Tuesday, March 25, 2008

8.03 लालमती के समझदारी

[कहताहर - लालमणि कुमारी, मो॰ - क॰ म॰ वि॰, पो॰ - बेलागंज, जिला - गया]

दूर देहात के एगो गाँव में एगो गिरहस्त रहऽ हलन । उनकर लालमती नाम के चलाँक बेटी हल । ओकर सादी लइकाई में भे गेल हल । जवानी के दूरा पर पहुँच गेला पर भी ओकर गवना नऽ भेल हल । से बेटी अप्पन माय-बाप के घर-गिरहस्थी में सहजोग दे हल । परिवार सुख से जिनगी बितावऽ हल । हँासी-खुसी से भरल परिवार में कोई तरह के कभी कमी न बुझा हल । खाइत-पीअइत, खेती-खरिहान में काम करइत ओहनी हरमेसे खुस रहऽ हलन ।

एक रोज ऊ गिरहस्थ हर जोत के दुपहर से पहिलहीं घरे आ गेल आउ नेहा-धोआ के खाय ला बइठल ओने ओकर घरनी भी जाँता में गोहुम पीसे लगल । जाँता पीसते ओकरा अप्पन मरदाना से खाइते खनी मजाक करे ला सूझल आउ ऊ एगो बुझौनियाँ में मजाक से बंधन बान्ह देलक -

सेह बइठल भार सवना के, कभी न बोले बानी ।
ई बुझौनियाँ बूझिहें सामी तब पीहेंऽ तू पानी ।।

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