Monday, February 11, 2008

1.09 ब्राह्मण के बेटी आउ चमार के बेटा

[ कहताहर - नारायणदास सिंह, ग्राम - खुटहन-दाउदनगर, जिला - गया ]

कोई गाँव में एगो पंडी जी रहऽ हलन । ऊ पंडी जी के एगो बेटी हल । पंडी जी ओकरा सादी करे ला लड़का खोजे लगलन । लड़का न मिलल तो पंडी जी भावी (one who knows future) से पूछे गेलन कि ए भावी, तूँ बोलऽ तो, हम्मर बेटी के केकरा से सादी होत । तऽ भावी बोलल कि गाँवे में एगो चमार के बेटा हवऽ । ओकरे से तोहर बेटी के सादी होतवऽ । ओतिए घड़ी ऊ पंडी जी भावी के दू लाती मारलन आउ कहलन कि हम्मर बेटी के सादी का तो चमार से होत । हम देखइत ही । भावी कहलन कि मारऽ चाहे कुच्छो करऽ बाकि ओकर बिअहवा ओकरे से होतवऽ । पंडी जी ओकरा इहाँ से चललन आउ गाँव में पहुँच गेलन । चमरा के लइकवा के मारे के फेराक में लग गेलन । तब पंडी जी चमरा के लइकवा के कहलन कि ले तूँ ई चिट्ठी के राम-लछुमन के दे आव । पंडी जी सोचलन कि रास्ता में एकरा बाघ-सिंघ खाइए जायत ।

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