तेलिया के एक सौ मन धान दीहीं जे आठ दिन में कूट के लौटा दे न तो खादे-भूसे भरवा दीहीं ।" राजा साहेब तेलिया के बोलावे ला चौकीदार भेजलन । चौकीदार के बात सुन के तेलिया राजा साहेब के पास दउड़ल गेल । उहाँ राजा कहलन कि "तोरा आठ दिन में एक सौ मन धान कूटे ला हवऽ । न कूटब त खादे-भूसे भर देल जयब । तेलिया घरे आन के अप्पन अउरतिया के कहलक ।ऊ बतवकई कि तू बटेरवा भइया के पास जा के पूछ । ऊ उपाय बता देतवऽ । तेलिया बटेरवा भइया भिर गेल आउ अप्पन सब हाल कहलक । बटेर कहलक कि "तू सब धान ला के कहीं मैदान में रखऽ कल्ह । हमनी सब आयब !" तेलिया आ के राजा किहाँ से सब धान ला के मैदान में रखलक । सुबह में झुंड-के-झुंड बटेर अयलन आउ घंटा भर में सब धान फोर के उड़ गेलन । तेलिया सब धान ओसा देलक । भूसा अप्पन घरे ठोक के राजा से कहलक कि चाउर सब ढोआ लीहीं । राजा आउ सिपाही तज्जुब खाय लगलन । इहाँ आन के देखलन तो चाउर तइयार हल । राजा घरे चाउर ढोवा लेलन । फिन सिपहियन सोचलन कि अब एकरा से कइसे बदला लेल जाय । राजा से जा के कहलन कि "अस्सी बिगहा के पोखरा आठ दिन में बन्हवाऊ । जेकरा में भूर-कबार पानी रहे ।" राजा साहेब तेलिया के बोला के अपन हुकुम सुनौलन । तेलिया सुन के घर आयल आउ अउरतिया से कहलक । ऊ कहकई कि तू अपन सुअरिया भइया भिर जा । तेलिया सुअर के झुंड में गेल आउ अपन भाई से राजा के हुकुम कह सुनौलक । सुअरिया कहकई कि घबड़ा मत, आज रात में पोखरा तइयार हो जतवऽ । तेलिया घरे आयल तो रात में अनगिनत सुअर आन के पोखरा खान देलन आउ चल गेलन । तेलिया पोखरा खनल देख के राजा के जा सुनौलक आउ राजा देख के चकित रह गेल ।

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7.10 अँधेर नगरी चौपट राजा

[ कहताहर - राधे सिंह, मो॰-पो॰ - बेलखरा, जिला - जहानाबाद]

एगो हुरहुंगपुर नगरी में भाजी आउ खाजा एके भाव बिकऽ हल । उहाँ के राजा ई बात के छुट देले हल कि सब चीज एके भाव से बिके के चाहीं । एक रोज ऊ राज में एगो महातमा अपन चलाँक चेला के साथ अयलन । चेला उहाँ के रीत-बेवहार देख के कहलक कि ई जगह रहे लायक नऽ हे । महतमा पूछलन कि काहे ? तऽ चेला कहलक कि "एगो गिरहथ छव गो कोहड़ा बेचे ला बजार में ले गेल तो न बिकलई । राज के बराहिल पहुँचलन आउ ओकरा से उगाही माँगलन । उहाँ सात गो से कम उगाही न लेल जा हल । से बराहिल पूछलक कि तू छवे गो कोहड़ा काहे लवले हें ! ई से ओकर कोहड़ा लावेओला दोहा भी छीन लेल गेल । राजा भिर ऊ न्याय ला गेल तो राजा भी ललकारलन कि तू छवे गो बेचे ला काहे लवले हलें ? सार के धर पकड़ !" ई बात कह के चेला कहलक कि "बाबा, इहाँ मत रहूँ ।" महातमा कहलन कि "इहाँ सब चीज सस्ता तो मिलऽ हे । हिआँ से नऽ चले के चाहीं !" बाकि चेलवा न रहल । ऊ उहाँ से चल के दोसर जगह रह गेल आउ क देलक कि जरूरत पड़तो तऽ बोला लिहँऽ ।"

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7.09 बानर के करतूत

[ कहताहर - रूपनारायण, मो॰-पो॰ - बेलखरा, जिला - जहानाबाद]

अच्छा एगो बनर हले । एक दिन ऊ बइर खाइत हले कि ओकर नके में एगो बइर अँटक गेल । से ऊ नउवा के पास निकाले ला गेल । नउवा कहलक कि कहीं नकिया कट जतउ तो कहाँ से अतउ ? बनरा कहलक कि तोर-मोर बलइए से । नउवा ओकर नाक से बइर निकाले लगल । बइर तो निकल गेल बाकि ओकर नाके कट गेल । तब बनरा कहलक कि नाक दे इया नरहनी दे । नउवा नरहनी दे देलक आउ बनरा ले के चल देलक ।

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7.08 वजीर आउ बादसाह

[ कहताहर - रामकेशो सिंह, मो॰ - चिलोरी, पो॰ - मखदुमपुर, जिला - गया]

एक दिन राजा वजीर के साथ बइठल हलन कि वजीर के हवा छूट गेल । राजा मुसका देलन । वजीर सोचलन कि राजा के चकावे के चाहीं । संजोग से राजा एक दिन वजीर से कहलन कि मोती पैदा हो सकऽ हे ? वजीर कहलन कि काहे नऽ ? बाकि एकरा में दस हजार रुपया खर्च होतो । राजा तुरते वजीर के दस हजार रुपया दे देलन । घरे आन के ऊ टाँड़ जमीन के कोड़वा देलन आउ जौ बून देलन । जौ जब बढ़ के लहलहायल तो ओकरा पर सीत पड़े लगल । वजीर राजा के पास जा के कहलन कि "हजूर, अब मोती पक के तइयार हे से अब काटे के चाहीं ! राजा खूब अप्पन लाव-लशकर के साथ तड़के मोती काटे चललन । जौ पर गोले-गोले पड़ल मोती के देख के राजा कहलन कि मोती कइसे कटत ? वजीर कहलन कि ओही अदमी काट सकऽ हे जेकरा कहनो हवा न छूटल हे । राजा सबके पूछला सुरू कैलन कि केकरा कभियो हवा न छूटल हे ? बाकि कोई एको अइसन अदमी नऽ मिलल जेकरा हवा नऽ छूटल होय । से राजा रानी के पास अदमी भेजलन कि जा के पूछऽ कि रानी के हवा छुटल हे कि नऽ ? अदमी रानी के पूछे गेल । रानी कहलन कि राजा पूरा बूरबक हथ । ऊ कहिनो वजीर से बहस कयलन हे से वजीर उनका छकावइत हइन । ऊ अदमी राजा के पास आन के सब बात कहलक । राजा सुन के चुपचाप लजायल घरे चल अयलन ।

7.07 बीरबल बादसाह

[ कहताहर - राधे सिंह, मो॰ - ऊपरडीह, पो॰ - अरवल, जिला - गया]

एक दफे बादसाह बीरबल से पूछलन कि "हम जे कहबउ से तूँ करबें ?" बीरबल कहलक कि करब । राजा कहलन कि "धुआँ के साड़ी तइयार करऽ !" बीरबल अब तो पड़ल फेरा में आउ घरे आन के मटिया के सूत गेल । ओकर बेटिया जगौलक कि "बाबू जी, चल के खा लऽ ।" तऽ बीरबल कहलक कि "बेटी, राजा साहब के दवाल सुन के आज हम्मर भूख-पिआस सब बंद हे ।" बेटी पूछलक तो बीरबल राजा के सवाल कह देलक । बेटी कहलक कि "घबड़ाय के कोई बात नऽ हे । चलऽ, पहिले खा लऽ आउ दरबार में जाय के पहिले पूछ लिहँऽ ।" बीरबल खाना-उना खयलक आउ दरबार में जाय के पहिले बेटी से पूछलक कि "अब कहऽ ।" बेटी कहलक कि जा के राजा से कह दऽ कि "धुआँ के साड़ी तइयार हे बाकि ओकरा में नजर के भाड़ी के जरूरत हे !" राज-दरबार में आन के बीरबल ओही बात कहलक । राजा नजर के माड़ी ला सब के आँख पर एकह गो हाँड़ी बँधा देलन । जब नजर के माड़ी नऽ जमा होयल तो राजा कहलन कि "ए बीरबल, नजर तो जमे नऽ हो रहल हे !" तब बीरबल कहलक कि "सरकार, जब नजर के माड़ी जमे नऽ होयल तो धुआँ के साड़ी तइयार हो सकऽ हे ?"


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7.06 भुआली पुत्ता

[ कहताहर - श्रीमती गंगजली, मो॰-पो॰ - बेलखरा, जिला - जहानाबाद]

एगो गाँव में एगो मेहरारू हल । ओकरा एगो बेटा हल । ओकर नाम 'भुआली पुत्ता' हल । ऊ सेआन हो गेल तो हर जोते गेल । मतरिया खिचड़ी बना के बेटवा के हरवाही ले-ले जाइत हलई । राह में ओकरा एगो सिआर मिलल । ऊ कहकई कि "गे बुढ़िया, थरिया में का हउ ?" बुढ़िया कहलक कि "एकरा में खिचड़ी हे । बेटा भुअलिआ के खिलावे ला ले-ले जाइत ही !" सिअरा बुढ़िया से कहलक कि "धर दे बुढ़िया खिचड़ी, सुहरा दे मोरा पोंछ !" बुढ़िया खिचड़ी जब रख देलक तऽ सिअरा कुछ खा गेल आउ हीड़-हाड़ के छोड़ देलक । बुढ़िया ओकर पोंछी सुहरावे लगल तो देखलक कि ऊ बंडा सिआर हे । फिनो बुढ़िया भुआली पुत्ता के पास गेल । जा के बेटा के खिचड़ी देलक तो देख के बेटवा पूछकई कि "गे मइया, ई खिचड़िया हीड़ल काहे हउ ?" मइया सिअरवा के सब हाल कहलक तऽ बेटवा कहकई कि "जा के सिअरवा के कह दे कि हम्मर भुआली पुत्ता मर गेल । उनका फलना दिन के काम हे, ऊ दिन तोहनी भोज खाय अइहें !" मइया सिअरा से ई कहके रोवे लगल । एगो पेड़ तर जा के ऊ रोबे आउ एगो तर जा के हँसे । सिअरवा पूछलक तऽ ऊ बतौलक कि "बाबू के गुन इयाद आवऽ हे तो रोआई छूटऽ हे आउ दुसमन के दुख सुनऽ ही तो हँसी छूटऽ हे ।" ई कह के बुढ़िया घरे चल आयल ।

ठीक कयल दिन पर बुढ़िया चूल्हा पर कढ़ाही चढ़ा के ऊपरे से पानी टपकावे लगल । धीकल कड़ाही पर पानी गिरे से छन्न-छन्न के अवाज होयल । सिअरन भोज खाय अयलन हले से पूछलन कि कखनी बीज्जे होयत ? एयना सुन के बुढ़िया बोलल - "तोहनी सिआर हऽ, अपने से खाय के बेरा लड़बऽ से तोहनी के एगो दवाहीं में बाँध देइत हिवऽ !" सब सिआर बन्धा गेलन । तब बुढ़िया बोलल - "कोठी तर के मुँगड़ा निकाल हो भुआली पुत्ता !" भुआली पुत्ता मुँगड़ा निकाल के सब सिआर के मारे लगल । सब दवाँही तोड़ा के भागे लगल तो बन्डा के मार के दाँत तोड़ देलक । अंत में बन्डो भाग के जमात में पहुँचल तो कहलक कि "तोहनी भाग गेलें तो हम पान-भात खयले आवइत ही ।" तब सब सिअरवन कहलन कि पहिले अप्पन दाँत तो देखऽ !

7.05 सियार आउ बकरी के साझी (कथा 5.19 के रूपान्तर)

[ कहताहर - श्रीमती गंगा देवी, मो॰-पो॰ - बेलखरा, जिला - जहानाबाद]

एगो बकरी आउ एगो सिआर हल । दूनों में इयारी हल । बकरिया के दोसर एगो सखी कुतिया हल, जेकरा दूगो बेटा हल । कुतिया दूनों बेटवन के जलम दे के मर गेल । बकरिया कुतिया के बेटवा के पोसे लगल । कुतवा ओकरा मौसी कहऽ हल । एन्ने सिअरा कुछ खेत ले-ले हल आउ जोत-कोड़ के ठीक कयलक तो बकरिया से कहलक कि "हम-तूँ साझी हो के खेती करऽ ।" दूनो मिल के राय कर के खेत में बूँट बुनलक । जब बूँट जमल तो बकरी देख के कुछ चर गेल तो सिअरा देख के कहलक कि कल्ह काँटा ला के घोरान घेर दे । बकरी आउ सिआर काँटा ला के घोरान लगौलक आउ हिफाजत करे लगल । जब बूँट पक गेल तो सिअरवा बुँटवा काटे आयल । दूनो मिल के बूँट काटलक आउ देवलक तो बाँटइत खानी सिअरा बोलल - "ए बकरी, तूँ भूँसा के खताहर हें, भूँसा ले ! हम अन्न के खताहर ही, हम अन्न लेबउ ।" एपर दूनों लड़ गेलन । बकरी अन्न आउ भूँसा, दूनों लेवे पर अमादा हल । सिअरवा डेरवलक कि "हमरा अनाज नऽ देबें तो खइये जबउ ।" बकरिया खिसिआयल घरे गेल आउ कुतवन से कहलक कि "देख, सिअरवा हमरा खाय ला कहइत हउ आउ अनजो न देवे ला तइयार हउ । तोहनी चल के खरिहानी में लुकायल रहऽ !"

खरिहानी में जा के फिनो सिअरवा आउ बकरिया बकवास करे लगल । सिअरवा कहलक कि "धर तो बकरिया के खा जाऊँ !" बकरिया कहलक कि "निकलिहें तो रे भाला माना !" एतना सुन के कुतवन निकलल आउ सिआर के रगेदलक । सिआर परान ले के भागल आउ अपन मांद में भाग के घुस गेल । सिअरनिआँ के ऊ सब हाल सुनौलक, जरा मनवा में से बहरी निकल के देख कि हइए हउ कि गेलउ । सिअरनिआँ बोलल कि "तूँ मरद हें, तूँ जा के देखऽ !" इहाँ आन के 'भाला माना' सिआर के मांद पर दूनों दने लुका के बइठल हल । सिअरवा भीतरे से हुलकल तो दूनो कुत्ता ओकर दूनो कान चप्प से पकड़ लेलक । सिअरा चिल्लायल कि "गे सिअरनिआँ, पोंछी धर के तीर !" सिअरनिआँ ओकर पोंछी धर के तीरलक तो ओने पोंछी कुबर गेल आउ कुतवन दूनो कान कुबार लेलक ! सिअरवा ऊ दिन से कनकटा-बन्डा कहलाय लगल । बकरिया तब तक एन्ने सब बूँट आउ भूँसा ढोके घरे धर देलक ।

7.04 बेंग रानी

[ कहताहर - परशुराम, तवकला, मो॰-पो॰ - अरवल, जिला - गया]

एगो सुग्गा हल । ऊ गेहूँ चुनलक आउ सुखा-बना के पिसलक आउ सव सेर के एगो लिट्टी लगौलक । लिट्टी जब खाय लगल तो एगो उछिलइत बेंग आयल । बेंग के देख के सुग्गा बोलल -"बेंग रानी, बेंग रानी, लिट्टी लेबऽ ?" बेंगवा बोलल कि "देबऽ तो खयबे करम नऽ तो टुकुर-टुकुर देखइत रहम ।" सुग्गा एगो लिट्टी ओकरा दे देलक आउ पूछलक कि "आउ लेबऽ ?" ई तरह सुग्गा देइत गेल आउ बेंग लिट्टी खाइत गेल । अंत में सुगवो के खा खेल । आगे बढ़ल तो बकरी के चरवाहा मिलल । बेंगवा बोलल कि "बकरिया के चरवहवा भइया, बकरी के दूध पीये देबें ?" चरवहवा जवाब देलक कि "मारम लात कि भरते निकल जतऊ ! बेंग आउ बकरी के दूध पीबे ?" बेंगवा कहकई - "सवा सेर के लीट खइली, सुग्गा अइसन मीठ खइली, तोरा खाइत का बड़ी देरी लागत ?" एतना कह के ऊ चरवहवा समेत बकरी के खा गेल । आगे बढ़ल तो गाय के चरवाहा भेंटल तो बोलल कि "गइया के चरवाहा भइया ! गाय के दूध पीये देबें ?" चरवहवा बोलल कि "मारम लात कि भरते निकल जतऊ ! अदमी के ठेकाने नऽ हे आउ बेंग हो के गाय के दूध पीबें ?" तब बेंगवा कहकई कि "सवा सेर के लीट खइली, सुग्गा अइसन मीठ खइली, बकरी के चरवाहा खइली, तोरा खाइत का बड़ी देरी लागत ?" कह के ऊ गाय समेत चरवाहा के खा गेल ।

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7.03 बुरबक लइका

[ कहताहर - रामप्यारे सिंह, मो॰-पो॰ - तरार, जिला - गया]

एगो अहीर के एगो लइका हल । ओकरा कोई बात हाली समझ में नऽ आवऽ हल । एक दिन ऊ अप्पन माय से पूछलक कि हम्मर बिआह होयल हे कि न ? मइया कहकई कि "तोर सादी पेटे में हो गेलवऽ हल ।" बेटा ससुरार जाय ला तइयार हो गेल । मइया कहकई कि जो, तऽ रास्ता पूछलक । ऊ बतौलकई कि "नाक के सीध में चल जइहँऽ तो ससुरारे पहुँच जयबऽ ।" बेचारा चलइत-चलइत जब कुछ दूर चल गेल तो सामने ही एगो ताड़ के पेड़ मिलल । नाक के सामने पेड़ पड़ल तो ओकरा पर ऊ चढ़ गेल आउ उतरे लगल तो ओकर गोड़ छूट गेल । हाथ से चूम्ह के खउका धयले रहल । ऊ रास्ता से बरात से लौटल एगो हाथी आ रहल हल । ओकरा पर नचनियाँ बजनियाँ बइठल हलन । लइकवा कहलक कि "ए भाई पीलवान, जरा हथिया खड़ा कर के हमरो उतार लऽ ।" पीलवान ई सुन के अप्पन हाथी खड़ा कर देलक, आउ ओकरा पर रंडिया के खड़ा कर देलक फिर ओकर कान्हा पर अपने खड़ा हो गेल । ओकरा पर बजनियाँ हो गेल आउ ई तरह से दू चार गो जे हाथी पर हलन से खड़ा हो गेलन आउ लइकवा के टाँग धरा गेल । उतारे के उपाय होय लगल तो हाथी ओहिजा से आगे घँसक गेल । सब तार के पेड़ से लटक गेलन । लटकल देर होयल तऽ लइकवा बोलल कि अब कुछ गान-बजान होवे के चाही । उहँई सब मिल के गान-बजान सुरु कयलन । रंडिया हईसन गाना गवलक कि लइकवा खुसी में ताली बजावे लगल तो सब भदा-भदा ताड़ से गिर गेलन । नीचे रंडिया हल जेकरा से ओकरा जादे चोट लगल । समजिवा में से लइकवा के दू पइसा के तेल लावे ला कहलक । ऊ दोकान से मलिया में तेल लावे गेल । छोट मलिया के वजह से ऊ भर गेल तो मँगनी माँगलक । दोकनदरवा कहलक कि मँगनी का में दिअऊ ? तो लइकवा मलियवा उलट के कहलक कि ई पटी दे दऽ । ऊ लइकवा उलटी मलिया लेके ताड़ भीरु पहुँचल तो हुआँ पूछल गेल कि दू पइसा के एतने तेल हउ ? लइकवा मलियवा उलट के देखा देलक कि आउ ई पटी हे ।

7.02 सबसे बलवान कउन ?

[ कहताहर - रामप्यारे सिंह, मो॰-पो॰ - बेलखरा, जिला - जहानाबाद]

एक ठो पच्छिम के पहलवान हल आउ एक ठो पूरब के । पच्छिम के ताल मारे तो पूरब ओला के सुनाय दे आउ पूरब ओला ताल मारे तो पच्छिम ओला के सुनाय पड़े । पूरब के पहलवान सोचलक कि पच्छिम वाला से तनी हाथ मिलाईं । ऊ चलल उहाँ से हाथ मिलावे आउ पच्छिम के पहलवान के पास आयल । ऊ घरे न हल बाकि ओकर बेटवा हल । ओकर बेटवा से पूछलक कि बाबूजी कहाँ गेलथुन हे ? बेटवा कहलकई कि तीन सौ साठ गाड़ी के लदनी करे जंगल में गेलन हे ।अंगना में एगो ताड़ के पेड़ देख के पहलवान कहलक कि हमरा छड़ी बनावे ला पेड़वा दे दे । बेटवा कहलकई कि एही पेड़ ला हमरा ही रोज लड़ाई होवऽ हे । बाबू जी कहऽ हथ कि दतउन करब आउ मइया कहऽ हे कि हम चलौना बनायम । तोरा कइसे दे देवऽ ? ई सुन के पूरब ओला सोचलक कि ई तो हमरो ला जब्बर पहलवान बुझाइत हे । पूरब ओला पहलवान जंगल में ओकरा खोजे चलल तो देखइत हे कि ऊ अकेले 360 गाड़ी तीरले चलल आवइत हे । ऊ ओहिजे लुका गेल । जब 360 गाड़ी पार हो गेल तो निकल के पिछला चक्का में अप्पन अँगूठा ठेका देलक । तीन सौ साठो गाड़ी रुक गेल । पच्छिम वाला पहलवान पर नजर पड़ल तो ऊ बोलल कि कुछ नऽ होलवऽ हे । हम तोरा से हाथ मिलावे ला अइली हे । पच्छिम ओला कहलक कि यहाँ देखत के ? एतने में एगो बुढ़िया हाड़ी में पानी ले-ले आवइत हल । ऊ बायाँ हाथ में भात ले-ले जाइत हल । पूरब ओला बुढ़िया से कहलक कि "जरा ठहर जो । हमनी के लड़इत देख तो कउन पटका हे ।" बुढ़िया बोलल कि "हम्मर बेटा 360 गो ऊँट चलावइत हे । भूखे हे, ठहर के हम कइसे देखे लगी ? लड़हीं ला हउ तऽ हमर दहिना हाथ के तरहत्थी पर लड़इत चल । हम देखइत चलबउ ।" दूनो ओकर तरहत्थी पर चढ़ के लड़े लगलन । चलइत-चलइत बुढ़िया के बेटवा के नजर पड़लई तऽ ऊ बोल ऊठल कि "बाइ रे बाप ! मइया हम्मर आज दूगो पहलवान ले-ले आवइत हे । बचे न देत !" एतना सोंच के ऊ दोहर बिछा देलक आउ तीन सौ साठो ऊँट के पकड़ के मोटरी बाँध देलक आउ कपार पर ले के भाग चलल । बुढ़िया के बार-बार चाल कयला पर भी ऊ नऽ रुकल, बस भागल चल गेल । बुढ़िया लौट के घर चल आयल ।

बुढ़िया के बेटा के पियास लगल तो एगो कुआँ पर मोटरी रख के पानी पीये लगल तब तक एगो चिल्ह आयल आउ मोटरी ले के उड़ गेल । चील उड़ल जाइत हल कि हहास के अवाज सुन के राजा के बेटी ऊपरे तकलक तऽ ऊँट के मोटरी ओकर आँखे में गिर गेल । ऊ आँख मल के कहलक कि कउची तो आँखे में पड़ गेल । ई निकाले ला चमइन बोलावल गेल तो चमनियाँ निकाल के तीन सौ साठो ऊँट अप्पन खोंइछा में रख लेलक आउ चल देलक । राजा के बेटी आँख मल के रह गेल ।

7.01 गभिया

[ कहताहर - श्यामदेव सिंह, मो॰-ग्राम - चौरी, पो॰ - गया, जिला - गया]

एगो गाँव में एगो किसान हल । ओकरा एगो बेटा हल । ऊ बड़ी गाभी करऽ हल । सबसे मजाक करइत रहऽ हल जेकरा से लोग ओकरा 'गभिया' कहऽ हलन । असाढ़ के महीना में जब पानी खूब होयल हल, किसान खेत में सेरहा बुने ला हर जोत रहल हल । ऊ बेटा से कहलक कि जा के माय से बुने ला सेरहा माँग लावऽ । लड़का घरे आन के माय से कहलक कि बाबू जी सेरहा कूट के खीरा बनावे ला कहकथुन हे । माय ई सुन के बीहन वाला सेरहा के कूट-चूर के खीर-पूरी बनौलक बाकि गभिया डर के मारे घर छोड़ के भाग गेल । किसान खेत में सेरहा के आसा में साँझ तक खेत में रहल बाकि बीहन नऽ आयल तो खीसिआयल घरे हर-बैल ले के पहुँचल । ऊ अप्पन औरतिया से पूछलक कि "छवड़ा कहाँ गेलउ हे ?" ऊ कहकई कि "कहके तो गेलवऽ हे कि सेरहवा ओला धान कूट के रख ले हिवऽ।" ऊ माथा ठोकलक बाकि का करे, साँझ हो गेल हल, घर में बीहन भी नऽ हल । से ऊ खीर-पूरी खा के लड़कवा के खोजे निकलल बाकि ओहू नऽ मिलल ।

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Sunday, March 16, 2008

6.08 ब्राह्मन आउ नौकर

[ कहताहर - प्रसाद साव, मो॰ - चिलोरी, भाया मलाठी, जिला - गया]

एगो ब्राह्मन हलन । ऊ ठाकुर के सेवा करऽ हलन । ठाकुर जी के सेवा करे में ऊ कभी-कभी भूखे भी मरे लगऽ हलन काहे से कि उनका एगो भइँस भी हले । बाबा जी भइँसिया के देखे ला एगो भूइयाँ रखलन । एक दिन एकादसी आयल तो कहलन कि "ए रे, आज एकारसी हउ । खाय के न हउ !" से ऊ दिन भूइयाँ कइसहूँ भूखे रह गेल । जब दोसर महीना में फिनो एकादसी आयल तो भूइयाँ खिसिया गेल आउ कहलक कि एकारसी रहो इया दोआरसी, हमरा चाउर दे दऽ । हम बनायम-खायम । बाबा जी ओकरा चाउर दे देलन । भूइयाँ चाउर आउ भइँस ले के जंगल में चरावे ले गेल । बाबा जी ओकरा एगो घंटी दे देलन आउ कहलन कि खाय जयतो तो घंटी बजा दिहें ।

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6.07 सच्चा साधु

[ कहताहर - देवनन्दन सिंह, मो॰ - चिलोरी, पो॰ - मखदुमपुर, जिला - गया]

एगो साधु हलन । ऊ ठाकुर जी के रोज नया फल से भोग लगावऽ हलन । एक दिन के बात हे कि साधु जी नया फल खोजइत-खोजइत थक गेलन बाकि ऊ न मिलल । आखिर में एगो खेत में देखलन कि गदरायल गोहुम हे । गोहुम के खेत में लठवाहा लाठा चलावइत हले । से साधु जी सोचलन कि इहईं नेहा लीं आउ दू बाल तोड़ लीं काहे कि ई भी तो नये फल हे । से साधु जी ओहिजे नेहा-फीच के गोहुम के दूगो बाल तोड़लन आउ जाके ठाकुर जी के भोग लगा देलन ।

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6.06 तीज-पूजा

[ कहताहर - राजकली देवी, ग्राम-पो॰ - खुटहन, जिला - गया]

एगो अदमी हल । ओकर मेहरारू एक दफे तीज कयले हल । ऊ अदमी मेहरारू ला अन्हरिये तीज-पूजा के सब समान आन के रख देलक । मरदनवाँ मेहररुआ के नाद में पानी देवे कहलक तऽ ऊ कहकई कि "हमरा भूखे मिजाज जरइत हे आउ पिआसे कंठ सूखइत हे, चल न होआइत हे, से तू ही दे देहूँ ।" तब मरदनवाँ कोठी पर लुका गेल । मेहररुआ के सब करमात देखे लगल । ऊ देखइत हे कि मार ढेले-के-ढेले भात खयले जाइत हे । सींक में घोंप-घोंप के पिट्ठा खाइत हे । जब पिट्ठा आउ भात खा गेल तब ऊ खीरा के फार के दू फारा खा गेल । एकरा बाद तीन घानी चूरा रखल हल से ओकरो फाँक गेल । मरदनवाँ जब निकलल तो ओकरा से कहलक कि "पंडी जी के जरा सबेरे बोला लइहँऽ । बड़ी भूख लगल हे । पिआसे कंठ सूखल जाइत हे !" मरदनवाँ कहलक कि "पंडी जी के का जरूरत हवऽ ? हम ही पूजा करा देबवऽ ।"

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6.05 करतब के फल

[ कहताहर - शिवभजन पासवान, मो॰-पो॰ - सोनभद्दर, जिला - गया]

एगो राजा के चार बेटी हलन । एक दिन राजा बेटी से पूछलन कि तोहनी केकर राज से राज करइत हें ? बड़की तीनो कहलन किहम तोहर राज से राज करइत ही बाकि छोटकी बोलल कि हम तो अप्पन राज से राज करइत ही । ई सुन के राजा बड़की तीनो के राज-रजवाड़ा ही बिआह देलन आउ छोटकी के जंगल में निकाल देलन । छोटकी बेटी भुलाइत-भुलाइत एगो झोपड़ी में चल गेल । उहाँ भगवान डोम के भेस में रहऽ हलन । लड़की उनके से सब दुख सुनौलक आउ उनकरा साथे रहे लगल ।

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6.04 जइसन करनी ओइसन फल

[ कहताहर - रामप्यारे सिंह, मो॰-पो॰ - बेलखरा, जिला - गया]

एगो बाबा जी हलन - दूगो परानी । दूनो के पेट कहिनो न भरे । बाबा जी केतनो माँगथ बाकि सुख से न रहथ । एही बीच उनका एगो लड़की भी जलम लेलक । कुछ दिन में लड़की बड़की गो हो गेल तो खेवा-खराच के आउ मोसकिल हो गेल । से एक दिन बाबा जी पड़ीआइन से कहलन कि एकरा जंगल में जाइत हीवऽ छोड़ आवे, काहे से कि हमनी दूनो के तो पेटे न भरे हे, एकरा बीच में कहाँ से जुटाईं ? पड़िआइन कहलन कि "जाके छोड़ आवऽ !" बाबा जी बेटी के लेके जंगल में छोड़ के आवे लगलन तो बेटिया बोलल कि बाबू जी, हमरा इहाँ काहे ला छोड़इत हऽ । बाबा जी कहलन कि हमनी दूनो परानी के तो खरचे न चले, तोरा काहाँ से जुटाईं ? तब बेटिया बोलल कि हमरा लेले चलऽ । हम उपाय बतबवऽ त दूनो बाप-बेटी लौट के घरे आ गेलन । पड़िआइन पूछलन कि एकरा फिनो लेले काहे अयलऽ ?

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6.03 राजा आउ मंत्री

[ कहताहर - ब्रजकिशोर प्रसाद, मो॰-पो॰ - बलुआ, जिला - गया]

कोई गाँव में नरसिंघ नाम के एगो राजा हलन । उनकर सुभनाम के मंत्री हलक । राजा के मंत्री पर पूरा भरोसा हले । बाकि मंत्री के राजा पर न हले । एक दिन जब राजा सूतल हलन तो मंत्री उनका जान मार देलक आउ अपने राज-पाट करे लगल । कुछ दिना के बाद मंत्री मर गेल । जम लोग ओकरा जमराज के पास ले गेलन । जमराज उनका घोड़ा जोनी में जलम देलन । ऊ घोड़ा के एगो सौदागर ले लेलक आउ सौदागर से राजा खरीद लेलक । राजा जब सवारी करे ला घोड़वा भीर गेलन तो ऊ सिर नेवा लेलक । ई हाल देख राजा एकर कारन जाने ला पंडितन के बोलैलन । पंडित लोग कहलन कि "ई घोड़ा तोरा परनाम करलक हे" बाकि राजा के विसवास न भेल । ऊ एक दिन घोड़ा पर चढ़ के जंग में सिकार करे गेलन । जाइते-जाइते राजा के पिआस लगल तो पानी खोजे लगलन । एगो कुटिया के नजीक गेलन तो देखइत हथ कि उहाँ एगो पानी से भरल तलाब हे । कुटिया में एगो साधु जी हथ जे एगो लड़का के गीता पढ़ा रहल हथ ।

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6.02 थोड़ा दान बहुत फल

[ कहताहर - प्रसाद साव, मो॰ - चिलोरी, पो॰ - मखदुमपुर, जिला - गया]

एगो ब्राह्मण हलन जेकरा एगो लइका हले । दोसर जगुन एगो ब्राह्मनीहलन । उनका एगो लड़की हले । दूनो के बिआह के बातचीत चलल तो ब्राह्मन कहलन कि "अभी हम्मर बेटा पढ़इत हे । पढ़ला के बाद सादी करम !" से लड़का पढ़े लगल आउ पढ़ला-लिखला पर दूनो के सादी हो गेल । सादी के बाद लड़कावा ससुरारे में रह गेल आउ कहलक कि हम इन साल दसहरा खाके घरे आयम । से जब ऊ रात में कोहबर गेल तो कनइयाँ पूछलक कि तूँ तो बाबू साहब पढ़-लिख के होसिआर हो गेलऽ हे । से हम एक सवाल पूछऽ हिवऽ, ओकर जवाब देबऽ ?

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Saturday, March 15, 2008

6.01 मनीता के महातम

[ कहताहर - मनोरमा देवी, मो॰-पो॰ - बेलखरा, जिला - गया]

एगो राजा हलन । उनका कोई लड़का न हले । खाली लड़की हलन । ऊ राजा-रानी लड़का ला गंगा जी से मनीता मानलन तो उनका एगो लड़का होयल । ऊ सेयान भेलन तो उनकर सादी भी गंगा के पारे हो गेल । उनकर मतारी गंगा जी के मनीता तो मान देलन हल बाकि भारा न उतारलन हल, से जब राजकुमार के बिआह हो के बराती गंगा पार से लौटइत हल तो सब बराती पार हो गेल बाकि राजकुमार के गंगा जी डुबा देलन । ऊ राजकुमार गंगा जी के हो गेलन आउ उनके लगे रहे लगलन । गंगा जी ऊ राजकुमार ला अप्पन अरार पर एगो मंदिर बना देलन । दिन में राजकुमार गंगा जी के साथ रहथ आउ रात में गंगा जी से निकल के मंदिर में रहथ । गंगा जी ओकरा अप्पन समझ के 'गंगा-गंगा' कहके चाल करथ तो ऊ बिहान होते मंदिर से निकल के गंगा जी में चल जाथ ।

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5.24 भगमान जे करऽ हथिन से भले करऽ हथिन

[ कहताहर - श्री रामगति शाह, मो॰ - चुटकिया बाजार, पो॰ - माधव मिल, पटना सिटी]

एगो राजा हलथिन । उनकर एगो वजीर हलथिन । दूनों में बड़ी परेम हलई । दूनों एक दूसरा के बिन न रह सकऽ हलथिन । वजीर जी के एगो तकियाकलाम हलइ - "भगमान जे करऽ हथिन से भले करऽ हथिन ।" कभियो और कहियो कुच्छो घटित हो जाय, वजीर हरमेशा एही कहबे करऽ हलथिन । सुख के बात घटला पर तऽ ई बात कोई के भी भला लग सकऽ हे बाकि दुख के बात घटला पर कोई अइसन कहे तऽ बुरा भी लग सकऽ हे ।


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5.23 सतेली माय (कथा 4.13 के रूपांतर)

[ कहताहर - श्यामदेव सिंह, ग्राम॰-पो॰ - चौरी, जिला - औरंगाबाद]

एगो सहर में एगो राजा हलन । उनका कोई लइका-फइका नऽ हल । कुछ दिना के बाद उनका चार गो लइका होयल । ऊ राजा के महल के एगो कोना में गरवइया खोता लगा के दूनो परानी रहऽ हलन । रानी ओकरा रोज देखऽ हलन । गरवइया के दूगो बच्चा हल । बचवन के दूगो परानी मिलके खिआवऽ-पीआवऽ हलन । कुछ दिन के बाद गरवनियाँ मर गेल तो गरवइया अकेले पाले-पोसे लगल ।
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5.22 कुली आउ बकरी के इयारी

[ कहताहर - जेठन महतो, मो॰ - अकलबिगहा, पो॰ - बेलागंज, जिला - गया]

एगो बकरी आउ कुत्ती में इयारी हले । दूनो एके जगुन रहऽ हलन । कुछ दिन के बाद कुतिया के दूगो बच्चा पैदा भेलई । बचवा के जनमते कुतिया बेचारी मर गेल । अब बकरिया बेचारी बचवा के पाले-पोसे लगल । दिनभर बकरिया जंगल में चरे आउ साँझ के आन के दूनो बचवन के दूध पिआवे । ई तरह से जब कुछ दिन बीत गेल तऽ एक दिन सब सिआर मिल के सोचलन कि ए भाई, हमनी मिल के बकरिया के मार देई तऽ सब के एक दिन बढ़िया भोज हो जाय ! ई बात सुन के सब सियार तइयार हो गेलन ।

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5.21 सियार आउ ऊँट के इयारी

[ कहताहर - देवनन्दन सिंह, मो॰ - चिलोरी, पो॰ - मखदुमपुर, जिला - जहानाबाद]

एगो सिआर आउ ऊँट में बड़ी इयारी हल । एक रोज बतिअइलन कि इयार कहीं फूँट खाय चले के चाहीं । ऊँटवा कहलक कि "हम तो कहीं देखवे नऽ कैलियो हे । तू देखले हें तो चल ।" दूनो चललन तो रस्ता में एगो नदी मिलल । ओकरा में भरल पानी हल । से सिअरवा के पार होवे में मोसकिल होवे लगल । तऽ ऊँटवा कहलक कि हमर पीठिया पर तू बइठ जो । सियार ऊँटवा के पीठ पर बइठ गेल आउ नदी पार हो गेल । ऊ पार गेल तो देखलक कि नदी के दलकी में खूब ककड़ी फरल हे । फूटो फूट के छितरायल हे । दूनो इयार रात में परेम से खूब फूट खयलन । सिअरवा के जल्दी पेट भर गेल तो ऊ कहलक कि "हमरा तो इयार 'भूकवास' लगलो हे ।" ऊँटवा कहलक कि "तनी दम धर । भाग के खेतवा से दूर चल जयबो तो भूकिहें ।"
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5.20 जेकर काम वो ही करे !

[ कहताहर - देवनन्दन सिंह, मो॰ - चिलोरी, पो॰ - मखदुमपुर, जिला - जहानाबाद]

एगो धोबी हल । ओकरा एगो कुत्ता हले । एक दिन धोबी कुतवा के खाय ला नऽ देलक । रात में भूखे कुतवा ओकर दूरा पर बइठल हल । धोबिया केगदहा भी ओहिजे ओरी तर ओघड़ायल हल । धोबिया हीं चोर घुसल तो गदहवा कुतवा से कहलक कि "तू तो एकदम नीमकहराम हो गेले । मालिक हीं चोर घुसल हइ आउ तोरा भुकिए नऽ होअउ ?" भूखे कुतवा खिसिआयल हल । से कहलक कि "हम नऽ भूकवइ । चोरावे ला हइ तो चोरावइ, हमरा गरज न हे ।" गदहवा कहलक कि हम तो हल्ला करके मालिक के जगा दे ही । तऽ कुतवा कहलक कि "देख सार, भूके के काम हम्मर हे, तू करवें तो ओकर फल मिल जतउ ।' तइयो गदहवा के न रहल गेल । ऊ जोर-जोर से हेच्चों-हेच्चों करे लगल । धोबिया दिन भर ढायँ-ढायँ लूगा फिचलक हल आउ थक के खूब जोड़ से नीन में सूतल हल । गदहवा जे हल्ला कयलक से ओकर नीन टूट गेल आउ खिसिआयल मुँगड़ी उठा के लगल ओकरा पीटे । मार मुँगड़ी, मार मुँगड़ी ऊ गदहवा के अधमरू कर देलक । धोबिया के उठे से चोरवन तो भाग गेल बाकि जब धोबिया सूत गेल तो कुतवा कहऽ हे गदहवा से कि "अबकहीं न कहलिउ हल रे सार कि जेकर काम ओकरे साजे - दोसर करे तो डंटा बाजे ! से अब तो सांत हो गेले नऽ ?" खिस्सा गेलो वन में, समझऽ अप्पन मन में ।

5.19 सियार आउ बकरी के इयारी

[ कहताहर - देवनन्दन सिंह, मो॰ - चिलोरी, पो॰ - मलासी, मखदुमपुर, जिला - जहानाबाद]

एगो हल सिआर आउ एगो हले बकरी बकरी । दूनो लगौलक इयारी । बकरिया आउ सिअरवा एक दिन आपस में विचार कैलन कि अब अइसे बइठल रहे से काम नऽ चलतो । हमहूँ आउ तूहूँ एन्ने-ओन्ने डोलल चलऽ ही, से एगो काम करऽ - दूनो मिल के गिरहस्ती करऽ । से दूनो मिल के एगो खेत लेलक आउ ओकरा में बूँट लगौलक । ओहनी खेतवा में खूब मेहनत कैलन से बूँट खूब बरियार लगल । जब बूँट पक गेल तो सिअरवा बकरिया साथे बूँटवा अगोरे जाथ ।

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5.18 लाख टका के बात

[ कहताहर - राजीव कुमार 'राज', साहित्य सदन, टेकारी रोड, पटना ]

महाकवि भारवि बाल्यकाल से ही सुन्नर काव्य रचे लगलन हल, जेकर चारों ओर धूम मचल हल । बाकि महाकवि भारवि के बाबू जी, जे अपने भारी पंडित हलन आउ कविताई भी करऽ हलन, ऊ अप्पन पूत के कभीयो बड़ाई न करऽ हलन । एह बात से महाकवि भारवि के मन बड़ी उदास रहऽ हल । अन्त में अप्पन बाबू जी पर एतना खीझ गेलन कि उनकर हत्या के विचार कयलन ।

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5.17 क्रोध में रहस्य खोले के फल

[ कहताहर - कविता रानी, मो॰-पो॰ - बेलागंज, जिला - गया]

एगो हकीम हल, जेकर नाम लुकमान हल । ऊ सोचऽ हल कि हम सब के जीआवऽ ही, से हमरा कउन मारत ? ओकरा एक दिन जमदूत से बहस भे गेल । हकीम कहलक कि हमरा तूँ काहे ले जयबऽ ? हम तो दूसर के जीआवऽ ही !" जमदूत कहे लगल कि "एकरा से का ? हम आज के अँठवा रोज तोरा ले जबवऽ !" तब हकीम कहलक कि "ई तो होइये नऽ सकऽ हे ।" तब जमदूत कहलक कि "आज से आठ दिन में तूँ जे चाहऽ से कर लऽ । बाकि आँठवा हम तोरा ले जबवऽ ।" हकीम अप्पन घर के खूब सजावे लगल । आँठवा दिन अप्पन घर के एगो कोठरी में बारह कुरसी पर अपने नियन बारह गो अदमी बनौलक - हू-ब-हू सब अपने नियन ।

अब जमदूत अयलक तो हकीम के चीन्हवे नऽ करथ । ऊ बड़ा सोच में पड़ल कि हम हकीम के आज नऽ ले जायेब तऽ जमराज भीर मुँह नऽ देखावे लायक रहब । जमदूत सोचे लगल कि हमरा राजा उहाँ नऽ भी रहे दे सकऽ हथ । से हक्का-बक्का हो के दूत जमराज के लोक में पहुँचल । जमराज कहलन कि "तूँ लोग बड़ा बुड़बक हऽ । एतना भी अकिल नऽ हे कि हकीम के कइसे लाईं !" जमराज कहलन कि "सुन, उहाँ जा के कह कि हकीम तो बड़ा अच्छा घरसजवलऽ हे । एतना अच्छा घर कि मृत्युभवन में कोई नऽ सजवलक हे ।" एकरा बाद फीनों कहिहें कि "एकरा पर एगो गलती हे । एकरा में जे अदमी खड़ा हो जयतो ओही हकीम होयतो !" जमराज से ई बात सुन के जमदूत फिन मृत्युभवन में पहुँचलक । उहाँ जा के एही सब बात कहलक आउ तुरते हकीम पकड़ा गेल । दूत पकड़ के उनका जमराज भीर ले गेलक । खिस्सा खतम, पइसा हजम ।

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5.16 चोरी के फल

[ कहताहर - रवीन्द्र चौधरी, मो॰-पो॰ - अकलबिगहा, जिला - गया]

एगो अदमी एगो मैना पोसले हल । ऊ रोज घरे हर जोत के आवे तो पहिले मैनवे के खिआवे तब अपने खाय । एक दिन घरे आन के पहिले अपने खाय लगल तब खेयाल पड़ल कि मैनवाँ के नऽ खिअइली हे । से जा के देखे लगल । तऽ मैनवा उहाँ हइये नऽ हल । मइया से पूछलक कि मैनवा का हो गेल ? मइया कहकई कि आज रजवा के बेटवा तो आयल हलवऽ, ओही तो नऽ ले गेलवऽ हे । से ऊ तुरते गाड़ी पर चढ़ के मैनवा के खोजे निकलल । जाइते-जाइते एगो बीच्छी मिलल । बीछिया कहलक कि "ए मन्नू भाई, ए मन्नू भाई, हमरो गड़िया पर ले ले चलवऽ ?" से मन्नु भाई ओकरा गाड़ी पर चढ़ा लेलक आउ बड़ी खुसी में गाना गावइत चलल -
"सींक के मोरा गाड़ी रे गाड़ी,
मध लादले जातु हैं ।
राजा मोरा मैना के ले भागल,
ओकरे खोज में जातु हैं ।।"

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5.15 घरनी से घर चलऽ हे

[ कहताहर - श्यामसुन्दर सिंह, मो॰-पो॰ - बेलखरा, जिला - जहानाबाद]

एगो राजा हलन । उनकर तीन गो लड़कन हलन । तीनों जब पढ़-लिख के तइयार भेलन तब राजा तीनों के एक जगुन बइठा के पूछलन कि "घर से घरनी चले हे इया घरनी से घर चले हे ?" तब बड़का आउ मंझिला जवाब देलक कि "घर से घरनी चले हे ।" छोटका कहलक कि "घरनी से घर चले हे ।" तब राजा छोटका लइका के महल से निकाल देलन आउ एगो खाली घर दे के कहलन कि "एही में रह के बतावऽ कि कइसे खाली घरनी से घर चलऽ हे ।" तब छोटका लइका महल से निकल गेल आउ ओही घर में रहे लगल । एक दिन रानी से कहलक कि अब हम जाइथीवऽ परदेस ! हम बारह बरीस पर अबवऽ । एतना दिन में तूँ तीन चीज ठीक करिहँऽ । एक - तूँ एगो मकान बनौले रहिहँऽ, दू - एक लड़का पैदा कर लीहँऽ, तीन - सादी कर के रखिहँऽ !"

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5.14 कउआ आउ गुहली

[ कहताहर - अवनीन्द्रनाथ, मो॰ - मगही लोक, पो॰ - तूतवाड़ी, जिला - गया]

एगो पेड़ पर गुहली हल । ऊ रोज एगो अंडा दे हल । ओही पेड़ पर एगो कउआ रहऽ हल । ऊ रोज गुहलिया के अंडवा फोर के खा जाय । एक दिन गुहलिया कहलक ि "गंगा जी से ठोर धोके अयवें तो अंडा फोर देवउऽ !" कउआ गंगा जि में ठोर धोवे गेल आउ गंगा जी से बोलल -" "गंगली ! गंगली ! दे पंडुली, ठोर धोवानी खा गुहली के बच्चा रे चेंव, चेंव !" गंगा जी कहलन कि जो कुम्हार हीं से चुक्का माँग के ले आव । ऊ कुम्हार हीं गेल आउ कहलक - "कुम्हरी ! कुम्हरी ! दे चुक्कली, ले गंगुल्ली, दे पंडुली, ठोर धोवानी, खा गुहली के बच्चा रे चेंव, चेंव !" तब कुम्हरा कहलक कि "जो मटखान में से मट्टी ले आव । तब नऽ गढ़ के चुकवा देवउ !" कउआ उड़ल आउ मटखान में जा के बोलल - "मटुल्ली ! मटुल्ली ! ले कुम्हल्ली, दे चुकल्ली, ले गंगुल्ली, दे पनुल्ली, ठोर धोवानी, खा गुहली के बच्चा रे चेंव, चेंव !" तब मटखनवा कहलक कि "हरिन के सींघ ले आवऽ तब न कोड़ के देवउ !" तऽ कउआ हरिन भीर गेल आउ कहलक - "हिरनी ! हरिनी ! दे सींघल्ली, कोड़ मटिल्ली, ले कुम्हरी, दे चुकल्ली, ले गंगुल्ली, दे पनील्ली ठोर धोवानी, तब नऽ खा गुहली के बच्चा रे चेंव, चेंव !" तऽ हरिनिया कहकई - "जो कुत्ती के लड़े ला बोला लाव । तब नऽ लड़ के सींघ तोड़तउ !" कउआ कुत्ती भीर गेल आउ बोलल - "कुतली ! कुतली ! लड़ हरिन्ना, तोड़ सींघल्ली, कोड़ मटिल्ली, दे कुम्हल्ली, गढ़ चुकल्ली, दे गंगुल्ली, ले पनुल्ली, तब न ठोर धोवानी खा गुहली के बच्चा रे चेंव, चेंव !" तऽ कुतिया कहकई कि "जो गाय के दूध ले आव तब नऽ पी के हरिनियाँ से लड़वउ !" तब गाय से जा के कहलक - गयली, गयली ! दे दुधिल्ली, पी कुतिल्ली, तोड़ सींघल्ली, कोड़ मटिल्ली, दे कुम्हल्ली, गढ़ चुकल्ली, दे गंगुल्ली, ले पनुल्ली, तब न ठोर धोवानी खा गुहली के बच्चा रे चेंव, चेंव !" तब गइया कहकई कि "जो घास ले आव । तब न खा के दूध देवउ !"

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5.13 सियार के चलाँकी

[ कहताहर - अवनीन्द्रनाथ, मो॰-पो॰ - बेलखरा, जिला - जहानाबाद]

एगो सियार हल । ऊ रोज एगो दरिआव में पानी पीये जा हल । ओकरा में एगो घड़ियाल रहऽ हल । रोज-रोज जाय से सियरवा आउ घड़ियलवा में इयारी हो गेल हल । रोज सब एक जगुन जुटथ आउ आपस में बातचीत करथ । कुछ दिन के बाद घड़ियलवा के मन में कपट घुस गेल आउ ऊ चाहलक कि सिअरवा के खा जाऊँ । तऽ एक दिन घड़ियलवा पूछलक कि "इयार, तूँ रोज कहाँ पानी पीये जा हऽ !" तो सियरवा कहलक कि "तूँ तो रोज देखवे करऽ हऽ !" घड़ियलवा कहलक कि "आजकल इयार, बराबर न देखऽ हीवऽ !" तऽ सियरवा कहलक कि "हम तो एहीजे पँकड़वा तर रहऽ ही आउ ओहिजे घटिया पर पानी पीयऽ ही !" घड़ियलवा सोचलक कि जब ऊ रात में पानी पीये आवे तो पकड़ के खा जाईं " से एक दिन रात के पाँकड़ के पेड़ पेड़ के नीचे घात लगवले पानी में पड़ल हल । सियरवा पानी पीये आयल आउ पानी पीये लगल, तब घड़ियलवा सियरवा के गोड़ पकड़ लेलक । सियरवा असमंजस में पड़ गेल ।

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5.12 राना भैंसा आउ सियार

[ कहताहर - अवनीन्द्रनाथ, मो॰-पो॰ - बेलखरा, जिला - जहानाबाद]

एगो जंगल में सोरह गो भइँस रहऽ हलन । सोरहो भइँस एके तुरी बच्चा देलक । पन्द्रह गो तो काड़ी देलक बाकि एगो भइँस काड़ा बिआयल । जब सब के बचवन टेहरारू हो गेलन तो कड़वा सब के एक दिन एगो कुआँ पर ले गेल आउ कहलक कि जे ई कुआँ टप जायत ऊ सोरहो भइँस के दूध पीआत । पहिले कड़वा तड़पल आउ कुआँ टप गेल । फिन कड़ियन तड़पे लगलन तो सब चभ-चभ कुआँ में गिर के मर गेलन । अकेले कड़वा बच गेल आउ सोरहो भइँस के दूध पी के मोटा के राना (अरना) भैंसा हो गेल ।

ओही जंगल में एगो बाघ आउ बाघिन रहऽ हल । बघवा बूँट के खेती कयले हल । ओकर अगोरा सियार के बइठा देलक हल । सियरा रोज बूँट अगोरे आउ बघवा के 'मामू-मामू' कहे । एक दिन मोटका राना भैंसा बूँट चरे लगल तो सियरा कहलक - "राना भैंसा ! राना भैंसा ! बूँट मत खो, बाघ मामू अवथुन तऽ चीर-फार के खा-जैथुन !" तब राना भैंसा कड़क के बोलल -
सोरह भइँस के सोरह चभक्का, सोरह सेर घीव खाऊँ रे ।
कउन हउ तोर बाघ मामू, एक पकड़ लड़ जाऊँ रे ।।


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5.11 बिआही अउरत के छोड़े के फल

[ कहताहर - जगदीश सिंह, ग्राम - ऐम (बाराचट्टी), जिला - गया]

एक समय दूगो जवन बादशाह आउ वजीर अखाड़ा में कुस्ती करइत हलन । ऊ घड़ी गाँव में भारी बरात आयल हल । बरात देख के राजा-वजीर घूरलन तो बतिआइत हथ कि "हमनी के सादी के जानकारी नऽ हे । अप्पन माय-बाप के पूछे के चाहीं आउ कल फिन अखाड़ा में बतियाल जायत ।" दोसर दिन दूनो अखाड़ा में अयलन आउ बादसाह भी अप्पन सादी होवे के हाल कहलन । ओहनी फिन बतिअयलन कि हमनी के ससुरार चले के चाहीं । दूनो इयार ससुरारी चललन आउ चलइत-चलइत बादसाह अप्पन ससुरारी के गाँव में पहुँचलन तो उहाँ एगो फुलवाड़ी में घुसलन । उहाँ देखलन कि एगो लड़की बीच फुलवाड़ी के पक्का इनार पर नेहइत हे । बादसाह वजीर से पूछलन कि "हम ओकरा से सवाल-जवाब करे ला चाहइत ही ।" वजीर कहलन कि "ई ठीक नऽ हे । कहीं गारी-उरी दे देलक तो अचछा नऽ होयत ।" तइयो बादसाह एगो सवाल करिए देलन -

किया रे हवऽ प्यारी माथे रे मइसनवा जी,
किया हवऽ केस झाड़ऽरन जी ?
किया जे हवऽ प्यारी पानी भरनवा जी,
किया हवऽ लाऽमी डोर जी ?

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Friday, March 14, 2008

5.10 बेटा चार आउ हिस्सा तीन

[ कहताहर - देवनन्दन सिंह, मो॰ - चिलोरा, पो॰ - मखदुमपुर, जिला - गया]

एगो राजा हले । ओकरा चार गो बेटा हले । कुछ दिना के बाद राजा मर गेल । तब चारो भाई सोचलन कि अब केकरा हीं केतना बाकी हे, केकरा केतना देबे के चाहीं ? ई सब तो हमनी के मालूम न हे । ई सब सोच के चारो भाई विचार कयलन कि बाकी खजाना देखे के चाहीं । जब बड़ा पुराना लिखा-पढ़ी ओला हिसाब-किताब निकालल गेल तो ओकरा में ओखनी के बाबू जी के लिखल हल कि 'बेटा चार आउ हिस्सा तीन' ! अब चारो बेटन कहलन कि "ए भाई, अब ऐसे न बनतउ । कोई अप्पन हिस्सा छोड़वे न करवे, आउ एकरा में लिखल हउ कि 'बेटा चार आउ हिस्सा तीन' । से चल केकरो से इंसाफ करा ले !" से चारो भइवन एगो महाजन ही इंसाफ करावे गेलन । उहाँ जा के अप्पन सब बात महाजन से कहलन । से महाजन कहलन कि "हम सब के इंसाफ करवे करऽ ही, तोरो कर देवो !" महाजन जी कहलन कि "ठहरऽ, नेहा-खाऽ, तऽ इंसाफ होतो !" ऊ अप्पन ेहरारू से कहलन कि "तूँ बढ़ियाँ भोजन बनावऽ । आउ रजवा के बेटा खाय अतउ तब कहिहें कि कौर उठावऽ जब कि अनचलावल बात आउ बिनसुनल खिस्सा कहऽ तब ! एक-एक कर सबसे एही बात पूछिहें ! से खाय ला तइयार हो गेल तो सहुअइनियाँ कहलक कि "ऐ बाबू, हमरा हीं एके गो छीपा हे, से पारा-पारी से खा लऽ !" पहिले बड़का भइवा खाय गेल आउ जइसहीं कौर उठौलक कि मेहररुआ आ पूछलक कि "ऐ बाबू, भात के कौर उठावऽ जबकि अनचलावल बात आउ बिनसुनल खिस्सा कह लऽ !" एतना सुन के ऊ सोचलक कि ई तो बड़ा भारी बात हे । बिनचलावल बात आउ बिनसुनल खिस्सा कइसे होयत ? से अच्छा हे कि न खाईं । ऊ उहाँ से बिन खयले उठ गेल । एही तरह मँझिला आउ सँझिला भइवन से पारा-पारी खाइत खानी पूछलक । ओहनी भी बिन खयले भात छोड़ के चल गेलन ।

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5.09 साँप आउ बेंग के इयारी

[ कहताहर - नन्दकिशोर सिंह, मो॰ - बरैल, पो॰ - वजीरगंज, जिला - गया]

एगो जंगल में बड़का गो पोखरा हल । पोखरवे के किनारे एगो झोड़ार में एगो बड़का गो साँप रहऽ हले । ऊ जब पलखत पावे तो बेंग के पकड़ लेवे आउ खा जाय । ई तरह ऊ ढेर दिना से अप्पन जिनगी बिता रहल हल । ओकरा जब बुढ१ारी आ गेल आउ तेजी से ओकर घूमना-फिरना बंद हो गेल तो ऊ बड़ा फेरा में पड़ल । ऊ सोचलक कि अब कइसे दिन कटत ? चले-फिरे के हूवा तो हे नऽ आउ बइठले-बइठले खाय ला कइसे जुमत । बाकि ऊ सँपवा हल बड़ी चलाँक । से एक दिन कइसहूँ गते-गते ससरइत-ससरइत पोखरा किनारे गेल आउ चुपचाप मन मारले बइठल हल ।ओकरा पर कीड़ा-पिल्लू चढ़ रहल हल बाकि ऊ सुगबुगायतो न हल । खाली टुकुर-टुकुर देखइत हल । ओकरा ई हाल देख के बेंगवन के राजा ओकरा से पूछलक - "आज तोर ई हाल काहे हो गेल हे ?" सँपवा तो पहिले कुछ बोलवे न करे आउ मरियल नियन चेहरा गिरवले जाय । बेंग राजा फिनो पूछलक कि हमर कि हमर राज में कोई दुखी-उदास न रह सके । इहाँ पानी में सब कोई उछले-कूदे हे । सँपवा बेंगवा के ई बात सुन के भीतरे प्रसन्न होयल । कहलक कि नदी में नेहायत खानी हम एगो बाबा जी के लइका के गोड़ में काट लेली हल, से ऊ मर गेल हल बाकि बाबा जी हमरा सराप दे देलन कि तू बेंग नियन एन्ने-ओन्ने उछिलल चलऽ हें आउ अदमी के जान ले लेहें । से जो बेंगवा के जब तक सौ बरस तक सेवा न करवे तब तक तोर उद्धार न होतउ । से का करीं, हम तो उनकर सराप से डर के तोहनी के सेवा में इहाँ आ गेली हे । तोहनी जे कहबय से आज से करम । बेंग राजा कहलक कि "तूँ तो बूढ़ा हो गेलऽ हे । तोरा से काम तो जादे बनतवऽ नऽ । से हमनी के लइकवन के खेलावल करऽ ।"

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5.08 गुनग्राही राजा

[ कहताहर - नरायण दास, मो॰-पो॰ - खटहन, जिला - गया]

एक दफे दूगो दोस्त बाहर चललन तो राह काटे ला एगो कथा सुरू कयलन । दूसरका दोस्त कहे लगल कि संसार में चार चीज सबसे बढ़ के हे । जल में गंगा, फल में आम, भोग में स्त्री-भोग आउ धन में लछमी । ई बतिआ एगो कपड़ा धोइत धोबिन सुनलक तो एहनी पर बिगड़ल आउ रोवे लगल । रोवाई सुन के कई लोग जुट गेलन आउ एहनी दूनो से पूछलन कि तोहनी का कह देलहीं कि ई रोवे लगलई । दूनो में से एगो कहलक कि हमनी कथा कहऽइत जाइत हली से सुन के ई गरिआवे लगल आउ रोवे लगल । तइयो लोग ओहनी के पकड़ के राजा के पास ले गेलन । धोबिनियाँ के भी बोलाहट भेल । ओकरा से पुछला पर धोबिनयाँ कहलक कि हमरा एहनी कुछो न कहलन हे बाकि एहनी के गलत कथा पर हमरा दुख होल हे । ओही ला हम रोइली आउ खिसिअइली हे । राजा फिनो कहलन कि "ओहनी के कथा में जे गलती हे से हमरा बतावऽ ।" तऽ धोबिनियाँ कहलक कि हमरा का इनाम मिलत ? राजा जवाब के बदला में आधा राज-पाट देवे ला कहलन । धोबिनियाँ कहलक कि जल में इनरा के जल बड़ा, फल में पुत्र-फल बड़ा, भोग में अन्न-भोग बड़ा आउ धन में विद्या-धन बड़ा हे । राजा ई उत्तर सुन के खुस होयलन आउ धोबिनियाँ के आधा राज-पाट इनाम में दे देलन । राजा जान गेलन कि धोबिनियाँ बुधवान हे । ई राज-पाट भी बढ़िया से चला लेत । खिस्सा खतम - पैसा हजम ।
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5.07 वजीर के बेटा

[ कहताहर - जगदीश प्रजापति, मो॰ - कचनामा, पो॰ - रामपुर, जिला - गया]

एगो सहर में एगो राजा आउ ओकर वजीर रहऽ हलन । राजा वजीर के बड़ी मानऽ हलन । साइत के बात हे कि दूनो के एके समय में बेटा जलम लेलक । राजा के दुख होयल कि हमरे साथे वजीरो के काहे बेटा जलम लेलक । से ओकरा मँगा के मरवा देलक । ओकरा बाद वजीर के जब-जब बेटा होवे तब-तब रजवा मरवा देवे । वजीर के अउरत एक दफे नइहर चल गेलन तो उहईं एगो बेटा जलम लेलक । एकरा न तो राजा जनलन आउ न वजीरे जनलन । ऊ लड़का मामुए ही रह के पोसाय लगल आउ बड़ा बुधगर निकलल ।

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5.06 खाना, हँसना आउ रोना

[ कहताहर - उमेश प्रसाद, मो॰ - धनगाँवा, पो॰ - बीजूबिगहा, जिला - नवादा]

एक ठो बटेर हलै आउ एक ठो सिआर हलै । दूनो में बड़ी दोस्ती हलै । एक दिन सिअरा कहलकै कि "ए यार जी, हमरा दही खाय के मन करऽ हको ।" तब बटेरवा कहलकै - "बेस ।" एक दिन तीन-चार ठो गोवारिन दही बेचे ला चलल आवऽ हलै से बटेरवा अगली खचीवा पर जा के बैठ गेलै । तब पिछली देखलकै आउ कहलक - "सखी बटेर ! सखी बटेर ! सखी बटेर ! बटेर हो !" से ऊ खचीवा रख के बटेरवा पकड़े लगलै । जब तक एने सिअरवा आके सभे दहिया खा के आउ मटकिया में हग-मूत के भाग गेलै । आ के ऊ सब देखऽ हे कि "ए सखी, ई तो सब हगल-मूतल हे ! अब की करऽ हऽ, से चलऽ अब !"

एक दिन फेर सिअरा कहलकै कि "ए यार जी, हमरा हँसे के मन करऽ हे !" तब बटेरवा कहलकै - बेस भाय । से एक दिन एक ठो सिपाही लाल मेरेठा बान्ह के दू-तीन ठो चौकीदार के साथ जा रहले हल लाठी ले के । सिपहिया आगे-आगे आउ चौकीदरवन पाछे-पाछे जा हलै । से बटेरवा जा के सिपहिया के मथवा पर बैठ गेलै । चौकीदरवा देख के कहलकै 'बटेर ! बटेर !' आउ एक लाठी सिपहिया के मथवा पर चला देलकै । सिपहिया के मथवा फट गेलै । तब सिअरा के हँसते-हँसते पेट फटे लगलै । सिपाही डागडर हीं गेलै ।

दोसरा दिना सिअरा बटेरवा से कहलकै कि "ए यार जी, अब काने के मन करऽ हो ।" बटेरवा कहलकै - बेस ! बटेरवा कहलकै कि तूँ हमरा से कुछ पाछे रहिहँऽ । सिअरा वैसहीं करलकै । एक दिन बटेरवा वैसन जगह गेलै कि जहाँ आठ-दस ठो कुत्ता के जमात हलै । वहैं पर बटेरवा उड़ के गेलै आउ पीछे से सिअरो गेलै । अब तो कुतवा झोल-झाल के खूब मारलकै आउ ओकर देहिया-उहिया नोच-नाँच के छोड़ देलकै । जब सिअरा लौट के अयलै तऽ बटेरवा कहलकै - "यार जि, तूँ तो कहली हल कि हमरा काने के मन करऽ हकौ तब कना देलियो । तूँ हमरा अब की कहऽ हें ? अब तूँ कानवें करमें !"

Wednesday, March 12, 2008

5.05 राजा के पहचान

[ कहताहर - उमेश प्रसाद, मो॰ - धनगाँवा, पो॰ - बीजूबिगहा, जिला - नवादा]

एक ठो राजा हलै । से अपन मंत्री आउ नोकर के साथे ले के सैर करे गेलै । घुमते-घुमते ऊ सब एक जंगल में पहुँचलै । हुआँ रजवा के बहुत जोर से पिआस लगलै । ऊ अपन नोकरवा से कहलकै कि पानी ला दे । वहैं पर एक ठो कुटिया हलै । ऊ कुटिया में एक ठो आन्हर साधु जी रहऽ हलै । नौकरवा ऊ कुटिया के सामने जा करके कहलकै - "अरे अन्हरा, तोरा पानी हो तऽ दे हमरा ।" तऽ सधुआ कहलकै कि "हम नीच नौकर के पानी ना देवो !" नौकरवा उहाँ से लौटलै आउ कहलकै रजवा से कि "अन्हरा बड़ी खच्चड़ हौ, से पनिया नञ देहौ ।" रजवा मंत्रिया से पानी ले आवे ला कहलकै । मंत्रियो अन्हरा के पास गेलै आउ सधुआ से कहलकै -"ए अन्धरा भैया, थोड़े सान पानी लाहीं तो ।" तब सधुआ मंत्री से कहलकै - "तू मंत्री हऽ सेकरा से की ? हम पनिया नञ देवो !" मंत्री भी खाली हाथ लौट गेलै । तब तेसर दफे रजवा खुद्दे वहाँ पहुँचलै आउ सधुआ से कहलकै - "ए महात्मा जी, हमरा बहुत जोर से पियास लगल हे । कृपा करके थोड़ा सिन पानी दऽ ।" सधुआ कहलकै -"राजा जी, बैठ जा, हम अभी तुरते पानी लावऽ हियो ।" रजवा कहलकै -"हम पनिया पीछे पीवो । पहिले किरपा करके ई बताहो कि तोहरा तो जना हको नऽ, तऽ तूँ कइसे जान गेलो कि हम राजा हीहे । आउ हमरा से पहिले अयलै से मंत्री हलै !" उ साधु जवाब देलकै कि "हम बोलिया से पहचानऽ हियो ! 'अरे' कहेवाला नोकर होवऽ हे आउ मंत्री के बोली नोकरे नियन होवऽ हे । राजा के बोली में आदर-भाव, सत्कार भरल रहऽ हे । से तूँ राजा बने के लायक हका । जे जेतना ऊँचा पद पर रहऽ हकै ओतने ओकर बोली में मिठास आउ नेवतई रहऽ हकै ।"

5.04 लतीफ मियाँ के होसियारी

[ कहताहर - रामविलास वर्मा, मो॰-पो॰ - बेलखरा, जिला - गया]

एगो राजा हलन । रात के समय में ऊ रोज अप्पन बस्ती में घूमऽ हलन । एक दफे एगो गरीब अदमी लतीफ मियाँ के दरवाजा पर ठहर गेलन । उनका एगो लड़की आउ मेहरारू हलन बाकि लड़किया दोसरा के साथे एक दिन निकल गेल हल । ऊ रात के लतीफ मियाँ अप्पन मेहरारू से बतिआइत हलन कि "जेकरा माल होवे ऊ धरती में गाड़ देवे न तो पढ़ावे-लिखावे में लगा देवे ।" जब लड़की दसेयान हो जाय तऽ ओके ओके मरद के साथ भेज देवे ।" राजा ई बात सुनलन आउ अप्पन मकान चल अयलन । राजा मियाँ जी के एगो हाथी पर सिपाही से बोलवौलन । आवते मियाँ जी राजा के पैर पर गिर गेलन तो राजा जी कहलन कि "डेराय के जरूरत न हे । हम जे पूछवऽ ओकर जवाब दिहँऽ ।" राजा जी पूछलन कि "तूँ आधा रात में का बतिआत हले ? सच-सच कह ।" तब लतीफ मियाँ कहलन कि "हम तो कुच्छो न बतियात हली । हम्मर एगो लड़की हले, से खराब काम करके दोसरा के साथे भाग गेलै । हर घड़ी मेहमान आवथ बाकि उनका लौटा देल जा हल । एकरे से हमर लड़की भाग गेलै । हम एही तो बातचीत करइत हली आउ कुच्छो न सरकार । आउ एक बात एहूँ कि "अप्पन माल गाड़ के रखे, फाजिल होवे तो पढ़ा-लिखा देवे । सेयान लड़की अप्पन घर चल जावे ।" एतना सुन के मियाँ जी के राजा जी पाँच बिगहा जमीन दे देलन आउ हाथी पर चढ़ा के घर लौटा देलन । मियाँ जी खुसी से अप्पन जागीर में रहे लगलन ।

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Sunday, March 9, 2008

5.03 बन्दर के चलाँकी

[ कहताहर - जद्दू मेहता, मो॰-पो॰ - बेलखरा, जिला - गया]

एगो नदी में मगर आउ किनारे पर एगो बन्दर रहऽ हल । दूनो में खूब दोस्ती हल । नदी पार जामुन फरल तो मगरवा अप्पन इयार से कहलक कि "इयार हम्मर पीठ पर चढ़ के नदी पार हो जा आउ जामुन तोड़ के खिलावऽ ?" मगर पानी से ऊपरे छहला गेल आउ बानर ओकर पीठ पर बइठ के नदी पार हो गेल । जामुन तोड़ के ऊ इयरवा ला गिरावे लगल आउ अपने भी खाये लगल । दूनो रोज अइसहीं जाथ आउ जामुन खाथ ।

एक दिन मगरवा के मेहररुआ कहलककि "हमरा बानर के करेजा खाय के मन करइत हे । से ऊ बनरा के करेजवा ले आवऽ ।" मगर कहलक कि ऊ हमर इयार हे, ओकर करेजा कइसे काढ़व ?" एकरा पर मेहररुआ जिद्द रोप देलक आउ अन्न-पानी सब तेयाग देलक । तब मगरवा लचार होके कहलक कि ओकर करेजा कइसे काढ़ब ? मेहररुआ कहकई कि "जब नदिया पार करे लगिहँऽ तो नीचे बइठ जइहँऽ । ऊ डूब के मर जतवऽ आउ हम ओकर करेजा निकाल के खा जायम ।" तब मगर बंदर के पास आयल आउ आन के जामुन तोड़े ला कहलक । बंदर ओकर पीठ पर बइठ के नदी पार होवे लगल । बीच नदी में गेल तो बोलल कि "इयार, हमरा बानर के करेजा चाहीं ।" तब बनरा कहलक कि "हम तऽ अपन करेजवा जमुनवें के पेड़वा पर रख देली हे । चल के दे देबवऽ ।" मगर ई सुन के बनरा के नदी पार करा देलक । बनरा उछिल के पेड़ पर चल गेल । मगरवा करेजा माँगलक तो बनरा कहलक कि "करेजा भी कहीं देह से बाहर रहऽ हे ?"

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5.02 कउआ, ऊँट आउ सियार

[ कहताहर - अवनीन्द्रनाथ, मो॰-पो॰ - बेलखरा, जिला - गया]

एगो नदी किनारे पेड़ पर एगो कउवा रहऽ हल । ओकरे नीचे एगो ऊँट रहऽ हल । दूनो में इयारी हो गेल । दिन भर ऊँट आउ कउवा कहीं रहऽ हलन बाकी रात में आन के एके साथ रहथ । दूनो अप्पन दिन भर के दुख-सुख बतिआथ । एक दिन कउवा कहीं दूर घूमे चल गेल तो पेड़ तर एगो सिआर आयल । ऊ सिआर ऊँटवा से बतिआय लगल आउ दोस्त बना लेलक । तऽ सिआर कहलक कि नदी पार एगो खेत में ककरी फरल हे । उहाँ चलऽ तऽ हमनी खूब ककरी खाईं । ऊँटवा तइयार हो गेल । नदी पार करे के बेरा भेल तऽ सिअरवा कहलक कि हम कइसे पार करीं । ऊँटवा कहलक कि तूँ हमर पीठ पर बइठ जा । सिअरवा बइठ गेल आउ दूनो नदी पार कर गेलन । जाके खूब ककरी खयलक आउ ओइसहीं दूनो लौट गेलन । रात के कउवा पहुँचल तऽ ऊँटवा आज के सब हाल कहलक । कउवा कहलक कि "कउनो अनजान से तुरते इयारी न कर लेवे के चाहीं । ऊ कइसन हे ? काहे ला इयारी कयलक हे ? जब तक न समझ लेल जाय तब तक केकरो पर तुरते विसवास न करे के चाहीं ।" कहके दोसर दिन कउवा फिर घूमे चल गेल तो सिअरवा फिनो ओइसहीं फूट खाय ला ऊ पार गेलक आउ खाके लौट गेलक । ई तरी ओहनी रोज नदी पार जाय लगलन आउ फूट खाय लगलन ।

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5.01 खोपड़ी के मोल

[ कहताहर - डॉ॰ रामनन्दन, पूर्व प्राध्यापक, भूगोल विभाग, पटना कॉलेज, पटना]

एगो राजा हलन । उनकर दरबार में बड़ा-बड़ा विदवान अदमी रहऽ हलन । एक दिन उनकर दरबार लगल हल कि एक-ब-एक छत पार फार के एगो भूत बीचे दरबार में आ गेल । ऊ अप्पन हाथ में एगो खोपड़ी लेले हल । ओकरा देख के सब दरबारी काँप उठलन । ऊ राजा के तरफ खोपड़ी देखा के बोलल - "बोल ई खोपड़ी के मोल, न तो दरबार सहिते सभे के चबेनी बना के चिबा जबउ ।" ई बात सुन के सब थरथर काँपे लगलन । ऊ भुतवा कहलक कि चाबीसवाँ दिन एकर जवाब न देवें तो सभे के खा जवउ । ई कह के भुतवा हहास कर के चल गेल । दरबार में तो खलबली मच गेल । सब्भे दरबारी कुछो जवाब न मिले से तबाह हो गेलन । ओकरा में एगो लम्बोदर पंडित हलन । ऊ घरे आन के अप्पन मेहरारू से पूछलन त कुछो जवाब न मिलल । ऊ कहलन कि हम एकर जवाब खोजे बाहर जयवो ।

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Saturday, March 8, 2008

4.33 पनिहारिन आउ राजा

[ कहताहर - अयोध्या सिंह, मो॰-पो॰ - बेलखरा, जिला - जहानाबाद]

दही के दलदल, मक्खन के पहाड़ ।
मच्छड़ ने मारी लात, टूट गया सहर गुजरात ।।
बात है सो मीठी, कथा है सो झूठी ।
कहनेवाला झूठा, सुननेवाला सच्चा ।।

एक गाँव में चार गो इयार हलन । चारो इयार नोकरी करे चललन । जाइत-जाइत कुछ दूर गेलन तऽ एगो कुआँ मिलल । ओहईं पर एगो पेड़ हल । ओकरे तर चारो इयार जाके बइठलन । ओहे कुआँ पर एगो पनिहारिन पानी भरे आयल हल तो एगो इयार उठ के कुआँ पर गेलन आउ कहलन क "ए बहिन, हमरा पानी पिया दऽ ।" पनिहारिन पूछलक कि "तूँ कउन हऽ ?" तऽ ऊ बतवलन कि "हम पहलवान ही ।" पनिहारिन कहलक कि "तूँ कउन पहलवान हऽ ?" दुनियाँ में दूए गो पहलवान हे - एकर मरम बताय दऽ तो हम पानी पिलायम ।" तऽ ऊ कहलक कि एकर मरम हम जानवे नऽ करऽ ही । तऽ कुआँ पर से ऊ पिआसे चल अयलन । तीनो इयार पूछलन कि काहे बिना पानी पीले घूम गेलऽ । तऽ ऊ उहाँ के सब बात कह सुनौलन । तऽ दोसर इयार कुआँ पर गेलन । ऊ पानी पीये ला पनिहारिन से माँगलन तो ऊ कहलकइ कि तूँ कउन हऽ ? ऊ कहलन कि हम रहगीर ही । पनिहारिन कहलक कि "दुनियाँ में दूए गो रहगीर हे । तू ओकरा में कउन हऽ ? एकर मरम बतइवऽ तो पानी पिलायम नऽ तो नऽ पिलायम ।" ऊ कहलक कि एकर मरम हम जानवे नऽ करऽ ही । ओहू कुआँ पर से इयारन के पास आन के सब कथा सुनौलन । तब तेसरका इयार कहलन कि "हटऽ-हटऽ, तोहनी सब नऽ बतलयलें, तो हम जाके बता देम ।" ऊ भी कुआँ पर गेलन आउ पानी पीये ला माँगलन । पनिहारिन कहलक कि "तूँ कउन हऽ कि तोरा पानी पिला दियो ?" ऊ कहलक कि "हम गरीब ही ।" पनिहारिन कहलक कि "दुनियाँ में दूए गो गरीब हे । तूँ ओकरा में से कउन गरीब हऽ ? बता दऽ तो पानी पिला देबवऽ नऽ तो नऽ ।" ओहू हुआँ से पिआसे चल आयल । तब चउथा इयार भी कुआँ पर गेल । ओकरो से पनिहारिन पूछलक कि तूँ कउन हऽ ? ऊ कहलक कि "हम बुरबक ही ।" पनिहारिन कहलक कि "दुनियाँ में दूए गो बुरबक हे । तूँ ओकरा में कउन बुरबक हऽ ? एकर मरम बतावऽ तो पानी पिलबवऽ नऽ तो नऽ ।" ओहू कहलक कि हम एकर मरम न जानऽ ही । पनिहारिन पानी भर के अपन घरे चल गेल ।

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4.32 काको बहिन

[ कहताहर - रमुनी देवी, मो॰-पो॰ - कचनामा, जिला - जहानाबाद]

एगो गाँव में चार भाई रहऽ हलन । उनकर एगो काको बहिन हल जे हरमेसे ससुरार रह़ऽ हलन । एक रोज काको अपने नइहर आवइत हलन । भइवन बघारे में देखलन बाकि चीन्हलन नऽ । गाँव के लइकन देखलन तो उनकर घरे आन के कहलन कि ककोइया बहिनी आवइत हथुन । तब उनकर भउजाई एक सूप खँखरी पसार देलन । जब काको दुहारी पर पहुँचलन तो भउजाई बोललन -
सुखूँ-सुखूँ खखरी । ननद अइहें भुखरी ।।
न सुखिहें खखरी । ननद जइहें भुखरी ।।

एतना सुनके काको सोचलन कि पहिलहीं तो भउजाई अइसे बोलइत हे तब घरे कउची जाईं ? तुरते दूरे पर से ऊ लौट गेलन आउ नगरी में आन के खेसारी के साग खयलन । उनका भाई देखलन बाकि न चीन्हलन तो काको बहिनी बोललन -
बाप-भाई हीं अयली । साग खोंट खयली ।।

ए धरती माता, तू खूब फाट के उपजिहँऽ तब फिर फिर हम अप्पन नइहर आयम । एकरा सुने पर भइवन के दया आ गेल आउ पूछलन कि तोर घर कहाँ हउ मइयाँ ? तब ऊ बोलल कि हम तोहनी के बहिनी न हिअउ ? तब भइवन चीन्हलन आउ घरे चले कहलन तो काको बहिनी कहलन कि "अजवने नऽ भउजाई खखरी देखा के हाथ चमका-चमका के कहलथुन हे -
सुखूँ-सुखूँ खखरी । ननद अइहें भुखरी ।।
न सुखिहें खखरी । ननद जइहें भुखरी ।।

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4.31 कउवाहँकनी रानी

[ कहताहर - रमुनी देवी, मो॰-पो॰ - कचनामा, जिला - जहानाबाद]

एगो राजा के सात गो रानि हलन । सातो रानी से एको बाल-बच्चा न हल । एक दिन एगो साधु राजा के बतौलक कि सात आमओला घउद के दहिना हाथे झबदा से मार के बायाँ हाथे लोक लीहँऽ । आन के सब रानी के एकह गो आम खाय ला दीहँऽ । राजा साधु के कहला मोताबिक कैलन आउ बड़की रानी के सातो आम देके कहलन कि सबहे एकह गो खा लीहँऽ । सबहे रानी एकह गो आम खा लेलन बाकि छोटकी काम में बझल हलन से न खा सकलन । एकर हिस्सा भी ओहनीये सब खाके आँठी कोठी पर रख देलन । जब छोटकी रानी अयलन तो पूछलन कि का तो राजा जी आम खाय लागी लवले हथ ? सबहे रानी कहलन कि उका तोर कोठी पर रखल हउ । जा के देखलन तो खाली आँठी रखल हे । बेचारी ओही आँठी के चाट-चूट के फेंक देलन । सबहे के गरभ न रहल आउ छोटकी के गरभ रह गेल । छोटकी रानी से सबे बड़की बड़ी डाह करऽ हलन । सब मिल के ओकरा से कुटिया-पीसिया करावऽ हलन । बेचारी दिनभर धान पसार के कउवा उड़ावइत रहऽ हलन से ओकर नाम 'कउवाहँकनी' हो गेल हल । 'कउवाहँकनी' रानी घरे सब सुक्खल धान ले आवऽ हल आउ कूटऽ हल । अइसहीं ओकर दिन बीत रहल हल ।

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4.30 पिताभक्त राजकुमार

[ कहताहर - सूर्यदेव सिंह, ग्राम - दनई, पो॰ - जाखिम, जिला - औरंगाबाद]

एगो राजा हलन । उनका एगो बेटा हल । कुछ दिन के बाद राजा के अउरत मर गेलन । राजा फिन अपन सादी करे ला बेटा से पूछलन तो ऊ कहलक कि "एकरा में हमरा का उजूर हे ? दूसर माय आवत तो हमनी सबहे के आराम होयत ।" से बेटा राय दे देलक ।

एकरा बाद राजा के बिआह के तइयारी हो गेल । चट मँड़वा, पट भतवान । राजकुमार सपना देखलक कि बापजान के तीन गो बड़ी भारी गरह हे । अगर ई तीनो गरह से बच जयतन तो फिनो कुछ न होयत - (1) बराती जलमासा लगत तो आँधी-पानी आवत आउ पेड़-बगाद गिर के सब बराती सहित बापजान मर जयतन (2) बराती दरवाजा लगत तो किला के ढह जाय से राजा मर जयतन आउ (3) राजा ई सब से बच जयतन तो कोहवर में आधा रात में बड़ेरी से साँप लटक के काट देत आउ राजा मर जयतन । ई तीनो गरह से बच गेला पर राजा के कुछो न होयत । लड़का सोचलक कि बापजान के जाने भी न देईं आउ उनकर परान भी बचा लेईं ।


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4.29 अरुना बहिन (कथा 4.08 के रूपांतर)

[ कहताहर - बृजा कुमारी, ग्राम - दनई, पो॰ - जाखिम, जिला - औरंगाबाद]

एगो हलन राजा । उनखा सात गो बेटा हलन । सातो बेटा के बिआह हो गेल हल । कुछ दिना के बाद सातो परदेस चल गेलन । ओहनी के एके गो बहिन हल । ओकरो बिआह होयल हल । बाकि ऊ अरुना बहिना के गौना न भेल हल से ऊ भउजाई के साथे रहऽ हल । एक दिन ओकर बड़की भउजाई कहलक कि "ए अरुना, जा, बिना ढेंकी के धान कूट लावऽ ।" अरुना धान लेके टाँड़ी पर चल गेल । उहाँ जाके ऊ जार-बेजार रोवे लगल । ओकर रोआई सुन के एगो चिरई आयल आउ पूछलक कि "काहे ला रोइत हऽ अरुना ?" तब एकरे पर अरुना कहलक कि "हमर भउजाई बिना ढेंकी के धान कूट के ले आवे ला कहलन हे । सबहे बात सुन के ढेर मानी चिरई जौर भेलन आउ तुरते ओकर सब धान निखोर देलन । सबके मेंठ चिरई कहलक कि "कोई एक चाउर भी न खइहें ।"

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4.28 एगो ब्राह्मण के खिस्सा (कथा 4.11 के रूपांतर)

[ कहताहर - जितेन्द्र प्रसाद, ग्राम - बिजूबिगहा, जिला - नवादा]

कोय गाँव में एगो ब्राह्मण हलै । ओकरा एकी गो बेटा हलै । कुछ दिन में बप्पा मर गेलै । ओकर बेटवा काम-किरिया कर के निफिकिर भेलै । कुछ दिन के बाद माय-बेटा में झगड़ा होलै । तब बेटवा रूस करके भाग के जाय लगलै । केतनो समझावे से नै मानलै । भागते-भागते रस्तवा में एगो बूढ़ा मिललै । बुढ़वा कहलथिन जे "तूँ काहे ला भागल जा हें ? तोरा जे जजमनिका हौ से के सम्हालतौ ?" त ऊ कहलकै कि हम जजमनिका नै सम्हारवै । हमरा पढ़े के मन करऽ है ।" तब बुढ़वा कहलथिन कि "तूँ अप्पन जात से हीं पढ़िहें, चाहे कोई कुछ कहौ ।" ऊ तीन-चार पाठशाला में पूछलकै तो ओकर जाति के नै मिललै । ओकर सादी होयल हलै । ऊ घूमते-घामते अप्पन ससुरार चल गेलै । ओकर ससुर पढ़ावऽ हलथिन तो पूछलकै कि इहाँ कउन जात पढ़ावऽ हथिन ? सब कहलकै कि इहाँ ब्राह्मण पढ़ावऽ हथिन । तब पूछलकै कि "ए भाय, इहाँ हमहुँ पढ़वै । से गुरुजी पढ़ौथिन ?" तब पूछे पर पता चललै कि गुरु जी पढ़ौथिन । ऊ तैहिना से उहाँ पढ़े लगलै । ओहीं से ओकरा खाय ला आवऽ हलै बाकि उहाँ ऊ लड़कावा केकरौ नै चीन्हलै, आउ ओकर ससुररिया के सभे परिवार ओकरा चीन्हऽ हलै । ओही पठसलवा में एगो राजा के लड़का भी पढ़ऽ हलै । ऊ राजकुमार एक दिन खाना खाते देखलकै कि गुरु जी के लड़किया बड़ा बढ़िया है । से ऊ ओकरा से सादी करे ला सोचलकै आउ अपन माय-बाप से सब कहानी कह देलकै । ओकर बाप गुरु जी के अप्पन बेटिया से ओकर सादी ला कहलकै तो ऊ मंजूर कर लेलथिन । तब उनकर बेटिया कहलकै कि "हमरा घर से लेके अपन घर तक सोना के रास्ता बना दऽ आउ तालाब के बीच में एगो 'कपड़-घर' बना दऽ तब हम सादी करवै । राजा सब कुछ तइयार कर देलकै ।
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4.27 बदला

[ कहताहर - द्वारिका प्रसाद सिंह, ग्राम - जईबिगहा, पो॰ - मखदुमपुर, जिला - जहानाबाद]

एगो गाँव में साँचू आउ पाँचू नाम के दूगो भाई हलन । साँचू बड़ आउ पाँचू छोट हल । साँचू लइकाइये से पढ़े में मेहनती आउ काम में ध्यान दे हल । बाकि पाँचू छोटही से खेलाड़ी आउ पढ़े में ध्यान न दे हल, जेकरा से ऊ बेकूफ रह गेल बाकि खेती के काम में खूब मन लगावऽ हल । सेयान होयला पर पाँचू खेती के काम करे लगल आउ साँचू बाहर के अकिलगर काम करे लगल । साँचू बाहर काम से जाय तो धोती, कुर्ता, टोपी पेन्ह ले । ऊ सबेरे भोजन कर ले हल । पाँू खेत के काम में लगल रहे तो ओकर सतुओ पर गुजारा करे पड़े । साँचू केर धोती, कुर्ता आउ गमछी बहुत रहे । ई सब देख के पाँचू के अउरत बड़ी कुढ़े । सोचे कि हमर मरदनवाँ दिन भर हाड़ तोड़ के कमा हे, आउ खाहु के ठेकाना नऽ रहे हे । बड़का भाई दिन भर एन्ने-ओन्ने रहऽ हे तइयो बढ़िया-बढ़िया पेन्हऽ हे आउ खा हे । पाँचू के मेहरारू पाँचू के खूब बहकौलक - "तूहीं काहे नऽ बाहर के काम करऽ हऽ ? तोहरे का सब काम करे के ठीका हवऽ ?" पाँचू के भी ई बात ठीक बुझायल ।

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Friday, March 7, 2008

4.26 मुरुख पाँड़े के ढोंग

[ कहताहर - मदन, मो॰-पो॰ - चतरा, जिला - चतरा]

एगो बाबा जी के एके गो लड़का हलन । से बाबाजी अपन लइका के पढ़े ला कासी जी भेजलन । उहाँ ऊ केतनो पढ़थ बाकि कोई बात उनकर मगज में घुसवे न करे । केतनो पढ़े के कोरसिस कैलन बाकि ऊ कुछो न पढ़ सकलन तो एक रोज कासी छोड़ के घरे चल अयलन । रस्ता में एगो कुआँ पर पनिहारिन मिललन । पाड़े जी उहाँ पानी पीये गेलन तो पनिहरनियन पूछलथिन कि तू कहाँ से आवइत हऽ आउ कहाँ जइवऽ ? पाँड़े जी कहलन कि "हम कासी जी पढ़े गेली हल । कई बच्छर उहाँ रहली बाकि कुछो न सिखली । से घरे घूरल जाइत ही ।" ओहनी कहलथिन कि हमनी के डोरी पेटारी के हे बाकि एकरे रग्गड़ से कुआँ के पक्का खिया गेल हे । अइसहीं तू रग्गड़ करऽ तो विद्या सीख जयवऽ । पाँड़े जी सोचलन कि रग्गड़ करे से का न आ जा हे ? अगम विद्या भी अदमी अइसहीं न सीख जा हे ।

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4.25 छोटका भाई आउ छोटकी बहिन

[ कहताहर - नन्हें, ग्राम-पो॰ - बेलखरा, जिला - जहानाबाद]

एगो हलन राजा जी । उनका छव गो बेटा आउ एगो बेटी हलन । पाँच बेटन के सादी हो गेल हल, छोटका बेटा कुँआर हल । से ऊ एक रोज नदी किनारे घूमे गेल आउ ओने से एगो भिरंगी के झाड़ी उखाड़ले आयल आउ कोठी पर रख देलक । अप्पन एगो भउजाई से ऊ कह देलक कि जे ई भिरंगी खा जायत हम ओकरे से बिआह करम । उनकर बहिन भउजाई से पूछलन कि "ई केकर भिरंगी रखल हे ? से हम खा जाइत ही !" तबे भउजाई कह देलक कि जाऽ, खा जा गन ।" ऊ भिरंगी खा गेल । छोटका देखलक कि भिरंगी न हे तो ऊ सब से पूछलक कि भिरंगी का भेल ? सब कहलकथिन कि माँई खा गेलथुन । तब छोटका बेटा कहलक कि "मइया कने गेलउ, हम ओकरे से सादी करम !" तब बहिनिया अँखरे दउरी ले के एगो ऊ ताड़ पर चढ़ गेल । पहिले से ताड़ पर एगो सिआर आउ नेउर रहऽ हल ।

लड़की के माय ताड़ भिरू गेल आउ कहलक -
"उतरूँ-उतरूँ बेटिया गे, तब हलहुँ बेटिया, अब होलहुँ पुतहु हमार ।"

फिन बेटिया तड़वे पर से बोलल -
"कइसे उतरूँ मइया गे, तब हलहुँ मइया, अब भेलहुँ ससुई हमार ।"

तब भउजइअन जा के कहलन -
"उतरूँ-उतरूँ ननदी हे, तब हलहुँ ननदी, अब होलहु गोतनी हमार !"

फिनो ननद ताड़े पर से बोलल -
कइसे उतरूँ भउजी हे, तब हलहूँ भउजी, अब होलहुँ गोतनी हमार !"

ई तरी सब भउजाई आउ भाई कहलन बाकि छोटकी बहिन ताड़ पर से न उतरल । हार के सब कोई उहाँ से लौट गेलन । एक रोज ओही ताड़ तर से राजा के बड़का गो बरियाती गुजरइत हल । तब तड़वे पर से नेउरिया बोलल - "बर-बरिआत, छर-छरियात, पर-परियात ।" तब सिअरवा कहलक कि "चल के देखे के चाहीं ।" नेउरिया उहाँ से गते उतर गेल । फिन सिअरो धड़ाम से कूद गेल । एकरा बाद लड़कियो कूदल आउ ओहिजे ओकर परान छूट गेल ।

4.24 मसमात के लचारी

[ कहताहर - बच्चू सिंह की पत्नी, ग्राम - बलुआपर, पो॰ - गया, जिला - गया]

एगो ढेर दिन से मसमात हल । एक दफे भगवान जी (जमींदार जी) के लड़का के सादी होइत हल । तब गोहुम पीसे ला घरे-घर बाँटल जाइत हल । भगवान जी मसमात के दू पसेरी गोहुम देलन आउ सब के पीसे ला एकेक पसेरी गोहुम देलन । सब कोई एक-एक पसेरी गोहुम पीस-पास के दे देलन । मसमात अभी गोहुम पीस के न देलक हल काहे से कि ओकरा हीं घामा न उगल हल । तब सब लोग सलाह देलथिन कि कहऽ - "हमरा हीं घामा उगे भगवान, हम तोरा कुछ देबवऊ ।" ऊ अइसहीं कहलक आउ घामा उग गेल । ऊ आँटा पीस के भगवान जी हीं दे देलक । दोसर दिन भगवान जी ओकरा हीं गेलथिन । तब मसमात कहलक कि दोसर दिन आवऽ, आज लीपल-पोतल नऽ हे । दोसर दिन घर लीप-पोत के मसमात दूसर अदमी हीं चल गेल । एतने में भगवान जी ओकर घरे गेलन आउ मसमात के उहाँ न देखलन । तब भगवान जी खिसिया गेलन आउ ओकर कोना में मूत देलन । उहाँ कुचकुच हरिअर गेन्हारी साग जम गेल ।

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4.23 मेहरारू के करमात

[ कहताहर - संजू कुमारी, मो॰ - अकलबिगहा, पो॰ - बेलागंज, जिला - जहानाबाद]

एगो अहीर हल । ओकर एक्के गो बेटा हल आउ बाकि अप्पन मेहरारू हल, आउ कोई न हल । ओकरा एगो गाय भी हल । अहिरा खूब कमा हल आउ मेहरारू-बेटा के खिआवऽ हल । मेहररुआ बड़ खचरी हल से ऊ भात बनावऽ हल तो ओकरे में खूब दूध डाल दे हल आउ खीर बना के खा जा हल । मरदनवा के ऊ सतुआ-मिचाई खिया दे हल आउ कहऽ हल कि "हम दूध में के खीर खाके मरीं चाहे जीईं । तू तो सतुआ, नोन आउ मिचाई ठाट से खा हऽ नऽ !" मेहररुआ धान कूट के एक कोठी में चाउर रखले हल आउ दोसर में भूँसा भरले हल । सब चाउर के जब ऊ खीर बना के खा गेल तो मरदाना से पतिआयओला उपाय कैलक । से ऊ एक रात के अप्पन माथा पर खपड़ी रख लेलक, हाथ में एगो छड़ी ले लेलक आउ जा के मरदनवाँ भिरू कहे लगल कि "तू कउन हे ?" मरदनवा देख के बड़ी डेरायल । पूछलक कि "अपने के ही ?" ऊ बड़ी गोड़-हाथ परे लगल आउ घिघिआय लगल कि "अपने देव ही कि पितर ही, घरे के ही कि बाहर के ही ?" तब खपड़ी ओढ़ले मेहररुआ कहलक कि "हम न देव ही, न पितर ही, न घरे के ही, न बाहर के ही । हम देवी चंडुका ही । बोल, तोरा खइअऊ कि तोर मेहररुआ के, कि तोर बेटा के खइअऊ कि भर कोठी चाउर भूसा कर दिअऊ ?" से अहिरा सोचलक कि केकरो खा जायत तो कोई आवत नऽ बाकि धान तो फिनो कमा लेव । से अहिरा कहलक कि "हे देवी चंडुका, हमनी के काहे ला खयवे, अपने सब धान के भूँसा कर देईं । मेहररुआ कहलक कि "जो, ओइसने हो जयतउ ।" आउ ऊ अन्ह (गायब) हो गेल । बिहने भेला मरदा मेहररुआ से कहलक कि जा के देख तो कोठिया के धनवाँ । मेहररुआ झूठो जा के कोठी के देखलक आउ रोवे लगल बाकि भीतरे-भीतरे अपन करमात पर खूब हँस रहल हल ।

4.22 साधु के दसा

[ कहताहर - नन्हें, ग्राम-पो॰ - बेलखरा, जिला - जहानाबाद]

एगो हलन साधु जी । उनकरा बड़ी संगी-साथी आवऽ हलन । उनकर मेहररुआ बड़ी खिसिया हल । रोज-रोज साधु जी एगो-दूगो के खियावऽ हलन । सेही गुने साधु के मेहररुआ बड़ी रंज होवऽ हल । मेहररुआ बड़ी बदमास हल । एक दिन साधु के हिआँ सोरह गो साधु आ गेलन । साधु जी ऊ सब सधुअन के खिलावे ला उपाय रचलन आउ कहलन कि तोर सब भाई आयल हथुन । जल्दी से खाय ला बनावऽ । तब सधुआइन तुरते खाय ला बनौलन आउ अपन भाई जान के सब के नस्ता करौलन । फिन सधुआइन खाना बनौलन - सोरहो प्रकार के तरकारी आउ बासमती के भात आउ रहर के दाल । सधुआइन साधु से कहलन कि कोई भाई अभी भेंट करे न आयल से एकाध गो के भेंट करे ला भेज दऽ । साधु जी कहलन कि एती घड़ी रात में भाई से भेंट करे लगवऽ तो गाँव के लोग कहतथुन कि ई रात में के तो काहे ला रोइत हे । से सधुआइन कहलन कि अन्हारहीं भेंट करब ।

अब साधु लोग के बीज्जे कराके खिआवल जाइत हल तब सधुआइन दुआरी से मुँह निकाल के देखलन तो सोरह गो जटाओला साधु खा रहल हे । जटा देख के सधुआइन के लहर तरवा से कपार पर चढ़ गेल । ऊ खूब गारी बके लगलन - "चाहे खाय खो चाह गाय खो ।" तब सधुअन कहलन कि "गाय खो केकरा कहइत हथ ?" तब साधु जी कहलन कि "तोहनी के न कहइत हे, ओकर नइहर के घोड़जई सब गाय खा गेलई हे ।" फिन साधु जी कहलन कि अपने लोग जल्दी-जल्दी खा के जाऊँ । सब साधु जल्दी-जल्दी खा के भागलन । साधु जी के सधुआइन खूब जरल-भुनल सुनौलन आउ कहलन कि एही का तो हम्मर भाई हलन । ऊ दिन खीस में सधुआइन साधु जी के झड़ुआहु दिलन ।

4.21 तोतराह बेटा

[ कहताहर - धर्मेन्द्रनाथ, मो॰ - मगहीलोक, पो॰ - बेलागंज, जिला - गया]

एगो गिरहथ के चार गो बेटा हल । एहनी तोतराह बोलऽ हलन । से ओकरा सादी करे ला जेतना अगुआ आवथ ऊ सब घुर जाथ । गिरहथवा सोच में पड़ गेल कि एहनी के कइसे बिआह होयत । अगुअवन के सामने लइकवन कुछ बोल देवे आउ ओहनी तोतराहा समझके भाग जाथ । एक दिन ऊ अपन बेटवन के समझौलक कि जब अगुअवन अयथुन तऽ तोहनी कुच्छो बोलवे न करिहें । केतनो पूछथुन तइयो न बोलिहें । कुछ दिना के बाद ओहिनी के सादी ला फिनो अगुअवन अयलन । लइकवन के देखे ला बोलावल गेल । ओहनी के कुछ पूछल जाय तऽ कुच्छो बोलवे न करे । अगुअवन समझलन कि लइकवन गूँग हे । तऽ बप्पा कहलक कि एहनी बोलऽ हे तो आँधी आ जा हे । घर में रोज महाभारते होल रहऽ हे । ई घड़ी खाली अपने से सरमाइत हे । सास-ससुर के सामने सरमाय के ही तो मोल हे । अगुअवन समझलन कि लइकन खूब सुसील हे । इनकरे से हम अप्पन बेटिअन के सादी कर दीहीं, तो बड़ा अच्छा होयत । से ऊ लइकवन के पसंद कर लेलन । खाय-पीये (ला) बने लगल । खूब खातिर-बात होवे लगल ।

लइकवन के मइया बजका बनावे लगल । अप्पन बेटवन के ऊ बइगन लावे ला कहलक तो ओहनी दूरा के सामनहीं बइगन के खेत में चल गेल । अगुअवन ओहिजे कुआँ पर नेहाइत हलन । लइकवन बइगन तोड़इत हलन कि एगो चूहा के बच्चा निकल के भागल । बड़का बोलल - "अले तुतली, तुतली, तुतली ।" मँझिला कहलक - "तहाँ, तहाँ, तहाँ ?" ई सुन के सँझिला डाँटकई - "मइया ता कहलकियो हल ?" अंत में छोटका जोर से कहलक कि "हम तो तु्प्पे-तुप्प ।" एहनी सन के ई तरह से बतियते सुन के अगुअवन तो दंग रह गेलन । उनकर बोली सुन के ऊ जान गेलन कि लइकन काहे न बोलइत हलन । अब तो ऊ खाय-पीये ला भी न चाहलन । नेहा के अप्पन छड़ी-छाता माँगलन आउ घर के रस्ता नापलन ।

4.20 स्वार्थी पड़िआइन

[ कहताहर - नन्हें, ग्राम-पो॰ - बेलखरा, जिला - जहानाबाद]

एगो पंडित जी हलन आउ एगो पड़िआइन जी । एक दिन पड़िआइन कहलन कि "ए पंडी जी, तू मर जयवऽ तऽ हम बड़ी रोववऽ । हमरा रहल न जायत । तोहर जिनगी में हम कुछो न खैली !" तब पंडी जी कहलन कि कुछो न खैलऽ ? पड़िआइन, लावऽ तो झोला, हम माँग के ले आईं ।" तुरते पंडी जी खीर बनावे के सब समान लेके अयलन । पड़िआइन जी भी खीर बना के रख देलन । पंडी जी कस के सूत रहलन तो पड़िआइन उठावे गेलन तइयो ऊ न उठलन आउ मरल अइसन कर देलन । तब पड़िआइन जी कहऽ हथ कि पंडितवा मर गेल । तब पड़िआइन जी सोचलन कि हल्ला करऽ ही तो सब खीर बिगा जायत । ई से ऊ सपासप खीर खाय लगलन आउ कहलन कि "सइयाँ रे गुर सइयाँ, खीर सपासप खइयाँ ।" सब खीर पड़िआइन जी खा गेलन आउ जाके गाँवओलन के बोला अयलन कि पंडी जी मर गेलन हे । पंडित जी एतना मोट हलन कि दुआरी में अँटवे न करथ । तब सब कोई कहे कि दुआरी ढाह दऽ बाकि पड़िआइन जी कहलन कि अब तो पंडी जी मरिये गेलन । अब का होत ? से इनकरे काट के दुअरिया पार कर देहूँ । बाकि कोई काटे ला तइयार न भेल तब पड़िआइने जी पंडी जी के काटे ला तइयार भे गेलन । पंडी जी ओतिये घड़ी उठलन आउ पड़िआइन जी के मार के गड़हरा भरा देलन आउ दूसर सादी करके सुख से रहे लगलन ।

4.19 एगो धुनिया के करमात

[ कहताहर - श्यामसुन्दर सिंह, ग्राम-पो॰ - बेलखरा, जिला - जहानाबाद]

एक दफे एगो धुनिया आउ लोहार लड़ गेलन । लड़ के दूनो फैसला करावे ला राजा भिरू गेलन । राजा लड़े के कारण पूछलन तो धुनिया कहलक कि हम ओकरा से जादे जानऽ ही । लोहार कहलक कि हम धुनिया से ज्यादा इलमदार ही । राजा कहलन कि तोहनी अपन-अपन इलम देखावऽ । लोहरा कहलक कि एक मन लोहा हमरा चाहीं । धुनिया कहलक कि हमरा एक मन रूआ चाहीं । दूनो लेके आठ दिन में अपन-अपन इलम देखावे ला कहलन । लोहरा एगो मछरी बनौलक आउ धुनिया एगो घोड़ा बनौलक । धुनिया अइसन कल-पुर्जा ठीक कैलक कि घोड़ा असमान में उड़े । ऊ ओकर तीन कलपुर्जा बनौलक हल । पहला से उड़े, दूसरा से कहे पर ठहरे आउ तीसरा कल से जमीन पर उतरे लगे । दूनो अपन-अपन समान लेके राजा के दरबार में गेलन । लोहरा कहलक कि हमरा एक मन लावा चाहीं । एक मन लावा आयल आउ छींट देवल गेल । लोहरा पूरुब भर से मछरी छोड़ देलक तऽ ऊ सब लावा बीन के खा गेलक । तब धुनिया अपन घोड़ा लवलक बाकि कोई अदमी घोड़ा पर चढ़े ला तइयारे नऽ होवे । से राजा के लड़का घोड़ा पर चढ़े ला तइयार होयलन । उनका धुनियवा ओकर सब कल पुरजा बता देलक । एकरा बाद राजा एहनी दूनों के हथकड़ी पेन्हा के बन्द कर देलन कि जब तक हमर बेटा घूम के नऽ आ जायत तब तक तोहनी के नऽ छोड़वउ । राजा के लड़का घोड़ा उड़ा के चललन तऽ ऊ उड़ के दोसर देस में चल गेलन । बीच में एगो दरिआव हल । रास्ता में जाइत खानी एगो राजा के लड़की के ओकरा पर नजर परल, ओके देखके ऊ मोहित हो गेल । ऊ अप्पन दाई से कहलक कि हमर बापजान से कह दे कि ऊ मोसाफिर के बोला देथ । दाई जाके राजा से कहलक आउ राजा सिपाही के हुकुम देलक । सिपाही रहगीर के पकड़ लौलक । राजा के पूछे पर राजा के बेटा बतौलन कि हमरा अभी सादी नऽ भेल हे । से राजा अपन बेटी के सादी ओकरे साथे कर देलक । ऊ उहईं रहे लगलन । दु-चार बरस के बाद उनकर एगो लड़का भेल । ओकरा बाद फिनो एगो पेट में भी रहल तो राजा के दमाद कहलन कि हमरा रोसगद्दी कर दीहीं । रोसगद्दी हो गेल आउ ओही घोड़ा पर तीनों अदमी सवार होके दरिआव के किनारे अयलन तो रानी के तकलीफ होवे लगल । घोड़ा जमीन पर उतारलन तो उहईं रानी के एगो आउ लड़का भेल । घोड़ा पर चढ़ के राजा डागरिन बोलावे अप्पन राज में गेलन तो उहईं बीड़ी धरावे लगलन तऽ रूआ के घोड़ा में आग लग गेल । घोड़ा जर गेल तो दरिआव पार कर के रानी भिरू जाय ला मोसकिल हो गेल । से ऊ नऽ अयलन आउ अपन घरे लौट गेलन । धुनिया आउ लोहार छोड़ देवल गेल ।

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4.18 पंडित जी आउ पंडिताइन

[ कहताहर - भूपेन्द नाथ, ग्राम-पो॰ - बेलखरा, जिला - जहानाबाद ]

एक गाँव में एगो पंडित जी आउ उनकर जनाना रहऽ हलन । उनका नऽ कोई बाले हल नऽ कोई बच्चे हल । ऊ दिन माँगऽ हलन तो रात खा हलन, आउ रात माँगऽ हलन तो दिन खा हलन । माने कि उनकर जीवन माँगइत-खाइत बीत रहल हल । पंडिताइन जी के इच्छा एक दिन पूआ खाय के भेल । पंडित जी पूआ के सरंजाम जुटवलन । जजमान ही से दूध-गुड़ आउ आटा माँग लौलन । पंडिताइन जी ोकरा सान-ऊन के पूआ छानलन । पूआ नौ गो तइयार भेल । पंडित जी के खाय के इच्छा भेल । पंडित जी आउ पंडिताइन जी सभे पूआ के कठौत में लेके खाय ला बइठ गेलन । तब पंडी जी कहथ कि हम जादे मेहनत कइली हे, से हम पाँच पूआ खायम । पंडिताइन जी कहलन कि हम सानली-बनवली हे, से हमहीं पाँच पूआ खायम । पाँचे पूआ ला दूनों लड़े लगलन । तऽ विचार कयलन कि दूनो के सत रहे के चाही, जे पीछे उठत ओही पाँच पूआ खायत । एही निश्चय करके दूनो सूत गेलन । बिहान भेल तइयो दूनो में कोई नऽ उठथ ।

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4.17 अहीर के बे(व)कूफी (कथा 4.02 के रूपांतर)

[ कहताहर - परमेसरी, ग्राम-पो॰ - बेलखरा, जिला - जहानाबाद ]

पहिले जबाना में एगो अहीर माय-बेटा रहऽ हलक । बेटवा एक दिन मइया से पूछलक कि हम्मर सादी होयल हे कि नऽ ? मइया कहकई कि तोर सादी तो बाबू तबे गेलवऽ हल जब तूँ पेटे में हलऽ । बेटवा कहलक कि तऽ हम ससुरारी जायम । मइया कहकई कि जो नऽ बाबू , रोसगद्दियो करवले अइहें । अहिरा ससुरारी चलल । जाइत-जाइत रात में ससुरारी पहुँचल । रात में जब सरहजिया खिलावइत हलई तब ढिबरी बरइत देख के पूछलक कि ई कउची हवऽ ? सरहजिया मजाक करकई कि ई 'भगजोगनी' के बड़का गो बच्चा हे । खा-पी के जब सब सूत गेलन तो ढिबरिया के बरइत देख के ऊ सोचलक कि "एकरा लुका देईं । चलइत खानी घरे ले ले चलब !" ई सोच के ऊ फूस के घर के ओरी में खोंस देलक । ढिबरी खोंसते लगल आग । गाँव के सब लोग बुतावे दौड़लन । पानी-ऊनी छिंटाय लगल तो अहिरा ओरिया तर निहुर के एने-ओने दउड़े । ई देख के सब पूछलक कि ई का करइत हऽ बाबू ? ऊ कहलक कि "ओरिये में 'भगजोगनी के बच्चा' रखल हे । ओकरे खोजइत ही । कहीं ओहू न जर जाय !" तब सब कहलन कि बुझा हे कि एही सार अगिया लगा देलक हे । आग बुतल । एक-दू दिन ससुरारी में ठहर के अहिरा अउरतिया के रोसगद्दी करा के चलल ।

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4.16 कोयरी के चलाँकी

[ कहताहर - बिगन यादव, मो॰-पो॰ - बेलागंज, जिला - गया ]

कोई गाँव में एगो राजा हल । ओकरा एक्के गो बेटा हल । राजकुमार के सादी कर के राजा मर गेलन । माय-बाप के मरे पर राजकुमार आउ रानी राज करे लगलन । राजकुमार एगो कुम्हइन से परेम करऽ हल । ई से ओकरा रोज रात के आवे में कुबेर हो जा हल । रानी केतनो बोले-भूके बाकि उनकर आदत नऽ छूटल । संजोग से एक दिन कुम्हरा राजा के अपन घरहीं पर पकड़ लेलक आउ ठउरे जान मार देलक । तऽ ओकरा भारी डर हो गेल । ऊ लास पचावे ला एगो कोयरी के खेत में ले गेल आउ लाठी के सहारे ओकरा खड़ा कर देलक । दू-चार गो भंटा तोड़ के ओकर फाँड़ा में रख देलक आउ दू-चार गो ओहिजा गिरा भी देलक । कोयरिया ओती घड़ी खेत में सूतल हल । उठल तऽ देखलक कि आज चोर पकड़ा गेल । ऊ लाठी उठवलक आउ सहेट के एक पटकन कनपट्टी में जमौलक । ऊ गिर गेल । कोयरिया भिरू जाके देखलक तो राजा साहेब ! अब ओकर हवासे गुम ! छटपटाइत घरे गेल आउ मेहररुआ से सब हाल कहलक । ऊ कहलकई कि एतने में घबड़ा गेलऽ । कहइत हिवऽ से करऽ । राजा के महल में जाके ओकरे दूरा पर से ओकरे बोली में रानी के पुकारऽ आउ ऊ जे कहतवऽ से आन के कर दीहँऽ । कोयरी ओही घड़ी उहाँ गेल आउ रानी के बोलवलक । रानी भीतरहीं से कहलन कि "ढँकनी भर पानी में डूब के नऽ मर जा ? आज नऽ खुलतवऽ केंवाड़ी !" बस, कोयरिया तुरत कुम्हार ही से ढँकनी लवलक आउ ओकरा में पानी भर देलक । राजा के लास के महल के दूरा पर लान के ढँकनी में नाक डूबा के पेटकुनिये पार देलक आउ जाके अप्पन खेत में सूत गेल । बिहान भेल तो महल खुलल आउ रनियाँ के रजवा पर नजर पड़ल तो जार-बेजार रोवे लगल -"रजवा हो रजवा, जे कहली से कर देलऽ हो रजवा !"

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