Sunday, March 9, 2008

5.02 कउआ, ऊँट आउ सियार

[ कहताहर - अवनीन्द्रनाथ, मो॰-पो॰ - बेलखरा, जिला - गया]

एगो नदी किनारे पेड़ पर एगो कउवा रहऽ हल । ओकरे नीचे एगो ऊँट रहऽ हल । दूनो में इयारी हो गेल । दिन भर ऊँट आउ कउवा कहीं रहऽ हलन बाकी रात में आन के एके साथ रहथ । दूनो अप्पन दिन भर के दुख-सुख बतिआथ । एक दिन कउवा कहीं दूर घूमे चल गेल तो पेड़ तर एगो सिआर आयल । ऊ सिआर ऊँटवा से बतिआय लगल आउ दोस्त बना लेलक । तऽ सिआर कहलक कि नदी पार एगो खेत में ककरी फरल हे । उहाँ चलऽ तऽ हमनी खूब ककरी खाईं । ऊँटवा तइयार हो गेल । नदी पार करे के बेरा भेल तऽ सिअरवा कहलक कि हम कइसे पार करीं । ऊँटवा कहलक कि तूँ हमर पीठ पर बइठ जा । सिअरवा बइठ गेल आउ दूनो नदी पार कर गेलन । जाके खूब ककरी खयलक आउ ओइसहीं दूनो लौट गेलन । रात के कउवा पहुँचल तऽ ऊँटवा आज के सब हाल कहलक । कउवा कहलक कि "कउनो अनजान से तुरते इयारी न कर लेवे के चाहीं । ऊ कइसन हे ? काहे ला इयारी कयलक हे ? जब तक न समझ लेल जाय तब तक केकरो पर तुरते विसवास न करे के चाहीं ।" कहके दोसर दिन कउवा फिर घूमे चल गेल तो सिअरवा फिनो ओइसहीं फूट खाय ला ऊ पार गेलक आउ खाके लौट गेलक । ई तरी ओहनी रोज नदी पार जाय लगलन आउ फूट खाय लगलन ।

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