Friday, March 14, 2008

5.10 बेटा चार आउ हिस्सा तीन

[ कहताहर - देवनन्दन सिंह, मो॰ - चिलोरा, पो॰ - मखदुमपुर, जिला - गया]

एगो राजा हले । ओकरा चार गो बेटा हले । कुछ दिना के बाद राजा मर गेल । तब चारो भाई सोचलन कि अब केकरा हीं केतना बाकी हे, केकरा केतना देबे के चाहीं ? ई सब तो हमनी के मालूम न हे । ई सब सोच के चारो भाई विचार कयलन कि बाकी खजाना देखे के चाहीं । जब बड़ा पुराना लिखा-पढ़ी ओला हिसाब-किताब निकालल गेल तो ओकरा में ओखनी के बाबू जी के लिखल हल कि 'बेटा चार आउ हिस्सा तीन' ! अब चारो बेटन कहलन कि "ए भाई, अब ऐसे न बनतउ । कोई अप्पन हिस्सा छोड़वे न करवे, आउ एकरा में लिखल हउ कि 'बेटा चार आउ हिस्सा तीन' । से चल केकरो से इंसाफ करा ले !" से चारो भइवन एगो महाजन ही इंसाफ करावे गेलन । उहाँ जा के अप्पन सब बात महाजन से कहलन । से महाजन कहलन कि "हम सब के इंसाफ करवे करऽ ही, तोरो कर देवो !" महाजन जी कहलन कि "ठहरऽ, नेहा-खाऽ, तऽ इंसाफ होतो !" ऊ अप्पन ेहरारू से कहलन कि "तूँ बढ़ियाँ भोजन बनावऽ । आउ रजवा के बेटा खाय अतउ तब कहिहें कि कौर उठावऽ जब कि अनचलावल बात आउ बिनसुनल खिस्सा कहऽ तब ! एक-एक कर सबसे एही बात पूछिहें ! से खाय ला तइयार हो गेल तो सहुअइनियाँ कहलक कि "ऐ बाबू, हमरा हीं एके गो छीपा हे, से पारा-पारी से खा लऽ !" पहिले बड़का भइवा खाय गेल आउ जइसहीं कौर उठौलक कि मेहररुआ आ पूछलक कि "ऐ बाबू, भात के कौर उठावऽ जबकि अनचलावल बात आउ बिनसुनल खिस्सा कह लऽ !" एतना सुन के ऊ सोचलक कि ई तो बड़ा भारी बात हे । बिनचलावल बात आउ बिनसुनल खिस्सा कइसे होयत ? से अच्छा हे कि न खाईं । ऊ उहाँ से बिन खयले उठ गेल । एही तरह मँझिला आउ सँझिला भइवन से पारा-पारी खाइत खानी पूछलक । ओहनी भी बिन खयले भात छोड़ के चल गेलन ।

************ Entry Incomplete ************

No comments: