Saturday, March 15, 2008

5.12 राना भैंसा आउ सियार

[ कहताहर - अवनीन्द्रनाथ, मो॰-पो॰ - बेलखरा, जिला - जहानाबाद]

एगो जंगल में सोरह गो भइँस रहऽ हलन । सोरहो भइँस एके तुरी बच्चा देलक । पन्द्रह गो तो काड़ी देलक बाकि एगो भइँस काड़ा बिआयल । जब सब के बचवन टेहरारू हो गेलन तो कड़वा सब के एक दिन एगो कुआँ पर ले गेल आउ कहलक कि जे ई कुआँ टप जायत ऊ सोरहो भइँस के दूध पीआत । पहिले कड़वा तड़पल आउ कुआँ टप गेल । फिन कड़ियन तड़पे लगलन तो सब चभ-चभ कुआँ में गिर के मर गेलन । अकेले कड़वा बच गेल आउ सोरहो भइँस के दूध पी के मोटा के राना (अरना) भैंसा हो गेल ।

ओही जंगल में एगो बाघ आउ बाघिन रहऽ हल । बघवा बूँट के खेती कयले हल । ओकर अगोरा सियार के बइठा देलक हल । सियरा रोज बूँट अगोरे आउ बघवा के 'मामू-मामू' कहे । एक दिन मोटका राना भैंसा बूँट चरे लगल तो सियरा कहलक - "राना भैंसा ! राना भैंसा ! बूँट मत खो, बाघ मामू अवथुन तऽ चीर-फार के खा-जैथुन !" तब राना भैंसा कड़क के बोलल -
सोरह भइँस के सोरह चभक्का, सोरह सेर घीव खाऊँ रे ।
कउन हउ तोर बाघ मामू, एक पकड़ लड़ जाऊँ रे ।।


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