Saturday, March 8, 2008

4.29 अरुना बहिन (कथा 4.08 के रूपांतर)

[ कहताहर - बृजा कुमारी, ग्राम - दनई, पो॰ - जाखिम, जिला - औरंगाबाद]

एगो हलन राजा । उनखा सात गो बेटा हलन । सातो बेटा के बिआह हो गेल हल । कुछ दिना के बाद सातो परदेस चल गेलन । ओहनी के एके गो बहिन हल । ओकरो बिआह होयल हल । बाकि ऊ अरुना बहिना के गौना न भेल हल से ऊ भउजाई के साथे रहऽ हल । एक दिन ओकर बड़की भउजाई कहलक कि "ए अरुना, जा, बिना ढेंकी के धान कूट लावऽ ।" अरुना धान लेके टाँड़ी पर चल गेल । उहाँ जाके ऊ जार-बेजार रोवे लगल । ओकर रोआई सुन के एगो चिरई आयल आउ पूछलक कि "काहे ला रोइत हऽ अरुना ?" तब एकरे पर अरुना कहलक कि "हमर भउजाई बिना ढेंकी के धान कूट के ले आवे ला कहलन हे । सबहे बात सुन के ढेर मानी चिरई जौर भेलन आउ तुरते ओकर सब धान निखोर देलन । सबके मेंठ चिरई कहलक कि "कोई एक चाउर भी न खइहें ।"

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